राजस्थान के गांव की अजब कहानी, लोगों के पास मोबाइल तो है, लेकिन नहीं आता नेटवर्क, बात करने के लिए करना पड़ता है ये मुश्किल काम

आपको यह जानकार हैरानी होगी कि राजस्थान और गुजरात की सरहद पर बसे डूंगरपुर जिले में ऐसे भी गांव हैं, जहां 5G तो दूर की बात है, मोबाइल में नेटवर्क तक नहीं आता.

विज्ञापन
Read Time: 4 mins

लोगों के पास मोबाइल तो है, लेकिन नहीं आता नेटवर्क

आजकल की हमारी लाइफस्टाइल में मोबाइल फोन के बिना हर काम जैसे रुक सा जाता है. अगर थोड़ी देर के लिए भी मोबाइल न हो तो, जैसे लाइप रुक सी जाती है. फिर चाहे वो नौकरी, बिजनेस, एंटरनेटमेंट और पढ़ाई ही क्यों न हो, मोबाइल की जरूरत हर जगह होती है. यहां तक की शॉपिंग के लिए भी अब तो मोबाइल ही जरूरी होता है. ऐसे में अगर आपके पास मोबाइल नहीं या फिर मोबाइल का नेटवर्क नहीं तो आपके हर काम में मुश्किल आएगी. लेकिन आपको यह जानकार हैरानी होगी कि राजस्थान और गुजरात की सरहद पर बसे डूंगरपुर जिले में ऐसे भी गांव हैं, जहां 5G तो दूर की बात है, मोबाइल में नेटवर्क तक नहीं आता.

चारवाडा और बलवानिया गांव की कहानी
ये कहानी चार वाडा और बलवानिया गांव की है, जहां 7 किलोमीटर के दायरे में रहने वाली बीहड़ आबादी आज भी बिना नेटवर्क के अपना जीवन व्यतीत कर रही है. इन गांवों की बात करें तो यह डूंगरपुर जिले का हिस्सा है. करीब 5 हजार की आबादी वाले इस गांव में आकर डिजिटल इंडिया के सभी दावे फेल हो जाते हैं. यहां रहने वाले लोगों के पास फोन तो हैं, मगर नेटवर्क नहीं आता. जब भी किसी शख्स को फोन पर किसी से बात करनी होती है तो वो ऊंचे पहाड़ों पर चढ़कर फोन को इधर-उधर घूमकर नेटवर्क की तलाश करता है. बड़ी मुश्किल से नेटवर्क मिल भी गया तो बात करते हुए कब ओझल हो जाए इसकी कोई गारंटी नहीं है. 

राशन बांटने के लिए पहाड़ का लेते हैं सहारा
मोबाइल नेटवर्क की तलाश में राशन डीलर को भी ऊंचे पहाड़ पर चढ़ना पड़ता है. तब जाकर पोज मशीन में बायोमेट्रिक की प्रक्रिया हो पाती है. ऐसे में राशन के लिए कतारें डीलर केंद्र पर नहीं होकर, पहाड़ पर लगती हैं. ग्रामीणों का दर्द यही खत्म नहीं होता. किसी के बीमार होने या कोई दुर्घटना होने की स्थिति में पुलिस और एम्बुलेंस को सूचना देने के लिए भी ऊंचे पहाड़ों पर चढ़ना और उसी प्रक्रिया से गुजरना यहां के लोगों की नियति बन चुका है. ऐसे में साफ है कि स्वास्थ्य महकमे की 104 और 108 एम्बुलेंस सुविधा हो या पुलिस की 100 अथवा 112 डायल का बंदोबस्त तमाम सेवाएं यहां के लोगों के लिए दूर की कौड़ी साबित होती है. 

Advertisement

दोनों गांवों में एक भी ई-मित्र केंद्र नहीं है
कोरोना काल में जब देशभर में बच्चों की पढ़ाई मोबाइल से करवाई जा रही थी, तब भी इस इलाके में मोबाइल नेटवर्क नहीं होना बच्चों के भविष्य पर सवाल खड़े कर रहा था. आज भी बिजली गुल हो जाए तो ऑनलाइन शिकायत करना बड़ा चुनौती है. ऐसे में बिजली सप्लाई बहाल होना कितना मुश्किल होगा, इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता. गांव में मोबाइल नेटवर्क नहीं होने से एक भी ई-मित्र केंद्र संचालित नहीं होता. ऐसे में यह भी साफ है कि ई-मित्र आधारित सैकड़ों सेवाएं हासिल करने के लिए लोगों को 15 किलोमीटर दूर गेजी या करावाड़ा गांव तक जाना पड़ता है, जो कठिन डगर है. 

Advertisement

ऐसा नहीं है कि ग्रामीणों ने इसकी आवाज नहीं उठाई. आवाज उठाई, बार-बार उठाई. हर बार इनकी मांग चुनावी मुद्दा भी बुनी. लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद कोई भी जनप्रतिनिधि तब तक लौटकर नहीं आता जब तक उसे अगली बार वोट न मांगने हों. इस गांव के लोग वोट देकर हमेशा खुद को ठगा सा महसूस करते हैं. अब देखना होगा कि इस 7 किलोमीटर के एरिया में रहने वाली आबादी की आवाज डिजिटल इंडिया के शोर में शामिल होती है या उसमें दबकर रह जाती है.

Advertisement

डूंगरपुर से सुशांत पारीक की रिपोर्ट

ये Video भी देखें:

Topics mentioned in this article