दुनिया की सबसे शक्तिशाली MRI ने ह्यूमेन ब्रेन की पहली इमेज को किया स्कैन, 10 गुणा तक है एक्यूरेसी

स्वास्थ्य विभाग की तरफ से हरी झंडी मिलने के बाद पिछले कुछ महीनों में, लगभग 20 स्वस्थ्य वालंटियर्स पर इसका टेस्ट किया जा चुका है.

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नई दिल्ली:

दुनिया की सबसे शक्तिशाली एमआरआई स्कैनर (MRI Scanner) से ह्यूमेन ब्रेन की पहली तस्वीर सामने आयी है. उम्मीद है कि इस एमआरआई स्कैनर की सफलता के बाद ब्रेन की तस्वीर की सटीकता के साथ-साथ दिमाग से जुड़े उन तमाम रहस्यों से भी पर्दा उठने की संभावना है जो कि आज भी मेडिकल साइंस के लिए एक पहेली की तरह है.  फ्रांस के परमाणु ऊर्जा आयोग (CEA) के शोधकर्ताओं ने पहली बार 2021 में कद्दू को स्कैन करने के लिए मशीन का इस्तेमाल किया था. हाल ही में स्वास्थ्य अधिकारियों ने शोधकर्ताओं को उन्हें मनुष्यों के ब्रेन को स्कैन करने के लिए हरी झंडी दे दी थी. 

स्वास्थ्य विभाग की तरफ से हरी झंडी मिलने के बाद पिछले कुछ महीनों में, लगभग 20 स्वस्थ्य वालंटियर्स पर इसका टेस्ट किया जा चुका है. गौरतलब है कि वैज्ञानिकों की तरफ से यह प्रयोग पेरिस के दक्षिण में स्थित पठार डी सैकेले क्षेत्र में की गयी. प्रोजेक्ट पर काम कर रहे भौतिक विज्ञानी अलेक्जेंड्रे विग्नॉड ने कहा कि हमने सीईए में सटीकता का ऐसा स्तर देखा है जो पहले कभी नहीं देखा गया था. स्कैनर द्वारा 11.7 टेस्ला का मैग्नेटिक फील्ड बनाया गया. बताते चलें कि मैग्नेटिक फील्ड को टेस्ला में मापा जाता है. 

10 गुणा से अधिक सटीकता से करता है काम
प्रोजेक्ट पर काम कर रहे भौतिक विज्ञानी अलेक्जेंड्रे विग्नॉड ने कहा कि हमने सीईए में सटीकता का ऐसा स्तर देखा है जो पहले कभी नहीं देखा गया था. स्कैनर द्वारा 11.7 टेस्ला का मैग्नेटिक फील्ड बनाया गया. बताते चलें कि मैग्नेटिक फील्ड को टेस्ला में मापा जाता है.  इतनी अधिक क्षमता वाली मशीन का अब तक उपयोग नहीं किया गया था. यह मशीन आमतौर पर अस्पतालों में उपयोग किए जाने वाले एमआरआई की तुलना में 10 गुना अधिक सटीकता के साथ इमेज स्कैन करने में सक्षम है. अस्पतालों में उपयोग होने वाली मशीनों की ताकत तीन टेस्ला से अधिक नहीं होती है. 

ब्रेन के कई हिस्सों को इससे देखा जा सकता है
अलेक्जेंड्रे विग्नॉड ने कंप्यूटर स्क्रीन पर इसेल्ट नामक इस शक्तिशाली स्कैनर द्वारा ली गई तस्वीरों की तुलना सामान्य एमआरआई से ली गई तस्वीरों से की. उन्होंने कहा, "इस मशीन से, हम सेरेब्रल कॉर्टेक्स को पोषण देने वाले छोटे-छोटे रक्त वाहिकाओं को भी देख सकते हैं. साथ ही सेरिबैलम को भी हम पूरी तरह से देख सकते हैं. पहले ऐसा संभव नहीं था. 
फ़्रांस के रिसर्च मंत्री सिल्वी रिटेलेउ, जो स्वयं एक भौतिक विज्ञानी हैं, ने कहा, "सटीकता ऐसी है कि शायद ही इसपर विश्वास किया जा सके!" एएफपी के साथ बात करते हुए उन्होंने कहा कि दुनिया में पहली बार मस्तिष्क को इतने बेहतर ढंग से दिखाया है. 

