बिहार के जमुई जिले में स्थित चकाई विधानसभा सीट पर जदयू के निवर्तमान विधायक सुमित कुमार सिंह की जीत होगी या फिर राजद प्रत्याशी सावित्री देवी की, ये तस्वीर कुछ घंटों में साफ हो जाएगी. दोनों ही उम्मीदवारों ने अपनी-अपनी जीत का दावा किया है. ये सीट सूबे की राजनीति में अपनी अप्रत्याशितता और मतदाताओं के बदलते रुझान के लिए जानी जाती है. यह क्षेत्र कभी किसी एक राजनीतिक दल का गढ़ नहीं रहा, बल्कि हर चुनाव में यहां के वोटर्स ने नए चेहरों और समीकरणों को भी प्राथमिकता दी है.
पिछले तीन विधानसभा चुनावों का विश्लेषण बताता है कि यहां के सियासी दांव-पेच और नेताओं के भाग्य में नाटकीय बदलाव आते रहे हैं. यहां पर मौजूदा विधायक सुमित कुमार सिंह का दबदबा है, जिन्हें जीत के लिए पार्टी सिंबल की भी दरकार नहीं रही. इस बार भी उनका पलड़ा भारी बताया जा रहा है, लेकिन बदलते समीकरणों के बीच राजद की सावित्री देवी ने भी उन्हें कड़ी टक्कर देने में कोर-कसर नहीं छोड़ी.
2020 का सबसे बड़ा उलटफेर
चकाई में सबसे बड़ा चुनावी उलटफेर 2020 के विधानसभा चुनाव में देखने को मिला, जब निर्दलीय प्रत्याशी सुमित कुमार सिंह ने सबको चौंकाते हुए जीत दर्ज की. उन्होंने महागठबंधन और एनडीए दोनों के दिग्गजों को मात्र 581 वोटों के बेहद कम अंतर से मात दी. इस चुनाव में उन्होंने राजद की सावित्री देवी को हराया, जो 2015 में इस सीट से विजेता रही थीं. यह जीत सुमित कुमार सिंह के व्यक्तिगत प्रभाव और मतदाताओं के निर्दलीय उम्मीदवारों पर विश्वास को दर्शाती है. दिलचस्प बात यह है कि सुमित कुमार सिंह पहले झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के टिकट पर विधायक रह चुके थे.
2015 में राजद की सीट था चकाई
2015 का विधानसभा चुनाव राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण था, जब सावित्री देवी ने इस सीट पर पार्टी का खाता खोला. उन्होंने तब निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहे सुमित कुमार सिंह को हराकर जीत दर्ज की थी. यह जीत उस समय महागठबंधन की रणनीति का एक अहम हिस्सा मानी गई थी, खासकर जब बिहार में एनडीए के खिलाफ एक मजबूत लहर चल रही थी. सावित्री देवी को इस चुनाव में कुल 47,064 वोट मिले थे, जो उस साल के लिए एक मजबूत जनादेश था.
2010 का करीबी मुकाबला
चकाई का चुनावी इतिहास 2010 के चुनाव में भी बेहद रोमांचक रहा. उस समय सुमित कुमार सिंह ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के टिकट पर चुनाव लड़ते हुए लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के विजय कुमार सिंह को मात्र 188 वोटों के बेहद करीबी अंतर से हराया था. यह बिहार में JMM के लिए एक दुर्लभ जीत थी और इसने राज्य की राजनीति में पार्टी की उपस्थिति को चिह्नित किया था.
क्या हैं चकाई विधानसभा के मुद्दें?
चकाई विधानसभा क्षेत्र मुख्य रूप से ग्रामीण और कृषि प्रधान है, जहाँ 80% से अधिक लोग कृषि पर निर्भर हैं. यह क्षेत्र जंगल, पहाड़ और नदियों से घिरा हुआ है, जो इसे प्राकृतिक सुंदरता प्रदान करते हैं, लेकिन साथ ही कई क्षेत्रीय समस्याएं भी पैदा करते हैं. चकाई लंबे समय तक नक्सल प्रभावित क्षेत्र रहा है, जिसे विकास की दौड़ में पीछे रहने का एक प्रमुख कारण माना जाता है. हालांकि, पिछले कुछ वर्षों से नक्सली गतिविधियों में कमी आई है, जिससे क्षेत्र में विकास की नई उम्मीद जगी है. सड़क, सिंचाई और रोजगार जैसे बुनियादी मुद्दे आज भी यहाँ के चुनावी एजेंडे में सबसे ऊपर हैं.
इस बार प्रतिष्ठा की लड़ाई
चकाई की सियासत में कोई स्थायी विजेता नहीं रहा है, बल्कि यहां जनता हर बार अपने फैसले को नए तरीके से सुनाती है. यह सीट इस बात का प्रमाण है कि चकाई के वोटर बेहद जागरूक और चतुर हैं, जो उम्मीदवार की छवि और स्थानीय मुद्दों पर ज्यादा ध्यान देते हैं. यहां होने वाले चुनावों में इस सीट पर फिर से एक नई राजनीतिक पटकथा लिखे जाने की पूरी संभावना है, जहां राजद की सावित्री देवी और जदयू के सुमित कुमार सिंह के बीच एक बार फिर कड़ी टक्कर देखने को मिल सकती है.














