मिस्र के पिरामिड के नीचे 3,500 फीट पर ऐसा क्या रहस्य छिपा है? नए सबूत ने मचाई दुनिया में सनसनी

एक इतालवी वैज्ञानिक ने दावा किया है कि मिस्र के गीज़ा पिरामिडों के नीचे 3,500 फीट गहराई में विशाल मानव निर्मित संरचनाएं छिपी हैं. नए सैटेलाइट डेटा को वह इसका सबूत बता रहे हैं.

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मिस्र के पिरामिडों के नीचे छिपा है‘विशाल रहस्य’?

मिस्र के गीज़ा पिरामिडों को लेकर एक नया विवाद खड़ा हो गया है. इटली के एक वैज्ञानिक ने दावा किया है कि पिरामिडों के नीचे 3,500 फीट की गहराई में विशाल, बेलनाकार मानव निर्मित संरचनाएं मौजूद हैं, एक ऐसी गहराई, जहां तक पहुंचना वैज्ञानिकों के अनुसार लगभग असंभव है. अब उसी वैज्ञानिक ने नए “वैज्ञानिक सबूत” पेश किए हैं, जिससे बहस और तेज हो गई है. लेकिन दुनिया भर के विशेषज्ञ इस दावे को लेकर बेहद संदेह में हैं.

वैज्ञानिक क्या दावा कर रहे हैं?

इटली के शोधकर्ता कोराडो मालांगा और यूनिवर्सिटी ऑफ स्ट्रैथक्लाइड के रडार इंजीनियर फिलिपो बिआंडी ने दावा किया कि: पिरामिडों के नीचे लगभग 3,500 फीट की गहराई पर 8 विशाल बेलनाकार संरचनाएं मौजूद हैं, जो आपस में जुड़ी हुई हैं और एक में “हेलिकल कॉइल” जैसा इंजीनियरिंग पैटर्न है. शोधकर्ताओं का कहना है कि यह पैटर्न सिर्फ मानव द्वारा बनाए गए ढांचे में ही मिल सकता है, प्राकृतिक भूगर्भीय संरचनाओं में नहीं. उनके अनुसार यह खोज खफरे का पिरामिड (Pyramid of Khafre) के नीचे हुई है.

कैसे मिली यह ‘खोज'?

फिलिपो बिआंडी ने दावा किया है कि उनकी सिंथेटिक एपर्चर रडार डॉप्लर टोमोग्राफी तकनीक धरती की सतह पर आने वाले अत्यंत सूक्ष्म कंपन पढ़ती है और हजारों फीट नीचे तक की तस्वीर बना सकती है. उनका कहना है कि चार स्वतंत्र सैटेलाइट ऑपरेटर्स- Umbra, Capella Space, ICEYE, और Italy's Cosmo-SkyMed सबने एक ही जैसे पैटर्न रिकॉर्ड किए. बिआंडी ने कहा- “चारों सैटेलाइट्स से आए डेटा एक जैसे हैं… यह बेहद अद्भुत है.”

लेकिन विशेषज्ञ क्यों नहीं मान रहे?

दुनिया भर के भूवैज्ञानिक और मिस्रविद (Egyptologists) इस दावे पर कड़ा संदेह जता रहे हैं. उनके अनुसार- कोई भी सैटेलाइट रडार हजारों फीट गहराई तक स्पष्ट रूप से नहीं देख सकता. सिंथेटिक एपर्चर रडार आमतौर पर surface mapping के लिए उपयोग होता है. प्राकृतिक चट्टानी संरचनाएं नकली पैटर्न पैदा कर सकती हैं. मिस्र की जमीन के नीचे छोटे-छोटे गुफानुमा हिस्से आम बात हैं, पर इन्हें “मेगा स्ट्रक्चर” बताना गलत है. एक विशेषज्ञ ने कहा: “3,500 फीट गहराई पर मानव निर्मित संरचनाएं होने का कोई पुरातात्विक या वैज्ञानिक आधार नहीं है.”

3,500 फीट गहराई- क्या यह संभव भी है?

तुलना जान लें: खुद ग्रेट पिरामिड की ऊंचाई सिर्फ 480 फीट है. दुनिया की ज्यादातर खुदाइयां सिर्फ कुछ फीट से लेकर कुछ दर्जन फीट गहरी होती हैं. आधुनिक गगनचुंबी इमारतों के फाउंडेशन भी मुश्किल से 200 फीट. 3,500 फीट गहराई, यह तो कई तेल कुओं और खनन शाफ्ट से भी ज्यादा है. ऐसी जगह मनुष्यों द्वारा बनाए गए स्तंभों का अस्तित्व… वैज्ञानिकों को असंभव लगता है.

ऐसे दावे बार-बार क्यों आते हैं?

गीज़ा पिरामिड दुनिया के सबसे रहस्यमयी स्मारकों में गिने जाते हैं, इसलिए: छिपे शहर, गुप्त सुरंगें, रहस्यमयी तकनीक, जैसी थ्योरियां अक्सर उभरती रहती हैं. अब नई सैटेलाइट कंपनियों के आने से ऐसे डेटा मिल रहे हैं जिन्हें गैर-विशेषज्ञ गलत तरीके से व्याख्या कर देते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि: टॉमोग्राफी डेटा बेहद जटिल होता है और बिना ग्राउंड टेस्ट इसे पढ़ना गलत निष्कर्षों तक ले जा सकता है.

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अब आगे क्या होगा?

अभी तक कोई स्वतंत्र वैज्ञानिक पुष्टि नहीं हुई है. कोई खुदाई या आधिकारिक जांच नहीं हुई है, और मिस्र के पुरावशेष मंत्रालय की प्रतिक्रिया नहीं आई है. वैज्ञानिक समुदाय के अनुसार, यह कहानी फिलहाल ऐसे खड़ी है: दिलचस्प पैटर्न: हां, डेटा मेल खाता है: संभव है, वैज्ञानिक प्रमाण: नहीं है, 3,500 फीट नीचे संरचना: बिल्कुल भी नहीं है.

किसी भी बड़े खोज की पुष्टि तभी होगी जब: सहकर्मी की समीक्षा अध्ययन होगा, भूगर्भीय ग्राउंड वेरीफिकेशन होगा और मिस्र सरकार की आधिकारिक जांच हो जाएं.

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