महागठबंधन में अब 'लेफ्ट' ने बढ़ाया राजद-कांग्रेस का सिरदर्द, 50 सीटों की मांग, जानें पूरा सियासी समीकरण

महागठबंधन में कांग्रेस और राजद, दोनों ही 'बड़े भाई' बनने की फिराक में हैं. इस मोर्चे पर कांग्रेस से राजद को चुनौती मिलती दिख रही है. नया सिरदर्द बढ़ाया है, लेफ्ट पार्टियों ने.

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  • बिहार चुनाव में एनडीए और महागठबंधन दोनों गठबंधनों के बीच सीट बंटवारे को लेकर तनाव बढ़ता दिख रहा है.
  • वाम पार्टियां 2020 में मिली पिछली सफलता के आधार पर बिहार में 50 सीटों पर चुनाव लड़ने की मांग कर रही हैं.
  • भारतीय कम्‍यूनिस्‍ट पार्टी के राज्‍य सम्‍मेलन ने नेताओं-कार्यकर्ताओं को एकजुट किया है, वे उत्‍साहित दिख रहे.
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बिहार चुनाव को लेकर एनडीए और इंडिया ब्‍लॉक, दोनों ही गठबंधन के लिए शीट शेयरिंग सिरदर्द साबित हो रही है. एनडीए में पहले लोजपा(रामविलास) के नेता चिराग पासवान के सुर बदले-बदले दिख रहे थे और फिर हम प्रमुख जीतन राम मांझी ने दिल्‍ली में बिहार की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कह के तनाव बढ़ा दिया था, हालांकि बाद में दोनों पीछे हटे. दूसरी ओर महागठबंधन में कांग्रेस और राजद, दोनों ही 'बड़े भाई' बनने की फिराक में हैं. इस मोर्चे पर कांग्रेस से राजद को चुनौती मिलती दिख रही है. नया सिरदर्द बढ़ाया है, लेफ्ट पार्टियों ने, जो कम से कम 50 सीटों पर दावेदारी ठोंक रही हैं. 

सीपीआई के राज्‍य सम्‍मेलन में दिखा उत्‍साह 

बिहार चुनाव में लेफ्ट पार्टियों ने भी अपना पूरा दमखम झोंक रही हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में मिली सफलता को ध्‍यान में रखते हुए पूरा वाम खेमा उत्साहित है. इसलिए इस बार ज्यादा सीटों की मांग कर रहा है. माले 40 सीटों की दावेदारी कर रहा है तो सीपीआई भी दहाई के आंकड़े में पहुंचने की ख्वाहिश लिए तैयारी कर रहा है. सोमवार से शुरू हुए सीपीआई के राज्य सम्मेलन में भी पार्टी नेताओं ने मजबूत दावेदारी पेश करने की वकालत की. लेकिन सवाल ये है कि क्‍या वाम खेमे के लिए मनमाफिक सीटें मिलना संभव है. 

पिछले चुनाव में रहा था शानदार प्रदर्शन 

2020 में वाम खेमे ने अपना सबसे शानदार प्रदर्शन किया था. सीपीआई, सीपीएम और लिबरेशन को 16 सीटों पर जीत मिली थी. माले ने 19 सीटों पर चुनाव लड़ा, 3.16% वोट और 12 सीटें जीती थी. सीपीएम और सीपीआई को 2-2 सीटें मिली थी. माले की स्ट्राइक रेट के कारण वाम खेमे  को जबरदस्त सफलता मिली थी. बछवाड़ा जैसी सीट सीपीआई सिर्फ 400 वोटों के अंतर से हार गई थी. वरना आंकड़ा और बेहतर होता. इसी जीत से उत्साहित होकर वाम खेमा इस बार 50 से अधिक सीटें मांग रहा है. 

इन जिलों में लेफ्ट की मजबूत पकड़

सोन नदी के आसपास के इलाकों में माले हमेशा से मजबूत रही है. आरा, बक्सर, सासाराम, पटना, जहानाबाद, अरवल के इलाके में माले की मजबूत पकड़ है. पिछले बार पार्टी ने इस इलाके में 10 में से 8 सीटें जीती थी. पार्टी को सिर्फ दो शहरी सीट, दीघा और आरा में हार मिली. इसके अलावा पार्टी सीवान, गोपालगंज, कटिहार और मुजफ्फरपुर के कुछ इलाकों में भी काफी मजबूत है.

बेगूसराय, मिथिलांचल में सीपीआई, सीपीएम की उपस्थिति दिखती है. पिछले चुनाव में सीपीआई ने मधुबनी के हरलाखी और झंझारपुर से चुनाव लड़ा था. इसके अलावा बेगूसराय के तेघड़ा, बखरी और बछवाड़ा से भी पार्टी ने उम्मीदवार उतारे थे. वहीं सीपीएम ने भी बेगूसराय के मटिहानी सीट पर उम्मीदवार उतारा था. इन इलाकों में वाम खेमे का वोट पूरी तरह महागठबंधन के खेमे में ट्रांसफर भी हुआ था. इसलिए वे इस बार ज्यादा दबाव बना रहे हैं.

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