- प्रधानमंत्री मोदी ने 2025 बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मगध क्षेत्र में लगातार चार बार चुनावी सभाएं की हैं
- मगध क्षेत्र के पांच जिलों में कुल 26 विधानसभा सीटें हैं जो बिहार की सत्ता के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती हैं
- पिछले एक दशक में मगध में एनडीए का प्रदर्शन कमजोर रहा है और 2015 तथा 2020 में महागठबंधन ने अधिक सीटें जीती हैं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की औरंगाबाद की सभा पांच दिनों के अंतराल में मगध की दूसरी सभा रही. पहली सभा 2 नवंबर को नवादा में हुई थी. फिर पांच दिन बाद दूसरी सभा 7 नवंबर को औरंगाबाद में हुई. बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा से पहले की सभाओं को जोड़ दें, तो 2025 में मोदी की मगध क्षेत्र में चौथा कार्यक्रम रहा है. चूकिं चुनाव की घोषणा के पहले मोदी फरवरी 2025 और अगस्त 2025 में गया में आयोजित कार्यक्रम में शामिल हुए थे. पीएम मोदी के लगातार कार्यक्रमों से यह सवाल उठना लाजिमी है कि प्रधानमंत्री के लिए मगध इतना अहम क्यों है? पीएम मोदी को क्यों बार बार मगध का दौरा करनी पड़ रही है.
बिहार चुनाव में नरेंद्र मोदी के लगातार दौरे को समझने के लिए मगध की सियासी ताकत को समझनी होगी. चूकिं मगध क्षेत्र में पांच जिले हैं. गया, नवादा, औरंगाबाद, अरवल और जहानाबाद. मगध के इन पांच जिलों में कुल 26 विधानसभा सीटें है. मगध की ये सीटें बिहार की कुर्सी के लिए काफी अहम रही है. मगध में जिस गठबंधन की सीटें कम रही है, उनकी सता कमजोर रही है . या फिर अस्थिर रही है. इसलिए मगध की यात्रा मोदी के लिए जरूरी बनी हुई है.
10 सालों से एनडीए के प्रतिकूल परिणाम
दरअसल, पिछले एक दशक से एनडीए के लिए मगध का परिणाम प्रतिकूल रहा है. 2015 की बात करें तो 26 में से एनडीए को सिर्फ छह सीटें मिली थी, जिनमें पांच बीजेपी और एक हम सेक्युलर को मिली थी. तब जदयू एनडीए का हिस्सा नही था. जदयू, राजद और कांग्रेस साथ चुनाव लड़ी थी. महागठबंधन को 20 सीटें मिली थी, जिसमें राजद को 10, जदयू को 6 और कांग्रेस को 4 सीटें मिली थी. देखें तों, 2015 में महागठबंधन की सरकार बनी थी, जिसका मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बने थे. चूंकि महागठबंधन की बहुमत थी. तब महागठबंधन से नीतीश कुमार सीएम और तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम बने थे. एनडीए सता से बाहर हो गई थी.
2020 में भी एनडीए का प्रदर्शन ठीक नहीं रहा. मगध के 26 में से एनडीए को सिर्फ छह सीटें मिली थी. इसमें तीन बीजेपी और तीन हम सेक्युलर को सीटें मिली थी. तब एनडीए में बीजेपी के साथ जेडीयू, वीआईपी और हम सेक्युलर थी. जबकि महागठबंधन को 20 सीटें मिली थी, जिसमें राजद को 15, कांग्रेस को तीन और सीपीआईएमएल को दो सीटें मिली थी. हालांकि 2020 में सरकार तो एनडीए की बन गई. लेकिन पर्याप्त बहुमत के अभाव में सरकार अस्थिर रही. इसका नतीजा हुआ कि अगस्त 2022 में नीतीश कुमार की अगुआई में एक बार फिर राजद के साथ मिलकर महागठबंधन की सरकार बनी. अस्थिर सरकार का ऊहापोह यहीं खत्म नही हुई. जनवरी 2024 में एक बार फिर नीतीश कुमार की अगुआई में एनडीए की सरकार बनी, जिसमें बीजेपी, एलजेपी, हम एनडीए का हिस्सा थी. पर्याप्त सीटों के अभाव में सरकार बदलती रही है.
