Harishayani Ekadashi 2023: मान्यतानुसार हरिशयनी एकादशी को देवशयनी एकादशी भी कहा जाता है. इसे पद्मनाभ एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. यह एकादशी आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर मनाई जाती है. मान्यतानुसार साल में 24 एकादशी पड़ती हैं और हर एकादशी का अपना विशिष्ट महत्व होता है. कहते हैं देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) के दिन ही भगवान विष्णु शयनकाल में चले गए थे. इस चलते इस एकादशी को देवशयनी और हरिशयनी एकादशी जैसे नामों से जाना जाता है. मान्यतानुसार इस एकादशी के बाद ही श्री हरि (Lord Vishnu) 4 महीनों के लिए निद्रा में चले जाते हैं. इस बार आषाढ़ मास की हरिशयनी एकादशी 29 जून, गुरुवार के दिन पड़ रही है.
हरिशयनी एकादशी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है जब मान्धाता नामक राजा हुआ करता था. इस राजा को बेहद नेकदिल और करुणा वाला माना जाता था और इसीलिए राजा की प्रजा अपने राजा से खुश रहा करती थी. कहा जाता है कि इस राज्य में तीन वर्षों तक बारिश नहीं हुई थी जिससे अकाल की स्थिति गई थी और प्रजा अब नाखुश रहने लगी थी. राजा ने सोचा प्रजा को उनके कष्टों से मुक्त कराने के लिए कुछ उपाय ढूंढने की जरूरत है. इसीलिए राजा जंगल की ओर चल दिए. जंगल में राजा को अंगिरा ऋषि मिले जिन्होंने राजा की आपबीती सुनी और उन्हें आषाढ़ी एकादशी का व्रत (Ekadashi Vrat) रखने के लिए कहा. इसके पश्चात ही राजा ने हरिशयनी एकादशी का व्रत रखा और वर्षा हुई. एकबार फिर राजा का राज्य धन-धान्य और सुख-समृद्धि से भर गया.
हरिशयनी एकादशी की पूजा
मान्यतानुसार हरिशयनी एकादशी के दिन सुबह उठकर स्नान पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण किए जाते हैं. भक्त भगवान विष्णु का ध्यान करते हैं और व्रत का संकल्प लेते हैं. इसके पश्चात पूजा करने के समय आसन लगाया जाता है. विष्णु भगवान की प्रतिमा आसन पर रखी जाती है. पूजा सामग्री में पीले फूल, चंदन और पीले भोग को शामिल किया जाता है. कहते हैं पीला रंग भगवान विष्णु का प्रिय रंग है इस चलते एकादशी पर पीले वस्त्र पहनना भी शुभ माना जाता है. पूजा करते हुए दीप जलाया जाता है, आरती की जाती है और भोग आदि लगा देने के बाद व्रत की कथा (Ekadashi Vrat Katha) पढ़ पूजा का समापन होता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)