बिहार चुनाव में हवाई प्रचार का नया रिकॉर्ड: पटना से 450 से ज्यादा हेलीकॉप्टर उड़ानें, करोड़ों की चुनावी हवा बाजी

ये उड़ानें केवल धातु के पंख नहीं थीं, ये करोड़ों रुपये की राजनीति का प्रतीक थीं. हर उड़ान के साथ एक नई कहानी, एक नया खर्च और एक नया दांव जुड़ा था. इस बार के चुनाव में 20 जिलों की 122 सीटों के लिए प्रचार किया जा रहा था. इसके लिए रोजाना लगभग 25 हेलीकॉप्टर और 12 चार्टर्ड विमान पटना हवाई अड्डे से उड़ान भर रहे थे.

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  • बिहार विधानसभा चुनाव में हवाई प्रचार के तहत पटना एयरपोर्ट से करीब चार सौ पचास से अधिक हेलीकॉप्टर उड़ानें भरी
  • इस दौरान रोजाना लगभग 25 हेलीकॉप्टर और 12 चार्टर्ड विमान जिलों में नेताओं को पहुंचाने के लिए संचालित हुए
  • चार्टर्ड विमान का किराया चार लाख से नौ लाख रुपये और हेलीकॉप्टर का किराया डेढ़ लाख से चार लाख रुपये था
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पटना:

बिहार का आसमान इन दिनों सिर्फ बादलों का नहीं, बल्कि हेलीकॉप्टरों का भी गवाह बना हुआ था. बीते कुछ हफ्तों में पटना हवाई अड्डे से उड़ान भरते हेलीकॉप्टरों की आवाज ने पूरे राज्य में चुनावी माहौल को और भी तेज कर दिया था. यह किसी साधारण प्रचार का हिस्सा नहीं था, बल्कि एक ऐसा अभूतपूर्व हवाई युद्ध था जिसने बिहार के राजनीतिक इतिहास में नया रिकॉर्ड बना दिया. दूसरे चरण के प्रचार के खत्म होने तक करीब 450 से ज़्यादा उड़ानें हुईं. चुनावी इतिहास में इतनी बड़ी संख्या में हवाई यात्राएं पहले कभी दर्ज नहीं की गईं थीं. रविवार शाम जैसे ही प्रचार की समय सीमा समाप्त हुई, आसमान में गूंजते हेलीकॉप्टरों की आवाज धीरे-धीरे थम गई, लेकिन पीछे छोड़ गई एक ऐसी कहानी, जो खर्च, रणनीति और चुनावी शक्ति की नई परिभाषा लिखती है.

ये उड़ानें केवल धातु के पंख नहीं थीं, ये करोड़ों रुपये की राजनीति का प्रतीक थीं. हर उड़ान के साथ एक नई कहानी, एक नया खर्च और एक नया दांव जुड़ा था. इस बार के चुनाव में 20 जिलों की 122 सीटों के लिए प्रचार किया जा रहा था. इसके लिए रोजाना लगभग 25 हेलीकॉप्टर और 12 चार्टर्ड विमान पटना हवाई अड्डे से उड़ान भर रहे थे. पहले चरण में जहां लगभग 210 उड़ानें हुईं, वहीं दूसरे चरण में यह संख्या 240 के करीब पहुंच गई. एक एयरपोर्ट अधिकारी ने बताया कि प्रमुख नेता चार्टर्ड प्लेन से पटना आते हैं और फिर यहां से हेलीकॉप्टर में अलग-अलग जिलों की रैलियों के लिए रवाना होते हैं. रोज़ाना चार से पांच चार्टर्ड विमान नेताओं को लेकर आते हैं. इस पूरे हवाई अभियान की लागत करोड़ों में आंकी जा रही है.

