ट्रैफिक पुलिस ने पूछा ऐसा सवाल फूट-फूट कर रोने लगी महिला, पोस्ट शेयर कर बताई आपबीती, यूजर्स बोले- ये तो सच में जरूरी है

इस भावुक पोस्ट ने ऑनलाइन कई यूज़र्स को प्रभावित किया. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए, एक यूज़र ने लिखा, "कभी-कभी हम टूट जाते हैं और अगर कोई बस पूछ ले कि ठीक है, तो काफी है... ये दयालु शब्द हमें दिलासा दे सकते हैं."

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ट्रैफिक पुलिस ने पूछा ऐसा सवाल फूट-फूट कर रोने लगी महिला, बताई ये वजह

चेन्नई की एक महिला ने हाल ही में लिंक्डइन (LinkedIn) पर बताया कि कैसे एक ट्रैफिक पुलिसकर्मी से उसकी छोटी सी मुलाक़ात उसे रुला गई. अपनी पोस्ट में, जननी पोरकोडी ने पुलिसकर्मी के एक सच्चे सवाल से पैदा हुए अपने उस नाज़ुक पल को याद किया. उन्होंने लिखा, "पिछले हफ़्ते, मैं एक ट्रैफिक पुलिसकर्मी के सामने ही टूट गई. मैं गाड़ी चला रही थी, मैं इतनी परेशान और तनावग्रस्त थी कि शब्दों में बयां नहीं कर सकती. एक के बाद एक चीज़ें मुझ पर हावी हो रही थीं - काम, दबाव, उम्मीदें. मुझे एक ट्रैफिक पुलिसकर्मी ने रोका, और मुझे याद भी नहीं कि वजह क्या थी."

ट्रैफिक पुलिस ने पूछा अनएक्सपेक्टेड सवाल

हालांकि, इसके बाद जो हुआ वह ट्रैफिक नियमों को तोड़ने को लेकर कोई टकराव नहीं था, बल्कि एक सवाल था जिसने उसे रुला दिया. उन्होंने याद किया कि पुलिसकर्मी ने पूछा था, "क्या हुआ? क्या तुम ठीक हो?" यही वह पल था "जब मेरी आंखों में आंसू आ गए, क्योंकि किसी ने सच्ची चिंता से पूछा था."  उन्होंने आगे लिखा, "अप्रत्याशित दयालुता के उस एक पल ने मुझे उन सभी भावनाओं को बाहर निकालने में मदद की जो मैंने हफ़्तों से दबा रखी थीं."

महिला ने आगे लिखा, "और अजीब बात है, उस रोने से मुझे हल्कापन महसूस हुआ. उसके बाद मैं वाकई ठीक महसूस करने लगी. ज़्यादा नियंत्रण में. ज़्यादा इंसान. हम चाहे कितने भी मज़बूत बनने की कोशिश करें, हम सब कमज़ोर हैं. और टूट जाना ठीक है. महसूस करना ठीक है. और अगर आप किसी को संघर्ष करते हुए देखते हैं, तो एक दयालु शब्द वाकई बहुत बड़ा बदलाव ला सकता है. आइए हम नरमी बरतें. खुद के साथ. और एक-दूसरे के साथ."

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इस भावुक पोस्ट ने ऑनलाइन कई यूज़र्स को प्रभावित किया. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए, एक यूज़र ने लिखा, "कभी-कभी हम टूट जाते हैं और अगर कोई बस पूछ ले कि ठीक है, तो काफी है... ये दयालु शब्द हमें दिलासा दे सकते हैं."

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लोगों ने किया रिएक्ट

दूसरे ने लिखा, "यह अविश्वसनीय है कि कैसे कभी-कभी सबसे सरल, सबसे मानवीय प्रश्न, "क्या आप ठीक हैं?", उस सैलाब को खोल सकता है जिसके बारे में हमें पता भी नहीं था कि हम उसमें हैं. यह याद दिलाने के लिए धन्यवाद कि ताकत कभी न टूटने में नहीं है. यह खुद को महसूस करने और जब वह हमें मिले तो दयालुता को स्वीकार करने में है."

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तीसरे ने लिखा, "जननी पोरकोडी ने सही कहा, कष्ट के दौरान किसी का भी एक दयालु शब्द इतना लाड़-प्यार कर सकता है कि उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. इस स्थिति से उबरने के लिए आपको और शक्ति मिले!!!"

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एक ने लिखा, "आपका अनुभव हमारे व्यस्त जीवन में सच्ची दयालुता की शक्ति को खूबसूरती से रेखांकित करता है. यह याद दिलाता है कि कमज़ोरी दिखाना बिल्कुल ठीक है और करुणा का एक छोटा सा कार्य किसी के भावनात्मक बोझ को सचमुच हल्का कर सकता है."

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