यूरोपियन पार्लियामेंट के लिए गुरुवार 6 जून से मतदान की प्रक्रिया शुरु हो चुकी है. यूरोपीय यूनियन के 27 देशों में कुल 37 करोड़ 30 लाख रजिस्टर्ड वोटर जो हैं वो इस चुनाव के लिए 6 जून से 9 जून तक वोट डालेंगे. आस्ट्रिया, इस्टोनिया, फ्रांस, इटली, लिथुआनिया, स्वीडेन जैसे तमाम यूरोपीयन देशों में इन चार दिनों के दौरान वोटिंग होगी. नीदरलैंड में 6 जून को वोट डाले गए हैं. आयरलैंड में 7 जून को, जबकि चेक रिपब्लिक, में 7 और 8 जून को दो दिन वोट डाले जाएंगे. 8 जून को ही लातविया, माल्टाल और स्लोवाकिया जैसे देशों में वोटिंग होगी जबकि इटली में 8 और 9 जून को. फ़िनलैंड समेत बाक़ी के यूरोपीय देशों में 9 जून को मतदान होगा.
ये चुनाव हर पांच साल में होता है. इसके चार दिनों तक होने के पीछे की वजह ये है कि अलग अलग ईयू देश अपने तौर तरीक़े से मतदान का आयोजन करते हैं. कई देश में ये एक ही दिन में पूरा हो जाता है. कई देश इसके लिए एक से अधिक दिन लेते हैं. यूरोपीय यूनियन के 21 सदस्य देशों में वोटिंग की उम्र अठारह साल और उसके ऊपर है. लेकिन बेल्जियम, जर्मनी ऑस्ट्रेलिया और माल्टा में मतदान की उम्र 16 साल कर दी गई है और ग्रीस में जो चुनाव के साल में 17 साल के हो चुके हैं, वो भी वोट डाल सकते हैं.
EU के नागरिकों को इस बात की भी सुविधा है कि वो अपने देश या फिर विदेश में भी वो डाल सकते हैं. चेक, आयरलैंड, माल्टा और स्लोवाकिया में यह सुविधा नहीं है. यूरोपीय संसद के लिए अर्ली वोटिंग की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है. इसके लिए यहां के उम्मीदवार अलग अलग जगहों पर अपना चुनावी अभियान चलाते देखे जा रहे हैं.
EU के नागरिकों को इस बात की सुविधा है कि वह अपने देश के उम्मीदवार या फिर किसी दूसरे इयू देश के उम्मीदवार को अपना वोट डाल सकते हैं. यूरोपीय संसद एक ऐसी संस्था है, जो सीधे EU के सदस्य देशों की जनता की तरफ से चुनी जाती है. यूरोपीय पार्लियामेंट में इस बार 720 सीट है. यूरोपीय संसद के सदस्य पांच सालों के लिए चुने जाते हैं और फिर वो अपना प्रेसिडेंट चुनते है.
अभी माल्टा कि रॉबर्ट मैट सोला यूरोपीय पार्लियामेंट की प्रेसिडेंट हैं. लेकिन जल्द ही इनकी जगह कोई और लेगा. यूरोपीय संसद ब्रशेल्स में है. पूरी संख्या में यूरोपियन यूनियन के सदस्य स्ट्रैबोर्ग की मीटिंग में आते है. कानून और नियम यहीं की मीटिंग में पास होते है. बाकि दिनों की सामान्य बैठक ब्रुसेल्स में होती है.
यूरोपीय संसद दरअसल, यूरोपीय संघ की विधायिका है. ये यूरोपीय कमीशन, जो कि यूरोपीय संघ की कार्यकारी शाखा है, और यूरोपीय काउंसिल, जो कि यूरोप के 27 देशों की सरकारों के मंत्रियों से बनी संस्था है, उनके साथ मिल कर काम करती है. इसका काम यूरोपीय यूनियन के नियम कानूनों को लेकर सदस्य देशों के बीच बातचीत और समन्वय का स्थापित करना है. साथ ही ये यूरोपीय संसद ही है जो यूरोपीय यूनियन के एक ब्लॉक के तौर पर किए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय सहमति और समझौतों को मंज़ूरी देता है और साथ ही यूरोपीय यूनियन के लिए बजट तय करता है. इसका मतलब ये हुआ कि यूरोपीय संसद ही यूरोपीय संघ जो कि दुनिया का सबसे बड़ा व्यापारिक ब्लॉक है उसकी राजनीतिक दशा और दिशा तय करती है. इन सभी देश को की कुल GDP क़रीब €17 trillion ($18.5 trillion) जो की विश्व व्यपार का लगभग 15% हिस्सा है.
यूरोपीय संसद का चुनाव इस बार जिन मुद्दों पर लड़ा जा रहा है उनमें यूक्रेन-रूस युद्ध के साथ साथ गाजा के हालात तो हैं हीं, क्लाइमेट चेंज और इमीग्रेशन बहुत बड़ा मुद्दा है. यूरोप के कई देशों में इमीग्रेशन को लेकर सख्त नीति अपनाने की वकालत की जा रही है. कई देशों सीरिया, अफगानिस्तान आदि जैसे देशों से आने वालों इमिग्रेंट्स का भार उठाने को तैयार नहीं और इसलिए इस चुनाव में यूरोपीय यूनिनय के कई देशों में कठोर दक्षिणपंथी दलों की क़ामयाबी की संभावना व्यक्त की गई है.
27 देशो के यूरोपियन यूनियन की कुल आबादी करीब 450 मिलियन है. 1957 रोम की संधि के बाद यूरोपियन इकनोमिक कम्युनिटी का गठन हुवा था. 1992 मास्ट्रिचट् (Maastricht) संधि के बाद से देशो के इस संगठन को यूरोपियन नाम से जाना जाने लगा. यूरोप के कई देश इस संगठन में धीरे धीरे शामिल हुए. 2020 में यूके इससे अलग हो गया.