- बिहार के दूसरे चरण में एनडीए और महागठबंधन में कड़ी टक्कर है
- सुपौल, झंझारपुर, चकाई, अमरपुर और छातापुर समेत कई क्षेत्रों में दिग्गज नेता की प्रतिष्ठा दांव पर है
- 11 नवंबर को मतदान के बाद स्पष्ट होगा कि क्या यह ‘ट्रैक रिकॉर्ड’ की जीत होगी या ‘परिवर्तन’ की लहर
पूरा बिहार इस समय चुनावी हलचल में है. पहले चरण के मतदान के बाद अब दूसरे चरण की तैयारी जोरों पर है. यह चरण न केवल सीटों की जंग है, बल्कि विचारधाराओं, जातियों और विकास के मुद्दों का भी बड़ा मुकाबला है. मिथिलांचल से लेकर चंपारण तक, नेताओं और दलों की रणनीति, जनता की उम्मीदों और समाज के बदलाव की कसौटी इस चुनाव में साफ नजर आएगी.
कई दिग्गज नेताओं पर सबकी नजर
दूसरे चरण में कई दिग्गज नेता मैदान में हैं. सुपौल से बिजेंद्र प्रसाद यादव (जदयू) और झंझारपुर से नीतीश मिश्र (भाजपा) अपनी पकड़ मजबूत करने में लगे हैं, जबकि चकाई से निर्दलीय सुमित कुमार सिंह, अमरपुर से जयंत राज और छातापुर से नीरज कुमार सिंह बबलू हर सीट पर अपने व्यक्तित्व और जनता से जोड़ बनाने की जद्दोजहद में हैं. बेतिया से रेणु देवी (भाजपा) और धमदाहा से लेशी सिंह (जदयू) जैसी महिला नेता महिला वोटरों को साधने की रणनीति पर काम कर रही हैं. हरसिद्धि से कृष्णनंदन पासवान (भाजपा) और चैनपुर से जमा खान (बसपा) अपने-अपने सामाजिक समीकरणों और क्षेत्रीय आधार को मजबूत करने में जुटे हैं.
दोनों गठबंधन लगा रहे हैं पूरी ताकत
इस चुनावी चरण में दोनों बड़े गठबंधन अपनी ताकत साबित करने को तैयार हैं. एनडीए ने अपने सहयोगियों के साथ सीटों का बंटवारा इस तरह किया है कि भाजपा के लिए 52, जदयू के लिए 45, जपा (रा) के लिए 15, हम के लिए 6 और रालोमो के लिए 4 सीटें हैं. वहीं महागठबंधन ने राजद को सबसे बड़ी 70 सीटें दी हैं, कांग्रेस को 37, वीआईपी को 8 और वाम दलों भाकपा माले 5, भाकपा 4 और माकपा 2 मिलकर एक मजबूत वाम-लोकतांत्रिक मोर्चा बनाने की कोशिश की है.
ग्राउंड पर चुनावी माहौल काफी गर्म है. ढोल-नगाड़ों और नारों की गूंज के बीच नेताओं की जुझारू रैलियां, घर-घर जाकर वोट मांगने की कोशिश और चौपालों में जनता की तीखी बहस लोकतंत्र का असली उत्सव दिखा रही है. अमरपुर के एक चाय वाले रामेश्वर साह कहते हैं, "हमारा मुद्दा साफ है, रोज़ी-रोटी और गाँव का विकास. हमें वोट अगली पीढ़ी के लिए देना चाहिए, सिर्फ पांच साल के लिए नहीं."
यह चरण तय करेगा कि जनता किस नेतृत्व और विकास की दिशा को स्वीकार करती है. 11 नवंबर को मतदान के बाद स्पष्ट होगा कि क्या यह ‘ट्रैक रिकॉर्ड' की जीत होगी या ‘परिवर्तन' की लहर. चुनावी शोर में नेताओं और पार्टियों की बातें अलग हैं, लेकिन असली फैसला जनता के हाथ में होगा.














