EXPLAINED: तारिक रहमान की वापसी के मायने, क्या-कितना बदलेगा बांग्लादेश का भूगोल और भविष्य?

17 साल के निर्वासन के बाद तारिक रहमान की वतन वापसी न सिर्फ बांग्लादेश बल्कि दक्षिण एशिया के भू-राजनीतिक समीकरणों के लिए भी काफी अहम मानी जा रही है.

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  • बांग्लादेश की पूर्व पीएम खालिदा जिया के बेटे तारिक रहमान 17 साल के निर्वासन के बाद वतन लौट आए हैं
  • माना जा रहा है कि आगामी आम चुनाव में बीएनपी अगर जीती तो तारिक रहमान अगले प्रधानमंत्री बन सकते हैं
  • भारत के लिए तारिक रहमान फिलहाल एक ऐसी पहेली बने हुए हैं, जिसके सूत्र भविष्य के गर्भ में छिपे हैं
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बांग्लादेश की राजनीति में गुरुवार 25 दिसंबर 2025 का दिन एक ऐतिहासिक मोड़ के रूप में दर्ज हो गया. पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के बेटे और BNP के कार्यवाहक अध्यक्ष तारिक रहमान 17 साल के निर्वासन के बाद वतन लौट आए. ढाका की सड़कों पर उनके स्वागत के लिए जनसैलाब उमड़ पड़ा. उनकी घरवापसी न सिर्फ बांग्लादेश बल्कि दक्षिण एशिया के भू-राजनीतिक समीकरणों के लिए भी काफी अहम मानी जा रही है. आइए सभी अहम सवालों के जवाब जानते हैं.

तारिक रहमान कौन हैं और वह इतने वर्षों तक बाहर क्यों थे? 

तारिक रहमान बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया और पूर्व राष्ट्रपति जियाउर रहमान के बेटे हैं. उन्हें बांग्लादेश में 'तारिक जिया' नाम से भी जाना जाता है. वह 2008 में भ्रष्टाचार के आरोपों और गिरफ्तारी के बाद इलाज के बहाने लंदन चले गए थे और तब से वहीं निर्वासन में रह रहे थे. 2018 में, शेख हसीना की सरकार के दौरान उन्हें 2004 के ग्रेनेड हमले की साजिश रचने के आरोप में  उनकी गैरमौजूदगी में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद उन्हें इन आरोपों से बरी कर दिया गया, जिससे उनके लौटने का रास्ता साफ हुआ.

बांग्लादेश पहुंचने के बाद तारिक ने क्या संदेश दिया?

ढाका पहुंचने के बाद 60 वर्षीय तारिक रहमान ने समर्थकों के विशाल समूह को संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने देश में शांति व स्थिरता बनाए रखने का आह्वान किया और समावेशी बांगलादेश बनाने की व्यापक योजना पेश की. रहमान ने कहा कि वह समावेशी बांग्लादेश बनाना चाहते हैं, जहां हर जाति नस्ल, धर्म के लोग शांतिपूर्ण माहौल में रह सकें. उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि हम सभी मिलकर देश का निर्माण करें. हम एक सुरक्षित बांग्लादेश बनाना चाहते हैं. ऐसा बांग्लादेश जहां महिला हो, पुरुष हो या फिर बच्चे, उन्हें अपने घरों से सुरक्षित रूप से बाहर जाने और सुरक्षित रूप से वापस लौटने का अधिकार हो. 

तारिक रहमान की वापसी के क्या मायने हैं?

तारिक रहमान के माता-पिता दोनों ही बांग्लादेश में शीर्ष सत्ता पदों पर रहे हैं. उनके पिता जियाउर रहमान 1977 से 1981 तक बांग्लादेश के छठे राष्ट्रपति रहे, जिनकी हत्या कर दी गई थी. वहीं उनकी मां खालिदा जिया 1991 से 1996 और फिर 2001 से 2006 तक देश की प्रधानमंत्री रहीं और इस पद पर पहुंचने वाली पहली महिला बनीं. अब खालिदा जिया बीमार हैं और अस्पताल में हैं. उनकी विरोधी शेख हसीना को बेदखल कर दिया गया है. ऐसे में तारिक रहमान की 17 साल बाद वापसी को बीएनपी के नेतृत्व पर दोबारा दावा करने और जनसमर्थन जुटाने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है. 

तारिक के "बांग्लादेश फर्स्ट" नारे का क्या मतलब?

रहमान ने बांग्लादेश आने से पहले ही साफ कर दिया था कि उनकी सरकार किसी बाहरी ताकत के दबाव में नहीं झुकेगी. उनका प्रमुख नारा है- "न दिल्ली, न पिंडी - बांग्लादेश सबसे पहले". इसका मतलब है कि वह भारत (दिल्ली) और पाकिस्तान (रावलपिंडी) दोनों के साथ संतुलन बनाकर चलना चाहते हैं, न कि किसी एक के पक्ष में झुककर.

