- बिहार चुनाव के लिए महागठबंधन और एनडीए में सीट बंटवारे को लेकर बातचीत अंतिम चरण में लेकिन असमंजस बरकरार है
- महागठबंधन में वीआईपी की 20 सीट और डिप्टी सीएम की मांग, कांग्रेस 60 सीटों के साथ उपमुख्यमंत्री पद चाहती है
- एनडीए में एलजेपी और हम पार्टी की सीटों को लेकर मतभेद हैं, खासकर चिराग और मांझी की मांगों को लेकर विवाद है
बिहार में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. मतदान की तारीखें सामने आ गई हैं, लेकिन जनता को जिसका सबसे ज्यादा इंतजार है, उसकी संख्या अब तक सामने नहीं आई है. मतलब एनडीए हो या महागठबंधन, दोनों ही अलायंस में अब तक सीट बंटवारा नहीं हो पाया है. कहा जा रहा है कि बातचीत अंतिम चरण में है, लेकिन गुत्थी अब तक उलझी ही नजर आ रही है. महागठबंधन में जहां कई दौर की बातचीत हो चुकी है, वहीं एनडीए में पटना से लेकर दिल्ली तक ताबड़तोड़ बैठकें हो रही हैं. आइए हम आपको बताते हैं दोनों की गठबंधन के वो पेंच जो अब तक नहीं सुलझे हैं.
मुकेश सहनी की 20 सीट और डिप्टी सीएम की मांग
आरजेडी ने मुकेश साहनी की पार्टी वीआईपी को 12 सीटों का प्रस्ताव दिया है, लेकिन वीआईपी 20 से ज़्यादा सीटों के साथ, उपमुख्यमंत्री पद की भी मांग कर रही है. विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के प्रमुख मुकेश सहनी ने कहा है कि अगर इंडिया गठबंधन सत्ता में आती है तो डिप्टी सीएम पद उन्हें दिया जाना चाहिए. सहनी का तर्क है कि निषाद समाज राज्य की बड़ी आबादी है. उन्होंने खुद को 'निषादों की आवाज़' बताते हुए कहा कि पिछड़ी जातियों और मल्लाह समाज को प्रतिनिधित्व मिलना ज़रूरी है.
कांग्रेस की 60 से ज्यादा सीट और डिप्टी सीएम की डिमांड
कांग्रेस ने महागठबंधन में पिछली बार 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था. हालांकि इस बार वो अपनी सीटों की संख्या कम करने को तैयार है, लेकिन उसकी पसंद की 55 से 62 सीट और उपमुख्यमंत्री पद की डिमांड है. सोमवार देर रात तक कांग्रेस और RJD नेताओं की हुई बैठक के बाद सूत्रों ने बताया कि RJD ने कांग्रेस को 54 सीटें ऑफर की है. हालांकि कांग्रेस 10 और सीटों की मांग कर रही है. ऐसे में बीच का रास्ता निकालने की कोशिश जारी है.
एक दलित और एक मुस्लिम भी बने डिप्टी सीएम- कांग्रेस
इधर कांग्रेस अपनी पार्टी की ओर से एक दलित के साथ ही एक मुस्लिम डिप्टी सीएम बनाए जाने की भी मांग कर रही है. पार्टी ने तर्क दिया है कि बिहार की राजनीति में लंबे समय से ऊंची जातियों और ओबीसी नेताओं का वर्चस्व रहा है, जबकि दलित और मुस्लिम समाज को बराबरी का राजनीतिक दर्जा नहीं मिला. कांग्रेस का कहना है कि अगर गठबंधन सच्चे अर्थों में सामाजिक न्याय की राजनीति करना चाहता है, तो एक डिप्टी सीएम दलित और दूसरा मुस्लिम होना चाहिए.
सीपीआईएमएल ने 19 सीटों का प्रस्ताव ठुकराया, 30 की मांग
वहीं सीपीआईएमएल ने भी आरजेडी के 19 सीटों के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है और करीब 30 सीटों की मांग की है. बीते विधानसभा और लोकसभा चुनावों में सीपीआईएमएल का स्ट्राइक रेट सबसे अच्छा रहा था. यही वजह है कि वो ज़्यादा सीटों के लिए दबाव बना रही है. वहीं सीपीआई और सीपीएम को मिलाकर आरजेडी पिछली बार की तरह ही ही 10 सीटें दे सकती है. मंगलवार शाम को तेजस्वी यादव के कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के महासचिव डी. राजा, राज्य सचिव रामनरेश पांडे सहित वरीय नेताओं के साथ बैठक की है. माना जा रहा है कि लेफ्ट की अड़चन दूर कर ली गई है.
