बिहार चुनाव- मुजफ्फरपुर के गायघाट में दिलचस्प मुकाबला, कौन मुद्दा जातीय गणित पर पड़ेगा भारी?

बिहार के मुजफ्फरपुर जिला के गायघाट विधानसभा चुनाव क्षेत्र की पहचान इसके उतार-चढ़ाव भरे दिलचस्प राजनीतिक इतिहास की वजह से है.

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  • बिहार में मुजफ्फरपुर जिले के गायघाट विधानसभा क्षेत्र की पहचान इसके उतार-चढ़ाव भरे राजनीतिक इतिहास के कारण है.
  • BJP को यहीं पहली बार इस जिले में जीत मिली थी. यादव, कुशवाहा, ब्राह्मण, भूमिहार, दलित, मुसहर यहां निर्णायक हैं.
  • 2020 में RJD की जीत हुई, वजह LJP ने अपना प्रत्याशी उतारा था. इस बार LJP के NDA में होने से मुकाबला दिलचस्प है.
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मुजफ्फरपुर जिला मुख्यालय से महज 35 किलोमीटर दूर स्थित गायघाट विधानसभा क्षेत्र का गठन 1967 में हुआ था. तब से गायघाट ने 14 बार विधानसभा चुनाव देखे हैं. 2008 के परिसीमन के बाद यह सीट गायघाट के 23, बंदरा के 12 और कटरा के छह पंचायतों को मिलाकर बनी. सामान्य वर्ग के तहत आने वाला यह विधानसभा सीट पूरी तरह से ग्रामीण इलाका है. यहां स्थानीय मुद्दों के अलावा जातीय गणित निर्णायक साबित होते रहे हैं. वहीं अब महिलाओं की भूमिका भी अहम होती है.

पिछले चुनाव में यहां कुल 57.75 फीसद मतदान हुआ था लेकिन महिलाओं का प्रतिशत 64.77, पुरुषों के 51.42% के मुकाबले कहीं अधिक रहा था. दिलचस्प यह है कि यहां क्या समीकरण हावी रहेगा, यह चुनाव-दर-चुनाव बदलता भी रहा है. यह भी बता दें कि मुजफ्फरपुर जिले में पहली बार बीजेपी ने इसी विधानसभा सीट पर जीत हासिल की थी. तब 1980 में जीतेंद्र प्रसाद सिंह ने जिले में बीजेपी का खाता खोला था. वहीं शुरुआती विधानसभा चुनावों में लगातार जीत हासिल करने वाली कांग्रेस को यहां अंतिम बार 1985 में जीत मिली थी. तब वीरेंद्र कुमार सिंह कांग्रेस के टिकट पर जीते थे.

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गायघाट का जातीय समीकरण

गायघाट में यादव, कुशवाहा, ब्राह्मण, भूमिहार, दलित और मुसहर समुदायों की निर्णायक भूमिका है. यादव और मुस्लिम मतदाता आरजेडी के पारंपरिक वोट बैंक रहे हैं, जबकि भूमिहार और ब्राह्मण समुदाय बीजेपी (एनडीए) के साथ जुड़े रहते हैं. वहीं एनडीए के घटक दल जेडीयू का आधार पिछड़े वर्गों और दलित समुदायों में है.

महेश्वर प्रसाद यादव एक अहम नाम

गायघाट की सीट ने कई राजनीतिक नेताओं को राज्य की विधानसभा में पहुंचाया. यहां से नीतीश्वर प्रसाद सिंह ने 1952, 1957, 1962, 1967, 1969 एवं 1972 में जीत हासिल की थी. वहीं बाद के वर्षों में महेश्वर प्रसाद यादव एक ऐसे अहम नाम हैं, जिन्होंने यहां अलग-अलग दलों से उतरने के बावजूद कई बार जीत हासिल की है. 1990 में बतौर निर्दलीय प्रत्याशी जीत कर पहली बार विधानसभा पहुंचे महेश्वर यादव, 1995 में जनता दल, 2005 और 2015 में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के टिकट पर गायघाट से विधायक बने. 2010 में उन्हें बीजेपी की वीणा देवी ने बड़े अंतरों से हराया पर 2015 में वापसी करते हुए उन्होंने वीणा देवी को शिकस्त दी. 

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2020 में गायघाट से विधायक कौन बने?