भारत के लिए तारिक रहमान की वापसी "दो बुरे विकल्पों में से कम बुरा" चुनने जैसी है. ऐतिहासिक रूप से BNP के भारत के साथ संबंध तनावपूर्ण रहे हैं. लेकिन भारत के लिए असली खतरा जमात-ए-इस्लामी है, जिसे पाकिस्तान की ISI की कठपुतली माना जाता है. जमात के मुकाबले भारत अब BNP को एक अधिक उदार और लोकतांत्रिक विकल्प के रूप में देख रहा है. हाल ही में पीएम मोदी द्वारा अस्पताल में भर्ती खालिदा जिया की सेहत पर चिंता जताने और BNP द्वारा उस पर आभार व्यक्त करने से रिश्तों में जमी बर्फ पिघलती दिखी है.

तारिक रहमान को लेकर भारत का नजरिया क्या है?

भारत इस समय 'देखो और इंतजार करो' की नीति पर चल रहा है. नई दिल्ली के लिए तारिक रहमान फिलहाल एक ऐसी पहेली हैं, जिसके सूत्र भविष्य के गर्भ में छिपे हैं. भारत चाहता है कि बांग्लादेश में लोकतंत्र बहाल हो, लेकिन डर है कि कहीं रहमान की आड़ में कट्टरपंथी तत्व फिर से मजबूत न हो जाएं. हालांकि जमात-ए-इस्लामी के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए भारत अब रहमान के साथ रिश्ते सुधारने के संकेत दे रहा है ताकि क्षेत्र में स्थिरता बनी रहे.

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रहमान को लेकर पाकिस्तान क्यों उत्साहित है? 

बांग्लादेश में इस समय हो रहे बदलावों से पाकिस्तान उत्साहित है. उसे उम्मीद है कि शेख हसीना के जाने और उनकी पार्टी अवामी लीग को चुनावों से बेदखल किए जाने के बाद बांग्लादेश में जो राजनीतिक खालीपन आया है, उसमें जमात-ए-इस्लामी जैसी पाकिस्तान परस्त पार्टियां अपनी जगह बनाएंगी. पाकिस्तान पूरा प्रयास करेगा कि तारिक रहमान भारत से दूरी बनाकर रखें ताकि इस्लामाबाद को ढाका में अपनी खोई हुई पकड़ वापस पाने का मौका मिल सके.

तारिक रहमान का चुनावी एजेंडा क्या है? 

बांग्लादेश में फरवरी 2026 में आम चुनाव होने वाले हैं. इसके लिए तारिक रहमान ने अपने एजेंडे में इन मुद्दों को तवज्जो दी है-

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  • भ्रष्टाचार के खिलाफ युद्ध: ई-गवर्नेंस, पारदर्शिता और व्हिसलब्लोअर प्रोटेक्शन कानून लागू करना उनकी प्राथमिकता में है.
  • अल्पसंख्यकों की सुरक्षा: धर्म को व्यक्तिगत मामला मानते हुए हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा का वादा किया है
  • संस्थागत सुधार: बांग्लादेश के लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए न्यायिक और प्रशासनिक सुधार करने पर भी उनका जोर है.
  • कट्टरपंथ का विरोध: उन्होंने जमात-ए-इस्लामी जैसे समूहों की आलोचना की है और 1971 के मुक्ति संग्राम की विरासत पर जोर दिया है.

तारिक की वापसी जमात-ए-इस्लामी के लिए कितना खतरा?

बीएनपी फरवरी में होने वाले चुनावों में सत्ता हासिल करने के लिए प्रमुख दावेदार के रूप में उभरी है क्योंकि पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग के चुनाव में भाग लेने पर बैन लगा दिया गया है. माना जा रहा है कि बीएनपी अगर जीती तो तारिक रहमान अगले प्रधानमंत्री बन सकते हैं. जमात-ए-इस्लामी की बात करें तो वह 2001 से 2006 तक बीएनपी के कार्यकाल के दौरान सहयोगी रही थी, लेकिन अब उसकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी मानी जा रही है क्योंकि अंतरिम सरकार ने एग्जिक्यूटिव ऑर्डर के जरिए अवामी लीग के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी है. 

तारिक का अगला महत्वपूर्ण कदम क्या होगा?

तारिक रहमान के लिए 27 दिसंबर की तारीख काफी अहम है, क्योंकि इसी दिन वह वोटर रजिस्ट्रेशन और राष्ट्रीय पहचान पत्र (NID) की प्रक्रिया पूरी करेंगे. यह महज एक कागजी कार्यवाही नहीं बल्कि आधिकारिक रूप से उनके चुनावी रणक्षेत्र में उतरने का शंखनाद होगा.

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