- बिहार विधानसभा चुनाव में RJD को महज 25 सीटें मिलीं, जिसके बाद पार्टी और लालू परिवार में विवाद शुरू हो गया है
- आरजेडी के पूर्व उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने तेजस्वी यादव की मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा पर सवाल उठाए हैं
- तिवारी ने लालू प्रसाद यादव की तुलना महाभारत के धृतराष्ट्र से करते हुए परिवार में कलह की बात कही है
एनडीए की 'सुनामी' ने बिहार में विपक्षी राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन को धूल चटा दी. 243 सदस्यीय विधानसभा के चुनाव में एनडीए ने 202 सीटें जीतकर धमाकेदार वापसी की. वहीं प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल को सिर्फ 25 सीटें ही मिल सकी. इसके बाद पार्टी के साथ ही लालू परिवार में भी घमासान छिड़ गया. पार्टी के वरिष्ठ नेता भी अब खुलकर तेजस्वी यादव की आलोचना कर रहे हैं. आरजेडी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे शिवानंद तिवारी ने लालू यादव की तुलना 'धृतराष्ट्र' से कर दी.
एनडीटीवी से बात करते हुए शिवानंद तिवारी ने कहा कि तेजस्वी यादव खुद अपने शपथ ग्रहण की तारीख तक तय कर चुके थे. किसको-किसको बुलाएंगे, ये तय कर चुके थे. वो मानकर ही चल रहे थे कि उन्हें मुख्यमंत्री होना है, और अंतिम दिनों तक वो इस बात को कहते रहे.
लालू-राबड़ी रोहिणी के साथ दुर्व्यवहार होते सिर्फ देख रहे थे- शिवानंद
वहीं संजय यादव और रमीज के सवाल पर शिवानंद तिवारी ने कहा कि ये सब तो अब सबके सामने है. इस पर मैं और क्या कहूं.
बता दें कि शिवानंद तिवारी ने एक चौंकाने वाले फेसबुक पोस्ट के ज़रिए RJD सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव पर तीखा निशाना साधा है, साथ ही तेजस्वी यादव की महत्वाकांक्षा पर भी सवाल खड़े किए हैं. शिवानंद तिवारी ने अपने पोस्ट में लालू यादव की तुलना महाभारत के पात्र 'धृतराष्ट्र' से की. उन्होंने लिखा, "बिहार आंदोलन के दौरान लालू यादव और मैं फुलवारी शरीफ़ जेल के एक ही कमरे में बंद थे. लालू यादव उस आंदोलन का बड़ा चेहरा थे. लेकिन उनकी आकांक्षा बहुत छोटी थी. रात में भोजन के बाद सोने के लिए जब हम अपनी अपनी चौकी पर लेटे थे, तब लालू यादव ने अपने भविष्य के सपने को मुझसे साझा किया था. लालू ने मुझसे कहा कि 'बाबा, मैं राम लखन सिंह यादव जैसा नेता बनना चाहता हूं'. लगता है कि कभी कभी-ऊपर वाला शायद सुन लेता है. आज दिखाई दे रहा है कि उनकी वह इच्छा पूरी हो गई है."
तिवारी ने आगे लिखा, "संपूर्ण परिवार ने ज़ोर लगाया. उनकी पार्टी के मात्र पच्चीस विधायक ही जीते. मन में यह सवाल उठ सकता है कि मैं तो स्वयं उस पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष था. उसके बाद ऐसी बात मैं क्यों कह रहा हूँ! मैं राष्ट्रीय उपाध्यक्ष था. यह अतीत की बात हो गई. तेजस्वी ने मुझे न सिर्फ़ उपाध्यक्ष से हटाया, बल्कि कार्यकारिणी में भी जगह नहीं दी. ऐसा क्यों? क्योंकि मैं कह रहा था कि मतदाता सूची का सघन पुनर्निरीक्षण लोकतंत्र के विरूद्ध साज़िश है. इसके खिलाफ राहुल गांधी के साथ सड़क पर उतरो. संघर्ष करो. पुलिस की मार खाओ. जेल जाओ. लेकिन वह तो सपनों की दुनिया में मुख्यमंत्री का शपथ ले रहा था. उसको झकझोर कर उसके सपनों में मैं विघ्न डाल रहा था. लालू यादव धृतराष्ट्र की तरह बेटे के लिए राज सिंहासन को गर्म कर रहे थे. अब मैं मुक्त हो चुका हूं. फुरसत पा चुका हूं. अब कहानियां सुनाता रहूंगा."