हेलीकॉप्टर और चार्टर्ड फ्लाइट का किराया भी आसमान छूता है. चार्टर्ड जेट का किराया 4 लाख से 9 लाख रुपये प्रति घंटा होता है, जो सुविधाओं के आधार पर तय किया जाता है. सिंगल-इंजन हेलीकॉप्टर जिनमें चार यात्री बैठ सकते हैं, उनका किराया लगभग 1.5 लाख रुपये प्रति घंटा है, जबकि ट्विन-इंजन मॉडल के लिए यह 2.5 लाख से 4 लाख रुपये प्रति घंटा तक पहुंच जाता है. इन आंकड़ों से साफ है कि यह चुनाव सिर्फ ज़मीन पर नहीं, बल्कि हवा में भी लाखों-करोड़ों के दांव पर खेला जा रहा है.

हवाई प्रचार की यह रफ्तार बताती है कि इस बार दांव बहुत ऊंचा है. राजद के नेता तेजस्वी यादव ने प्रचार के आखिरी दिन ही अरवल, रोहतास और जहानाबाद में 16 रैलियां कीं. वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दोनों चरणों में 84 रैलियों को संबोधित किया, जिनमें से 73 हेलीकॉप्टर से की गईं. यह तेज प्रचार उस आवश्यकता को दर्शाता है कि नेताओं को सीमित समय में ज़्यादा से ज़्यादा क्षेत्रों तक पहुंचना है, क्योंकि इस चुनाव में “समय ही शक्ति” है. बेतिया के किसान राम सेवक (45) कहते हैं कि उन्होंने इतने हेलीकॉप्टर पहले कभी नहीं देखे. जब वे उतरते हैं तो चारों ओर धूल उड़ जाती है, लेकिन इससे यह भी दिखता है कि उनके वोट के लिए कितनी बड़ी लड़ाई लड़ी जा रही है. वहीं राजनीतिक विश्लेषक डॉ. आरती सिंह का मानना है कि यह हवाई प्रचार समय बचाने और धनबल की राजनीति का प्रतीक है. यह नेताओं को जनता तक तेज़ी से पहुंचने में मदद करता है, लेकिन ज़मीनी कार्यकर्ताओं के कठिन परिश्रम की जगह कभी नहीं ले सकता.

एक तरफ जहां बड़े नेता आसमान से प्रचार कर रहे थे, वहीं दूसरी तरफ जन सुराज के प्रशांत किशोर जैसे नेता पैदल चलकर गांव-गांव जा रहे थे. यह दो अलग-अलग राजनीतिक सोच को दिखाता है, एक चमकदार और महंगी, दूसरी सीधी और जनता के बीच की. यह फर्क एक बड़ा सवाल उठाता है कि क्या लोकतंत्र में संतुलन बनाए रखने के लिए चुनावी खर्च पर सख्त नियम जरूरी हैं.

इस चरण में 3.7 करोड़ से ज़्यादा मतदाता अपने मत का इस्तेमाल कर रहे हैं. कुल 1,302 उम्मीदवार मैदान में हैं, जिनमें से 136 महिलाएं हैं. जमुई से भाजपा की श्रेयसी सिंह और धामदाहा से जदयू मंत्री लेसी सिंह जैसी प्रमुख हस्तियां भी इस बार अपनी किस्मत आजमा रही हैं. यह सभी नाम और आंकड़े इस चुनाव की गहराई और विविधता को दर्शाते हैं.

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जब हेलीकॉप्टरों की आवाज थम जाती है और आसमान शांत हो जाता है, तब असली फैसला जमीन पर होना होता है. यह चुनाव सिर्फ भाषणों और रैलियों का नहीं, बल्कि धन, समय और रणनीति की लड़ाई का भी प्रतीक बन गया है. आख़िर में सवाल यही है कि क्या ये करोड़ों की उड़ानें वाकई जनता से जुड़ाव ला रही हैं, या सिर्फ लोकतंत्र में एक नई आर्थिक दूरी बना रही हैं. क्योंकि अंततः, चाहे आसमान में कितनी भी उड़ानें भर ली जाएं, फैसला तो ज़मीन पर रहने वाले हर मतदाता के हाथ में ही है.

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