9 धूर जमीन की लड़ाई, तीन पीढ़ियां हो गई खत्म, 55 साल बाद जानिए क्या आया कोर्ट का फैसला

विवाद की शुरुआत 1971 में हुई, जब जगदीश यादव ने अपनी ननिहाल की 9 धूर खतियानी जमीन पर यदु यादव द्वारा जबरन कब्जे और निर्माण कार्य शुरू करने का विरोध किया था यह मामला 55 साल तक चलता रहा.

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बेगूसराय:

बिहार के बेगूसराय जिले के चेरिया बरियारपुर प्रखंड के भेलवा गांव में 9 धूर (392.04 वर्ग फीट) जमीन को लेकर 55 साल तक चली कानूनी लड़ाई आखिरकार 17 मई 2025 को समाप्त हुई. इस छोटे से भूखंड के लिए दो परिवारों ने न केवल अपनी तीन पीढ़ियों का समय गंवाया, बल्कि दोनों पक्षों को मिलाकर कई बीघा जमीन बेचनी पड़ी. 

विवाद की शुरुआत 1971 में हुई, जब जगदीश यादव ने अपनी ननिहाल की 9 धूर खतियानी जमीन पर यदु यादव द्वारा जबरन कब्जे और निर्माण कार्य शुरू करने का विरोध किया. जगदीश के नाना को बेटा नहीं था, इसलिए कानूनन उनकी संपत्ति जगदीश को मिली थी. यदु यादव ने दावा किया कि उन्होंने जमीन को 180 रुपये में मौखिक रूप से खरीदा था, लेकिन उस समय 100 रुपये से अधिक की जमीन का मौखिक सौदा कानूनी रूप से मान्य नहीं था. इस विवाद ने पहले धारा 144, 145 और 88 के तहत कार्रवाई देखी, फिर बेगूसराय अनुमंडल कोर्ट में टाइटल सूट (केस नंबर 83/1971) के रूप में दर्ज हुआ.

1979 में कोर्ट ने जगदीश के पक्ष में फैसला सुनाया, लेकिन यदु यादव ने 1980 में टाइटल सूट अपील (1/80) दायर की, जिसके बाद मामला विभिन्न अदालतों में 2025 तक खिंचता रहा. इस दौरान जगदीश और यदु दोनों की मृत्यु हो गई, उनके बेटों का भी देहांत हुआ, और कई वकील व जज बदल गए. जगदीश के पोते मंटू और राम भजन यादव ने अपने दादा की लड़ाई को जारी रखा. इस लंबी कानूनी जंग में दोनों पक्षों ने कई बीघा जमीन बेच दी, जो आज लाखों रुपये की थी. 

17 मई 2025 को मंझौल अनुमंडल के एडीजे कोर्ट ने अधिवक्ता प्रभात कुमार की पैरवी में जगदीश यादव के पक्ष में फैसला सुनाया, और यदु यादव के वंशजों की अपील खारिज कर दी. मंटू यादव ने खुशी जताते हुए कहा, “हमारे दादा की लड़ाई को हमने जारी रखा, और आज न्याय मिला।” अधिवक्ता प्रभात कुमार ने देरी के लिए कोर्ट पर काम का बोझ और पक्षकारों की मृत्यु के बाद कानूनी उत्तराधिकारी तय करने में समय लगना बताया.

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