2010 का इतिहास दुहराना चाहती है एनडीए
दरअसल, मोदी के मगध दौरे के पीछे 15 साल पुराना चुनाव परिणाम रहा है, जो बार-बार पीएम मोदी को मगध की ओर खिंचता रहा है. 2010 के विधानसभा चुनाव में मगध की 26 सीटों में से 24 सीटें एनडीए जीती थी. तब एनडीए में सिर्फ बीजेपी और जेडीयू थी. इसमें आठ सीटें बीजेपी और 16 सीटें जदूय जीती थी. जबकि महागठबंधन सिर्फ एक सीट जीती थी. बेलागंज से राजद जीती थी. जबकि एक अन्य सीट पर ओबरा से निर्दलीय सोमप्रकाश की जीत हुई थी. देखें तो, मगध में एनडीए के लिए यह स्वर्णिम काल था. इस जीत के चलते सरकार के पास पर्याप्त बहुमत थी. इसलिए सरकार के पास बहुमत की संकट नही रही. लेकिन देखें तो, इसके बाद मगध में एनडीए ऐसी जीत नहीं दुहरा पाई. दरअसल, एनडीए उसी स्वर्णिम दौर की वापसी चाहती है, इसलिए पीएम मोदी दौरा के बाद दौरा कर रहे हैं.
नीतीश, मांझी, चिराग और उपेन्द्र का भी इम्तिहान
मगध में जदयू प्रमुख और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए भी बड़ा इम्तिहान हैं. चूकिं 2020 के चुनाव में मगध में नीतीश कुमार की पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. आठ सीटों पर जदयू दूसरे स्थान पर रही थी. हालांकि 2025 में हुए उपचुनाव में बेलागंज से जदयू से मनोरमा देवी निर्वाचित हुई. बहरहाल, नीतीश कुमार के लिए भी इस परिस्थिति से उबरना बड़ी चुनौती है. दूसरी तरफ, हम सेक्युलर प्रमुख जीतन राम मांझी के लिए मगध सबकुछ है. चूंकि हम सेक्युलर कुल छह सीटों पर चुनाव लड़ रही है. सभी सीटें मगध क्षेत्र में है. 2020 के चुनाव में हम तीन सीटें जीती थी. जबकि दो सीटें हार गई थी. इसबार मांझी के लिए भी बड़ी चुनौती है. चूकिं एक सीट पर उनकी बहू हैं. जबकि दूसरी सीट पर उनकी समधिन.
एलजेपी (आर) प्रमुख चिराग पासवान के लिए भी मगध में पैर जमाना चुनौती जैसा है. चूकिं 2020 के चुनाव में एलजेपी एनडीए और महागठबंधन से अलग लड़ी थी. एलजेपी के अलग रहने से जदयू को बड़ा नुकसान हुआ था. लेकिन एलजेपी को भी नुकसान उठानी पड़ी थी. एक भी सीट नही जीत पाई थी. लेकिन अब एलजेपीआर भी एनडीए का हिस्सा है. मगध में कई महत्वपूर्ण सीटों से लड़ रही है. ऐसे में चिराग की चुनौती भी कम नहीं है.
आरएलएम प्रमुख उपेन्द्र कुशवाहा के लिए भी मगध बड़ी चुनौती रही है. 2020 में आरएलएम अलग लड़ी थी. लेकिन मगध में एक भी सीट नही जीत पाई थी. आरएलएम बिहार में कुछ छह सीटों पर चुनाव लड़ रही है. बता दें कि एनडीए गठबंधन बिहार में 243 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. इसमें 101-101 सीटों पर जदयू और बीजेपी लड़ रही है. जबकि 29 सीटों पर एलजेपीआर और छह छह सीटों पर आरएलएम और हम लड़ रही है.













