पुतिन की भारत यात्रा: हथियार और तेल कारोबार के साथ बदल रही भारत-रूस की यारी, ग्राफिक्स से समझें

Vladimir Putin India Visit: राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की यह भारत यात्रा इस बात को टेस्ट करेगी कि क्या दोनों देश अपनी दशकों पुरानी साझेदारी को नए भू-राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य में ढाल सकते हैं.

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रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और भारत के प्रधानमंत्री की यह नई दिल्ली में बैठक खास होगी
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  • रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 4 और 5 दिसंबर को भारत आएंगे और वार्षिक भारत-रूस शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे
  • भारत-रूस बैठक में रक्षा, परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष, टेक्नोलॉजी और व्यापार सहयोग पर विस्तार से चर्चा होगी
  • भारत ने रूस से रक्षा आयात कम किया है पर ऊर्जा और कच्चे तेल के आयात में तेजी से वृद्धि की है
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रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 4 और 5 दिसंबर को भारत यात्रा पर होंगे. पुतिन हर साल होने वाल भारत-रूस शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए नई दिल्ली में होंगे. ग्लोबल स्तर पर खेमा बदल रहा है और उसके साथ हथियारों की सप्लाई चेन में भी बदलाव आया है. इन दोनों के पीछे एक बड़ी वजह यूक्रेन में जारी जंग है और इस जंग के शुरू होने के बाद यह पुतिन की पहली भारत यात्रा है. दिल्ली में हो रही बैठक महत्वपूर्ण कूटनीतिक और रणनीतिक महत्व रखती है, क्योंकि यह ऐसे समय में हो रही है जब एक तरफ नई दिल्ली मास्को के साथ ऊर्जा व्यापार का नाटकीय रूप से विस्तार कर रहा है. तो दूसरी तरफ वह रूस के सैन्य हथियारों पर अपनी दीर्घकालिक निर्भरता को फिर से व्यवस्थित कर रही है.

इन दो दिनों में, दोनों देश रक्षा, परमाणु ऊर्जा, हाइड्रोकार्बन, अंतरिक्ष, टेक्नोलॉजी और व्यापार में सहयोग की समीक्षा करेंगे. यहां मेन फोकस अगली पीढ़ी की वायु-रक्षा प्रणालियों (एयर डिफेंस सिस्टम्स) पर होने की उम्मीद है, जिसमें रूस के एस-500 प्लेटफॉर्म पर चर्चा भी शामिल है. यह संकेत देता है कि भले ही भारत हथियारों के सप्लायर्स में विविधता ला रहा हो, भारत और रूस के सैन्य संबंध केंद्रीय बने रहेंगे. गौरतलब है कि ऑपरेशन सिन्दूर के दौरान पाकिस्तान के ड्रोन हमलों से भारत को बचाने के लिए रूसी एस-400 का ही इस्तेमाल किया गया था.

रक्षा: रूस अभी भी नंबर 1 है, लेकिन पहले जैसा नहीं

दशकों तक भारत अपने सैन्य हथियारों के लिए मास्को पर अत्यधिक निर्भर था. यह एक तरह से शीत युद्ध में रूस की तरफ झुकाव की विरासत थी. दूसरी सबसे बड़ी वजह थी कि जब भारत के साथ पश्चिमी देश टेक्नोलॉजी शेयर करने में संकोच कर रहे थे तो रूसी सोवियत संघ ने भारत का साथ दिया था. हालांकि, हाल के वर्षों में हथियारों के सप्लायर के रूप में रूस का यह प्रभुत्व कमजोर हुआ है.

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के अनुसार, रूस ने 2000 और 2010 के दशक की शुरुआत में भारत के 70% से अधिक प्रमुख पारंपरिक हथियारों की आपूर्ति की, जो 2002 में 89% पर पहुंच गई. 2012 में भी इसी तरह की वृद्धि देखी गई, जब रूस ने भारत के 87% हथियारों की आपूर्ति की. 

