बिहार चुनाव 2025: डेहरी में क्षत्रियों की किस्मत, 1990 से लगातार हार का इतिहास, क्या इस बार बदलेगा खेल?

बिहार की राजनीति में क्षत्रिय समाज का योगदान हमेशा प्रभावशाली रहा है. राजनीतिक वर्चस्व और जातीय समीकरण को देखते हुए लगभग हर पार्टी ने इस वर्ग पर दांव आजमाया है, लेकिन डेहरी विधानसभा का इतिहास बताता है कि यहां क्षत्रिय प्रत्याशियों को जनता ने कभी मौका नहीं दिया.

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  • बिहार की राजनीति में जातिगत समीकरण अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और सभी पार्टियां इसे नजरअंदाज नहीं कर सकतीं
  • डेहरी विधानसभा सीट पर क्षत्रिय उम्मीदवारों को पिछले पैंतीस वर्षों में लगातार हार का सामना करना पड़ा है
  • डेहरी में क्षत्रिय मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं, लेकिन उनका वोटिंग पैटर्न परंपरागत रूप से सफल नहीं रहा है
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रोहतास:

बिहार की राजनीति में जाति हमेशा से एक बड़ा फैक्टर रही है, जिसे दरकिनार करने का जोखिम कोई भी राजनीतिक पार्टी नहीं उठा सकती. एनडीए, महागठबंधन समेत जन सुराज व अन्य पार्टियों ने भी जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए लगभग सभी सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है. अब मतदाताओं को लामबंद करने के लिए अन्य राज्यों से भी कई बड़े चेहरे चुनावी सभाओं में जुटने लगे हैं. हालांकि, कुछ सीटों पर जातीय समीकरण बार-बार फेल भी हुए हैं — जिनमें से एक रोहतास जिले की डेहरी विधानसभा सीट भी शामिल है.

क्षत्रिय उम्मीदवार को कभी रास नहीं आई डेहरी विधानसभा 

बिहार की राजनीति में क्षत्रिय समाज का योगदान हमेशा प्रभावशाली रहा है. राजनीतिक वर्चस्व और जातीय समीकरण को देखते हुए लगभग हर पार्टी ने इस वर्ग पर दांव आजमाया है, लेकिन डेहरी विधानसभा का इतिहास बताता है कि यहां क्षत्रिय प्रत्याशियों को जनता ने कभी मौका नहीं दिया. वर्ष 1990 से अब तक चार बार क्षत्रिय उम्मीदवार मैदान में उतरे, लेकिन हर बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा. डेहरी सीट क्षत्रिय उम्मीदवारों को कभी रास नहीं आई.

निर्णायक भूमिका में क्षत्रिय समाज 

डेहरी विधानसभा में क्षत्रिय मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं. यहां लगभग 44 हजार वैश्य, 40 हजार यादव और 37 हजार क्षत्रिय मतदाता हैं. इनके बाद दलित और मुसलमान मतदाता आते हैं. बावजूद इसके, जब-जब क्षत्रिय प्रत्याशी मैदान में उतरे, उन्हें हार मिली. यही कारण है कि यह सीट अब राजनीतिक विश्लेषकों के लिए एक “रहस्यमयी परंपरा” बन चुकी है.

एलजेपी(आर) प्रत्याशी सोनू सिंह दे रहे हैं परंपरा को चुनौती 

अब एक बार फिर लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने डेहरी सीट से सोनू कुमार सिंह (राजपूत) को अपना उम्मीदवार बनाया है. सोनू सिंह के सामने इस बार की सबसे बड़ी चुनौती है — क्षत्रिय उम्मीदवारों की 35 साल पुरानी हार की परंपरा को तोड़ना. देखना दिलचस्प होगा कि क्या सोनू सिंह 2025 के विधानसभा चुनाव में इस मिथक को तोड़ पाते हैं या यह परंपरा एक बार फिर दोहराई जाती है.

 कब-कब क्षत्रिय उम्मीदवार को मिली हार 

1990:

  • विजेता: मोहम्मद इलियास हुसैन (जनता दल) — 34,030 वोट
  • पराजित: विनोद कुमार सिंह (भाजपा) — 15,730 वोट
  • विजयी अंतर: 18,300 वोट

1995:

  • विजेता: मोहम्मद इलियास हुसैन (जनता दल) — 40,864 वोट
  • पराजित: विनोद कुमार सिंह (भाजपा) — 30,808 वोट
  • विजयी अंतर: 10,056 वोट

2000:

  • विजेता: मोहम्मद इलियास हुसैन (राजद) — 57,123 वोट
  • पराजित: गोपाल नारायण सिंह (भाजपा) — 44,336 वोट
  • विजयी अंतर: 12,787 वोट
  • गोपाल नारायण सिंह, जो भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं.

2010:

  • विजेता: ज्योति रश्मि (निर्दलीय) — 43,634 वोट
  • दूसरे स्थान पर: मोहम्मद इलियास हुसैन (राजद) — 33,819 वोट
  • तीसरे स्थान पर: अवधेश नारायण सिंह (भाजपा) — 27,508 वोट
  • विजयी अंतर: 9,815 वोट

अवधेश नारायण सिंह, वर्तमान विधान परिषद सभापति हैं.

डेहरी विधानसभा सीट बिहार की उन कुछ सीटों में से एक है जहां जातीय समीकरण कई बार ध्वस्त हुए हैं. अब एनडीए की सहयोगी पार्टी एलजेपी(रामविलास) के उम्मीदवार सोनू कुमार सिंह पर सभी की निगाहें टिकी हैं — क्या वे इतिहास बदल पाएंगे या डेहरी की राजनीति फिर उसी परंपरा को दोहराएगी?

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