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कैसे करता है काम? 
पांच मीटर (16 फीट) लंबे और ऊंचे सिलेंडर के अंदर, मशीन में 132 टन का चुंबक होता है, जो 1,500 एम्पियर की करंट प्रवाहित करने वाले कॉइल से संचालित होता है. इसके अंदर इंसान को दाखिल होने के लिए  90 सेंटीमीटर (तीन फुट) का खुला स्थान होता है. यह डिज़ाइन फ्रांसीसी और जर्मन इंजीनियरों के बीच साझेदारी से दो दशकों के रिसर्च में तैयार किया गया है. गौरतलब है कि संयुक्त राज्य अमेरिका और दक्षिण कोरिया भी इस तरह के शक्तिशाली एमआरआई मशीनों पर काम कर रहे हैं, लेकिन अभी तक इन देशों में ह्यूमेन ब्रेन को लेकर परीक्षण नहीं हुए हैं.

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इससे क्या होगा फायदा?
वैज्ञानिकों ने इस एमआरआई का उपयोग यह दिखाने के लिए किया है कि जब मस्तिष्क विशेष चीजों को पहचानता है - जैसे कि चेहरे, स्थान या शब्द - तो सेरेब्रल कॉर्टेक्स के अलग-अलग क्षेत्र सक्रिय हो जाते हैं. परियोजना के वैज्ञानिक निदेशक निकोलस बौलेंट ने कहा, 11.7 टेस्ला की शक्ति का उपयोग करने से इसेल्ट को "ब्रेन की संरचना और अन्य कार्यों के बीच संबंध को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी, 

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पार्किंसंस, अल्जाइमर जैसी बीमारियों के ईलाज में मदद मिलेगी
रिसर्च करने वालों को उम्मीद है कि स्कैनर की ताकत पार्किंसंस या अल्जाइमर जैसी न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों या अवसाद या सिज़ोफ्रेनिया जैसी मनोवैज्ञानिक स्थितियों के पीछे के कारणों को सामने लाने में सफल होंगे. जैसे कि हम जानते हैं कि ब्रेन का एक विशेष क्षेत्र - हिप्पोकैम्पस - अल्जाइमर रोग के लिए उत्तरदायी है. इसलिए हमें उम्मीद है कि हम यह पता लगाने में सक्षम होंगे कि सेरेब्रल कॉर्टेक्स के इस हिस्से में कोशिकाएं कैसे काम करती हैं.

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सीईए के एक वैज्ञानिक ने कहा कि "उदाहरण के लिए, हम जानते हैं कि मस्तिष्क का एक विशेष क्षेत्र - हिप्पोकैम्पस - अल्जाइमर रोग में शामिल है, इसलिए हमें उम्मीद है कि हम यह पता लगाने में सक्षम होंगे कि सेरेब्रल कॉर्टेक्स के इस हिस्से में कोशिकाएं कैसे काम करती हैं," वैज्ञानिकों को यह भी उम्मीद है कि बाइपोलर डिसऑर्डर के इलाज में भी इससे मदद मिल सकती है. 

बौलेंट ने कहा कि इस प्रयोग का "मकसद क्लिनिकल डायग्नोस्टिक टूल बनना नहीं है, लेकिन हमें उम्मीद है कि सीखा गया ज्ञान अस्पतालों में इस्तेमाल किया जा सकता है". आने वाले दिनों में मरीजों के इलाज में इससे काफी सहायता मिलेगी. हालांकि आने वाले दिनों में इसका अस्पताल में अभी उपयोग की संभावना नहीं है. 

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