पहले सीट बंटवारा तब सीएम फेस का ऐलान
महागठबंधन दल इस बात पर भी अड़े हुए हैं कि पहले सीटों का बंटवारा हो जाए, तभी सीएम पद के उम्मीदवार की घोषणा की जाए. साथ ही उपमुख्यमंत्री के नामों का भी लगे हाथ ऐलान हो जाए. हालांकि ये तय है कि महागठबंधन में मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर कोई विवाद नहीं है. आरजेडी 125 से अधिक सीटों पर लड़ेगी, लिहाजा उन्हीं का नेता गठबंधन का नेतृत्व करेगा. ऐसे में तेजस्वी यादव ही मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे.
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एनडीए में सीटों को लेकर चिराग पासवान की शर्तें
इधर महागठबंधन की तरह एनडीए में भी सीटों का पेंच फंसा हुआ है और उसके सबसे बड़े कारण एलजेपी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान बताए जा रहे हैं. चिराग 25 से 30 विधानसभा सीटों की मांग पर अड़े हैं. बीते दिनों NDA सूत्रों से यह जानकारी सामने आई चिराग की पार्टी को 22-25 सीटें देने पर सहमति बन गई है. लेकिन सीटों की संख्या के अलावा भी चिराग खेमे की कुछ सख्त शर्तें हैं, जिसको लेकर मामला अटका है. दरअसल वो चाहते हैं कि 2024 में लोकसभा की जीती हुई सीट और 2020 के विधानसभा चुनाव के उनकी पार्टी द्वारा दिखाए गए प्रदर्शन के आधार पर सीटें दी जाएं. यानी लोकसभा की जो 5 सीटें इस समय उनके पास हैं, उनमें सभी में कम से कम दो-दो विधानसभा सीटें हों. इसके अलावा एलजेपी के बड़े नेताओं के लिए भी सीटें मांगी गईं हैं.
जीतन राम मांझी को 7 सीटों का ऑफर, 22 की डिमांड
हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) को बीजेपी ने एनडीए में 7 सीटों का ऑफर दिया है. हालांकि जीतन राम मांझी ने बीजेपी को 22 सीटों की लिस्ट दी थी. 2010 में शून्य से 2015 में एक और 2020 के चुनाव में हम चार सीटें ही जीत पाई थी. लिहाजा वो राज्यस्तरीय पार्टी नहीं हो सकी थी. इसीलिए अब मांझी का लक्ष्य अधिक से अधिक सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारकर ये योग्यता हासिल करने की है, जिसके लिए उनके पास सात से आठ विधायक होने चाहिए. एक दिन पहले ही बीजेपी के बिहार चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान, विनोद तावड़े और डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी ने जीतन राम मांझी से मुलाकात की थी.
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एनडीटीवी के सूत्रों के मुताबिक यह बैठक महज 15 मिनट तक चली और इस मुलाकात के बाद जीतन राम मांझी नाराज बताए जा रहे हैं. मांझी ने 22 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की लिस्ट इन नेताओं को थमाई थी, लेकिन उन्हें केवल 7 सीटों का ऑफर दिया गया. पिछले चुनाव में मांझी का वोट शेयर करीब एक फीसदी था, वहीं उससे पहले 2015 में उनकी पार्टी को 2.3 प्रतिशत वोट शेयर हासिल हुए थे.
कुशवाहा की 12 से 15 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की तैयारी
एनडीए की एक और पार्टी, उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा को भी 7 सीट देने की बात कही जा रही है, जबकि कुशवाहा 12 से 15 सीटों पर लड़ना चाहते हैं. बीते लोकसभा चुनाव में एनडीए ने राष्ट्रीय लोक मोर्चा को केवल एक ही सीट दी थी. चुनाव हारने के बावजूद उपेंद्र कुशवाहा को राज्यसभा में जगह दी गई. फिलहाल कुशवाहा सीटों की अपनी मांग पर सार्वजनिक रूप से कुछ नहीं कह रहे हैं, लेकिन करीब एक दर्जन सीटों पर उनकी पार्टी के कार्यकर्ता एक्टिव हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि कम से कम 10 सीटों पर उनके उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतर सकते हैं.
उपेंद्र कुशवाहा लगातार नई पार्टी बनाते रहे हैं. पिछले चुनाव तक उन्होंने राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) के साथ जोर आजमाइश की थी. हालांकि उन्हें कोई सीट हासिल नहीं हुई, लेकिन उसके वोट शेयर करीब दो प्रतिशत थे और यह किसी भी उम्मीदवार के वोटों को एक पक्ष से दूसरे पक्ष में करने में बड़ा किरदार निभा सकता है. इस बार उपेंद्र कुशवाहा राष्ट्रीय लोक मोर्चा बनाकर चुनाव के मैदान में हैं.