बिहार में डिप्टी सीएम की 'मैड रेस': मुख्यमंत्री से ज्यादा उपमुख्यमंत्री की चर्चा, कैसे बना सियासी प्रतीक?

तेजस्वी यादव पहले से ही उपमुख्यमंत्री रह चुके हैं और गठबंधन का चेहरा भी माने जाते हैं, लेकिन अब जब मुकेश सहनी और कांग्रेस दोनों ने नए-नए फार्मूले पेश कर दिए हैं, तो आरजेडी के सामने यह सवाल खड़ा है कि क्या गठबंधन में एक से ज़्यादा डिप्टी सीएम होंगे?

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  • बिहार की सियासत में डिप्टी सीएम की कुर्सी को लेकर इंडिया गठबंधन में सियासी चर्चा और मांगें तेज हो गई हैं
  • वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी ने निषाद समाज का प्रतिनिधित्व दिलाने के लिए डिप्टी सीएम पद की मांग की है
  • कांग्रेस ने गठबंधन में एक दलित और एक मुस्लिम डिप्टी सीएम की नियुक्ति की स्पष्ट मांग की है
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पटना:

बिहार की सियासत में मुख्यमंत्री की कुर्सी जितनी चर्चा में रहती है, उतनी ही अब डिप्टी सीएम की कुर्सी भी सुर्खियों में है. इंडिया गठबंधन में इन दिनों इसी मुद्दे पर सियासी 'मैड रेस' मची हुई है. सबसे पहले वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी ने डिप्टी सीएम पद की मांग उठाई थी, और अब कांग्रेस भी खुलकर कह रही है कि गठबंधन में एक दलित और एक मुस्लिम डिप्टी सीएम होना चाहिए. यह मांग न केवल सीट बंटवारे से जुड़ी है, बल्कि गठबंधन की जातीय और सामाजिक समीकरणों पर भी सीधा असर डाल सकती है.

मुकेश सहनी और कांग्रेस की डिप्टी सीएम की मांग

विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के नेता मुकेश सहनी ने हाल ही में कहा कि अगर इंडिया गठबंधन सत्ता में आती है तो डिप्टी सीएम पद उन्हें दिया जाना चाहिए. सहनी का तर्क है कि निषाद समाज राज्य की बड़ी आबादी है और इस समाज ने हमेशा विपक्षी गठबंधन का साथ दिया है. उन्होंने खुद को 'निषादों की आवाज़' बताते हुए कहा कि पिछड़ी जातियों और मल्लाह समाज को प्रतिनिधित्व मिलना ज़रूरी है. सहनी की इस मांग ने गठबंधन के अन्य दलों को भी सक्रिय कर दिया. अब कांग्रेस ने दलित और मुस्लिम डिप्टी सीएम की मांग का एक और बड़ा पत्ता फेंका है.

कांग्रेस ने तर्क दिया है कि बिहार की राजनीति में लंबे समय से ऊंची जातियों और ओबीसी नेताओं का वर्चस्व रहा है, जबकि दलित और मुस्लिम समाज को बराबरी का राजनीतिक दर्जा नहीं मिला. पार्टी का कहना है कि अगर गठबंधन सच्चे अर्थों में सामाजिक न्याय की राजनीति करना चाहता है, तो एक डिप्टी सीएम दलित और दूसरा मुस्लिम होना चाहिए. कांग्रेस का यह बयान उस समय आया है, जब विधानसभा चुनाव से पहले गठबंधन में सीट बंटवारे और नेतृत्व को लेकर हलचल तेज है.

क्या गठबंधन में एक से ज़्यादा डिप्टी सीएम होंगे?

यह बयान न केवल आरजेडी की भूमिका पर दबाव बढ़ाता है, बल्कि मुस्लिम वोट बैंक पर कांग्रेस की पकड़ मजबूत करने की कोशिश भी है. कांग्रेस यह दिखाना चाहती है कि वह सिर्फ़ सपोर्टिंग पार्टी नहीं, बल्कि सामाजिक प्रतिनिधित्व की असली आवाज़ है. इस पूरी बहस का सबसे बड़ा असर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) पर पड़ रहा है. तेजस्वी यादव पहले से ही उपमुख्यमंत्री रह चुके हैं और गठबंधन का चेहरा भी माने जाते हैं, लेकिन अब जब मुकेश सहनी और कांग्रेस दोनों ने नए-नए फार्मूले पेश कर दिए हैं, तो आरजेडी के सामने यह सवाल खड़ा है कि क्या गठबंधन में एक से ज़्यादा डिप्टी सीएम होंगे?

सभी पार्टियों की अपनी जातीय पकड़ मजबूत करने की कोशिश

आरजेडी जानती है कि अगर दलित और मुस्लिम चेहरों को ज़्यादा अहमियत दी जाती है, तो यादव वोट बैंक पर असर पड़ सकता है. बिहार में दलित आबादी करीब 16%, मुस्लिम आबादी करीब 17%, और ओबीसी व पिछड़ी जातियां मिलाकर लगभग 50% हैं. इस सामाजिक ताने-बाने में हर पार्टी अपनी जातीय पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रही है. मुकेश सहनी की पार्टी का निशाद समाज कई इलाकों में निर्णायक भूमिका निभाता है, विशेषकर दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर और मुज़फ़्फ़रपुर में.

कांग्रेस को उम्मीद है कि अगर एक मुस्लिम डिप्टी सीएम का चेहरा सामने आता है, तो सीमांचल और पूर्वी बिहार के जिलों - किशनगंज, अररिया, पूर्णिया, कटिहार में मुस्लिम वोटों का बड़ा हिस्सा गठबंधन की झोली में आएगा.

उपमुख्यमंत्री की कुर्सी सबसे बड़ा सियासी प्रतीक बनी

डिप्टी सीएम का पद आज बिहार की राजनीति में प्रतीक बन चुका है — कौन किस समाज का चेहरा है, और किसे सबसे ज़्यादा अहमियत मिल रही है. मुकेश सहनी की मांग पिछड़ों और मल्लाह समाज की आवाज़ है, तो कांग्रेस की मांग सामाजिक संतुलन और अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व का एजेंडा आगे बढ़ाती है. अभी तस्वीर साफ़ नहीं, पर इतना तय है — बिहार की राजनीति में अब मुख्यमंत्री से ज़्यादा, उपमुख्यमंत्री की कुर्सी ही सबसे बड़ा सियासी प्रतीक बन चुकी है.

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