- बिहार चुनाव के लिए महागठबंधन ने अपना साझा घोषणापत्र 'बिहार का तेजस्वी प्रण' जारी किया है.
- घोषणापत्र में अति पिछड़ा वर्ग को अधिक आरक्षण और सुरक्षा अधिनियम बनाने का प्रस्ताव मुख्य रूप से शामिल है.
- तेजस्वी ने सरकारी नौकरी के बजाय वर्तमान कर्मचारियों जैसे जीविका दीदी आदि को लुभाने की रणनीति अपनाई है.
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए महागठबंधन ने 'बिहार का तेजस्वी प्रण' शीर्षक से अपना साझा अपना घोषणापत्र जारी कर दिया है. हालांकि यह चुनावी घोषणापत्र कई तरह के संकेत देता है. महागठबंधन का चुनावी घोषणापत्र देखने और पढ़ने के बाद अब यही लग रहा है कि बिहार का चुनावी केंद्र अति पिछड़ा वर्ग हो चुका है या होने वाला है. तेजस्वी का घोषणापत्र इसी वर्ग को लुभाने का प्रयास है. आरक्षण बढ़ा देंगे, आरक्षण दे देंगे के बाद कहीं कुछ नहीं है.
आरक्षण की समीक्षा वाले आरएसएस प्रमुख के बयान को ही लालू प्रसाद और नीतीश कुमार ने सन 2015 में चुनावी मुद्दा बनाया था और भाजपा सत्ता के दृश्य से बाहर हो गई थी.
नीतीश की ताकत को तोड़ने की कोशिश
तेजस्वी इस बार नई सरकारी नौकरी की बात की जगह पहले से जो लोग सरकार के साथ कम तनख्वाह पर हैं, जैसे जीविका दीदी इत्यादि को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं. नीतीश सरकार द्वारा संचालित महिलाओं की यह बहुत बड़ी ताकत है जो अब तक नीतीश कुमार के लिए सॉफ्ट कॉर्नर रखती हैं. इनके अंदर तेजस्वी के वायदे अगर फूट डालते हैं तो यह एनडीए के लिए चिंता का विषय है.
उद्योगों को बढ़ावा देने को प्रमुखता नहीं
आर्थिक क्रांति की जगह आर्थिक समानता में सरकारी योजनाएं शामिल हो जाती हैं जो तुरंत लागू की जा सकती हैं. इसलिए लिए सरकारी कांट्रैक्ट इत्यादि के साथ अन्य जगहों पर वो विशेष प्रावधान करना चाहते हैं. लेकिन बिहार की वर्तमान जरूरत सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग को बढ़ावा देने की बात कहीं नजर नहीं आ रही या उसे प्रमुखता से पटल पर नहीं लाया जा रहा है.
नाई , कुम्हार , लोहार इत्यादि जाति का प्रतिशत मिला देने पर काफी हो जाता है तो तेजस्वी उनके लिए आर्थिक मदद की बात कह रहे हैं. अब फैसला जनता को करना है और एनडीए अपने घोषणा पत्र में क्या लाती है , यह देखना होगा .













