बिहार चुनाव 2025 में रघुनाथपुर का रण... शहाबुद्दीन के बिना ओसामा की 'नैया' कैसे लगेगी पार?

शाहबुद्दीन ने कभी रघुनाथपुर से चुनाव नहीं लड़ा, वे दो बार विधायक रहे, वह भी जीरादेई से. रघुनाथपुर का जातीय समीकरण इस चुनाव में अहम भूमिका निभा रहा है:

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  • बिहार विधानसभा चुनाव में सिवान का रघुनाथपुर विधानसभा क्षेत्र राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है.
  • ओसामा शहाब राष्ट्रीय जनता दल के टिकट पर महागठबंधन के उम्मीदवार के रूप में पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं.
  • रघुनाथपुर में मुस्लिम मतदाता सबसे बड़ी जातिगत संख्या में हैं, जो चुनाव के परिणामों को प्रभावित कर सकते हैं.
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सिवान:

बिहार विधानसभा चुनाव में सिवान एक बार फिर सुर्खियों में है. कभी यह इलाका बाहुबली नेता मोहम्मद शाहबुद्दीन के प्रभाव के लिए जाना जाता था और अब उनके बेटे ओसामा शहाब के कारण चर्चा में है, जो पहली बार चुनावी मैदान में उतरे हैं. रघुनाथपुर सीट पर सबकी निगाहें टिकी हैं. यहां से राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के टिकट पर महागठबंधन के उम्मीदवार ओसामा शहाब चुनाव लड़ रहे हैं. हालांकि, ओसामा सार्वजनिक मंचों पर बहुत कम बोलते हैं और मीडिया से भी दूरी बनाए रखते हैं, लेकिन उनके समर्थक काफी मुखर हैं.

शाहबुद्दीन ने कभी रघुनाथपुर से चुनाव नहीं लड़ा, वे दो बार विधायक रहे, वह भी जीरादेई से. रघुनाथपुर का जातीय समीकरण इस चुनाव में अहम भूमिका निभा रहा है:

  • मुस्लिम मतदाता: 68,000
  • अनुसूचित जाति: 34,000
  • राजपूत: 31,000
  • यादव: 28,500

एनडीए की ओर से जेडीयू के टिकट पर विकास सिंह मैदान में हैं. वे समता पार्टी के समय से नीतीश कुमार के करीबी रहे हैं. उनकी पत्नी डॉक्टर हैं और प्रचार की कमान उन्होंने संभाल रखी है. विकास सिंह कहते हैं, "अगर उसे जिताया तो कट्टा बांटेगा, मैं कलम बांटने की बात करता हूं."

वहीं, एआईएमआईएम ने मोहम्मद कैफ को टिकट दिया है, जो मुस्लिम मतदाताओं के अधिकारों की बात करते हुए अपना हिस्सा मांग रहे हैं. उन्होंने कहा, "जब दो सहनी होने से वोट नहीं बंटता, दो कुर्मी होने से वोट नहीं बंटता, तो दूसरा मुसलमान लड़ जाए तो वोट क्यों बंटे?"

जन सुराज पार्टी ने राहुल कीर्ति सिंह को मैदान में उतारा है, जिनका परिवार वकालत के पेशे से जुड़ा है और इलाके में अच्छी प्रतिष्ठा रखता है. राहुल कहते हैं, "कौन लड़ रहा है मेरे खिलाफ, इससे फर्क नहीं पड़ता. 14 तारीख को जब नतीजे आएंगे, तब सबको पता चलेगा."

इस बार का चुनाव इसलिए ऐतिहासिक माना जा रहा है क्योंकि पहली बार सिवान में शाहबुद्दीन की गैरमौजूदगी में वोट डाले जाएंगे. देखना होगा कि इसका असर नतीजों पर कितना पड़ता है.

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