बेशक महेश्वर प्रसाद यादव ने यहां से कई बार जीत हासिल की है पर 2020 के विधानसभा चुनाव में राजनीतिक समीकरण ऐसे बैठे कि उन्हें आरजेडी के निरंजन राय से हार का सामना करना पड़ा. यही वजह है कि 2020 का चुनाव गायघाट के लिए राजनीतिक रूप से निर्णायक मोड़ साबित हुआ. निरंजन राय को चुनाव में कुल 59,778 वोट हासिल हुए और 7,566 वोटों के अंतर उन्होंने जेडीयू के प्रत्याशी महेश्वर प्रसाद यादव पर जीत हासिल की. हालांकि महेश्वर प्रसाद के हारने का अहम कारण एलजेपी का इस सीट से अपना उम्मीदवार उतारना भी रहा. जिसकी वजह से वर्तमान एनडीए के वोटों का बंटवारा हुआ, जिसका सीधा लाभ आरजेडी को मिला. तब एलजेपी ने कोमल सिंह को मैदान में उतारा था जिन्हें 36,749 वोट पड़े थे. बता दें कि कोमल सिंह, पूर्व सांसद वीणा सिंह की बेटी हैं.

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बिहार विधानसभा चुनाव में गायघाट सीट से मैदान में कौन?

इस बार कोमल सिंह जेडीयू की टिकट पर गायघाट सीट से प्रत्याशी हैं. जेडीयू ने राज्य में 101 प्रत्याशी उतारे हैं जिनमें केवल 13 महिलाएं हैं. कोमल सिंह उनमें से एक हैं. यहां आरजेडी से उनका सीधा मुकाबला होना है क्योंकि इस बार जेडीयू और बीजेपी के साथ एनडीए गठबंधन में एलजेपी भी शामिल है. आरजेडी ने अपने वर्तमान विधायक निरंजन राय पर ही भरोसा जताया है. हालांकि इस बार यहां चुनाव में प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी के अशोक कुमार के मैदान में उतरने से पिछली बार की तरह ही मुकाबला त्रिकोणीय माना जा रहा है.

गायघाट के स्थानीय मुद्दे क्या हैं?

बाढ़, सड़क, सिंचाई और रोजगार जैसी चुनौतियां गायघाट विधानसभा सीट पर आज भी कायम हैं. यहां स्वास्थ्य सेवाएं बहुत सीमित हैं, तो शिक्षा और रोजगार के अवसरों की कमी से यह विधानसभा सीट अब भी जूझ रही है. गंडक और बागमती नदियों के किनारे पर बसे होने की वजह से यहां की जमीन बहुत उपजाऊ है पर बंदरा प्रखंड के कई हिस्से हर साल बाढ़ के पानी में डूब जाते हैं. हर साल गंडक और बागमती की बाढ़ फसलों को नुकसान पहुंचाती है. स्थानीय अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर ही आधारित है और मुख्य तौर पर यहां गेहूं, मक्का और दाल की खेती की जाती है. यहां चावल की मिलें और कृषि व्यापार केंद्र भी स्थापित किए गए हैं. इसके बावजूद रोजगार की समस्या यहां मौजूद है और इसकी वजह से यहां के युवा बड़े शहरों की ओर रुख कर रहे हैं. लिहाजा पलायन यहां एक बड़ा मुद्दा भी है.

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गायघाट विधानसभा सीट का अंक गणित

2024 में चुनाव आयोग द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, गायघाट विधानसभा क्षेत्र की कुल जनसंख्या 5,53,319 है, जिसमें 2,89,089 पुरुष और 2,64,230 महिलाएं शामिल हैं. वहीं, कुल मतदाताओं की संख्या 3,30,371 हैं, जिनमें 1,73,961 पुरुष, 1,56,404 महिलाएं और 6 थर्ड जेंडर वोटर हैं.

गायघाट विधानसभा सीट की चौहद्दी

गायघाट मुजफ्फरपुर जिले के उत्तर में स्थित है. इसकी सीमाएं औराई, कटरा और मीनापुर प्रखंडों से मिलती हैं. गायघाट रेलवे स्टेशन, समस्तीपुर–मुजफ्फरपुर रेल मार्ग पर मौजूद है. सड़क मार्ग की बात करें तो यह मुजफ्फरपुर से 35 किलोमीटर, दरभंगा से 55 किलोमीटर और सीतामढ़ी से 60 किलोमीटर पर स्थित है.

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कब है मतदान?

मुजफ्फरपुर जिले की सभी 11 विधानसभा सीटों पर मतदान पहले चरण में है, लिहाजा गायघाट में भी वोटिंग 6 नवंबर 2025 को है.
वहीं वोटों की गिनती 14 नवंबर 2025 को है.

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