हालांकि, 2014 के बाद, इस हिस्सेदारी में गिरावट शुरू हुई, 2014 में गिरकर 49% हो गई और 2019 में 38% तक गिर गई. लेटेस्ट पांच साल की अवधि (2019-2023) में, रूस की हिस्सेदारी लगभग 36% तक गिर गई, जो 60 से अधिक वर्षों में सबसे कम है. जैसे-जैसे नई दिल्ली ने अपने रक्षा दांव बढ़ाए हैं, पश्चिमी सप्लायर्स, विशेष रूप से फ्रांस और अमेरिका से भारत का आयात बढ़ गया है.

इस गिरावट का मतलब यह नहीं है कि भारत के लिए रूस ने प्रासंगिकता खो दी है. मॉस्को अभी भी भारत का सबसे बड़ा सप्लायर बना हुआ है क्योंकि:

सोवियत मूल के हथियार भारतीय सेना के पास अभी भी हैं और उन्हें अभी भी रूसी रखरखाव की आवश्यकता है. परमाणु पनडुब्बियों और एयर डिफेंस सिस्टम्स जैसे बड़े-टिकट वाले प्लेटफॉर्म, जिनकी सप्लाई कुछ अन्य देश ही करते हैं. भारत की रुचि अगली पीढ़ी की मिसाइल रक्षा और हाइपरसोनिक प्रणालियों में है, जहां रूस कई पश्चिमी सप्लायर्स से आगे है.

भारत क्या खरीदता है, उसमें एक रणनीतिक बदलाव आया है

भारत के हथियार खरीदने के पैटर्न में उल्लेखनीय बदलाव आया है. जहां एक समय रक्षा आयात में विमानों का दबदबा था, वहीं भारत अब तेजी से निम्नलिखित पर ध्यान केंद्रित कर रहा है:

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  1. वायु-रक्षा प्रणालियां (एयर डिफेंस सिस्टम्स)
  2. मिसाइलें
  3. नौसेना प्लेटफार्म
  4. बख्तरबंद गाड़ियां
  5. साथ में मिलकर हथियार बनाना और टेक्नोलॉजी का ट्रांसफर

व्यापार: एक पूरी तरह से अलग कहानी

जहां एक तरफ रूस पर रक्षा निर्भरता कम हो गई है, वहीं आर्थिक निर्भरता तेजी से बढ़ी है, जो लगभग पूरी तरह से ऊर्जा (तेल-गैस) से प्रेरित है. भारत अब रूस से पहले से कहीं अधिक तेल खरीदता है. 2022 में मॉस्को पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंध लगने के बाद, रूस ने भारी छूट पर कच्चे तेल बेचने का ऑफर दिया. भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक है और उसने इस मौके का लाभ उठाया.

इसने द्विपक्षीय व्यापार को बदल दिया. रूस से कच्चे तेल, उर्वरक (फर्टिलाइजर), वनस्पति तेल, कोयला और धातुओं के आयात में वृद्धि हुई. हालांकि दूसरी तरफ भारत से रूस को होने वाला निर्यात मामूली बना हुआ है, जिसमें मशीनरी, फार्मास्यूटिकल्स, विद्युत उपकरण, कार्बनिक रसायन और समुद्री उत्पाद प्रमुख हैं.

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वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अनुसार रूस को भारत का निर्यात बहुत कम है, जो पिछले नौ वित्तीय वर्षों में भारत के कुल निर्यात का लगभग 0.7% से 1.1% है. इसके विपरीत, रूस से आयात तेजी से बढ़ा है, खासकर 2020-21 के बाद, 2022-23 में 1.4% से बढ़कर 6.5% हो गया और 2023-24 और 2024-25 दोनों में लगभग 9% तक पहुंच गया. चालू वित्त वर्ष के दौरान आयात 8.6% रहा, जबकि निर्यात सिर्फ 1% रहा.

भारत अब रूस को विशेष औद्योगिक सामान निर्यात करता है. लेकिन जो वह रूस से वापस खरीदता है - ज्यादातर ऊर्जा - वह मूल्य और मात्रा में कहीं अधिक है.

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अब राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की यह यात्रा इस बात को टेस्ट करेगी कि क्या दोनों देश अपनी दशकों पुरानी साझेदारी को नए भू-राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य में ढाल सकते हैं.

(रिपोर्टर: सुभम सिंह और अंकिता तिवारी)

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