एयरपोर्ट के लिए निकला तो रास्ते में हुआ तालिबानी लड़ाकों से सामना, काबुल से लौटे पत्रकार ने सुनाई आपबीती

शुभोजीत ने बताया कि तालिबान को आए अभी कुछ दिन ही हुए हैं. लोग डरे हुए हैं कि उनकी आजादी छीन ली जाएगी, लेकिन इस बार तालिबान भी जानता है कि ये 1996 का अफगानिस्तान नहीं, 2021 का अफगानिस्तान है. तालिबान को भी मालूम है, उन्हें भी बदलना होगा.

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भारतीय पत्रकार शुभोजीत रॉय का जब तालिबानी लड़ाकों से हुआ सामना
नई दिल्ली:

अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे से तनाव का माहौल है. काबुल एयरपोर्ट की भयावह तस्वीरें इसी की गवाह हैं. इसी बीच अफगानिस्तान रिपोर्टिंग के लिए गए पत्रकार शुभोजीत रॉय सकुशल भारत लौट आए हैं. आइये उन्हीं से अफगानिस्तान के हालातों के बारे में जानते हैं. एनडीटीवी से बातचीत में उन्होंने बताया कि मैं शुक्रवार की शाम को वहां पहुंचा था, तब तालिबान की पकड़ वहां मजबूत हो रही थी. सड़कों पर शरणार्थी दिख रहे थे, जो कि जहां-जहां तालिबान का कब्जा हुआ वहां से आए थे. सुरक्षा के लिए वे पार्कों में शरण ले रहे थे. पासपोर्ट ऑफिस के बाहर लंबी कतारें लगी थी. लोग बदहवास और नाउम्मीद नजर आ रहे थे. किसी से बात करो तो यही कह रहे थे कि अफगानिस्तान में तालिबान के राज में नहीं रहना है.

जब हालात खराब होने लगे तो शुभोजीत को अफगानिस्तान से निकलना पड़ा. उन्होंने बताया कि रिपोर्टर का काम खबर के साथ अंत तक बने रहना होता है. वहां से निकलना एक मुश्किल निर्णय था. उन्होंने बताया कि वह सुबह 4.50 के करीब निकले तो वहां अफरातफरी थी. होटल से टैक्सी बहुत मुश्किल से मिली थी. मेरे मित्र की मदद से ये हो पाया. होटल से निकलने से पहले तालिबानी वहां आ गए. मेरा सामना भी उनसे हुआ, लेकिन उन्होंने उस समय मुझे कुछ नहीं कहा. एयरपोर्ट से जाते समय एक बार फिर मेरा उनसे सामना हुआ. तालिबानी फाइटर ने टैक्सी ड्राइवर को रोककर पूछा कि ये कौन हैं. इसके बाद उन्होंने मुझे पूछा कहां जाना चाहते हैं. मैंने कहा इंडिया. तो उन्होंने कहा कि अमेरिका जाना होगा. मैंने जवाब दिया कि मैं अमेरिका क्यों जाऊंगा, मैं भारत ही जाना चाहता हूं. तालिबानियों को लग रहा है कि हर कोई अमेरिका जाना चाहता है.

एयरपोर्ट के हालात की बात करूं तो वहां लोग बच्चों और बीवियों के साथ हैरान-परेशान से दिख रहे थे. कोई पासपोर्ट नहीं, कोई वीजा नहीं, बस देश से निकलना चाहते थे. तालिबान के लड़ाके लोगों को एयरपोर्ट जाने से रोक रहे थे.  हमें भी रोके रखा, साढ़े छह बजे जाने दिया. जब तालिबान ने रास्ता खोला तो हजारों की भीड़ अंदर चली गई. भगदड़ मच गई, सब फ्लाइट में चढ़ना चाहते थे. तालिबानी लड़ाके बीच-बीच में हवाई फायरिंग भी कर रहे थे. इस माहौल को देखकर मैं टर्मिनल बिल्डिंग के अंदर ही रुक गया. 

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तालिबान को लेकर वहां के लोग क्या सोच रहे हैं? इस पर शुभोजीत ने कहा कि आशंका तो यही है कि अब पहले जैसा हो जाएगा. लड़कियों को पढ़ने नहीं दिया जाएगा, महिलाओं को आजादी से बाहर नहीं निकलने दिया जाएगा. खैर, वैसे अभी तो कुछ दिन ही हुए हैं तालिबान को आए हुए, लेकिन इस बार तालिबान भी जानता है कि ये 1996 वाला अफगानिस्तान नहीं है, ये 2021 वाला अफगानिस्तान है. तालिबान भी ये बात अच्छी तरह से समझता है. तालिबान को भी मालूम है कि उन्हें बदलना होगा.

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