भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर (Indian FM S jaishankar) ने संसद में यूक्रेन संकट (Ukraine Crisis) के दौरान भारत सरकार की भूमिका पर उठ रहे कई सवालों के जवाब दिए. यूक्रेन (Ukraine) से भारतीय छात्रों (Indian Students) की वापस आने के बाद अब सबसे बड़ा सवाल उनकी मेडिकल शिक्षा (Medical Education) के पूरी होने का है. एस जयशंकर ने बताया, " जो छात्र वापस आए, उनके बारे में मेंबर्स ने चिंता प्रकट की. हम लोग भी उन छात्रों की ऐसे चिंता करते हैं, जैसे उनके माता पिता करते हैं. यूक्रेन सरकार ने निर्णय लिया है कि भारतीय छात्रों के लिए मेडिकल एजुकेशन में रिलेक्सेशन होगा. तीसरे साल के छात्रों के लिए क्रॉक 1 एक्ज़ाम टाल दिया गया है. क्रॉक 2 एक्जाम छठे साल के लिए जो है उसमें, यूक्रेन में मेडिकल छात्रों का सबसे बड़ा समूह भारतीय है. उनके पिछले एकेडमिक नतीजों के आधार पर उन्हें डिग्री दी जाएंगी. एक्ज़ाम के बिना. जो बीच के छात्र हैं, विदेश मंत्रालय उनके लिए हंगरी के संपर्क में है. हंगरी से प्रस्ताव मिला था , हम पोलैंड, रोमेनिया, कजाकिस्तान और चेक रिपल्बिक के संपर्क में हैं, क्योंकि वहां एजुकेशन का समान मॉडल हैं."
कई छात्रों एजुकेशन लोन लेकर यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई के लिए गए थे. विदेश मंत्रालय ने बताया कि भारत सरकार ऐसे छात्रों की मदद की भी तैयारी कर रही है. विदेश मंत्री ने बताया, "यूक्रेन से वापस आए 1319 भारतीय छात्रों पर एजुकेशन लोन हैं, सरकार ने भारतीय बैंकों से युद्ध के प्रभाव का आंकलन करने को कहा है जिससे वो बैंक लोन चुकान में मदद पा सकें."
भारत ने यूक्रेन से कहा था ट्रेन जारी रखें
यूक्रेन से निकलने में भारतीय छात्रों को हुई परेशानी का भी विदेश मंत्री ने ज़िक्र किया. उन्होंने कहा छात्रों जो झेला है, उसके लिए हमारे पास शब्द नहीं है. उनके क्रेडिट को नहीं लिया जा सकता. लेकिन अधिकतर लोग ट्रेन से निकले. भारत सरकार ने यूक्रेन सरकार से ट्रेन जारी रखने की अपील की थी. बाकि कई लोग कॉन्ट्रेक्टर्स की तरफ से अरेंज की गई बसों में निकले.
ऑपरेशन गंगा की होगी स्टडी
विदेश मंत्री ने कहा, ऑपरेशन गंगा हो चुका है. हमारे छात्र आ चुके हैं. हमें सोचना चाहिए कि साथ मिलकर हमने क्या किया. ऑपरेशन राहत या ऑपरेशन संकट मोचन भी किया था. हम हर ऑपरेशन की स्टडी करते हैं और देखते हैं कि इससे हमें क्या सीखना चाहिए. ऑपरेशन गंगा कलेक्टिव अफर्ट था. इसमें भारतीय समुदाय शामिल था. पड़ोसी देशों के भारतीय मूल के व्यापारियों की मदद की. भारतीय छात्रों ने कैंपों में एक दूसरे की मदद की. आपस में जब उन्हें फैसला लेना था कि कौन पहले जाएगा और कौन बाद में तो, कई छात्रों ने साहस दिखाया.
एस जयशंकर ने कहा कि कल बात उठी थी कि यूक्रेन से छात्रों को निकलाने में मदद करने पहुंचे मंत्रियों का क्या रोल था. मैं यूक्रेन और रूस के विदेश मंत्रियों को मैं पहले से जानता था और जब युद्ध शुरु हुआ तो मैंने उनसे बात की थी. लेकिन अगर हमारे मंत्री नहीं जाते तो हमें उन देशों में वैसा सहयोग नहीं मिल पाता जैसा मिला. मैं उनकी प्रशंसा करना चाहता हूं कि सरकार की टीम स्पिरिट ने काम किया. डिपार्टमेंट से उपर उठकर काम किया और इससे मेरा काम आधा हो गया. हमारा कर्तव्य है कि हमें ऐसा करना पड़ा. हमारा अनुभव यह है कि हम इससे अपनी तैयारी करेंगे.
भारतीय एडवायज़री पश्चिमी देशों की एडवायज़री से अगल कैसे?
कुछ बिंदुओं का जवाब देना ज़रूरी है. प्रेमचंद्र जी ने हमारी एडवाज़री को पश्चिमी देशों की एडवाज़री से तुलना की. हमारी एडवायज़री का उद्देश्य मदद करना था जबकि पश्चिमी देशों की एडवायज़री का मकसद राजनैतिक था.
सूमी से भारतीय छात्रों को बचाने में कैसे हुई देर?
भारतीय छात्रों ने बताया कि सूमी ने भारतीय छात्रों के निकलने में देरी कैसे हुई. उन्होंने कहा, स्टूडेंट्स बस में बैठ गए थे. हम निकलने वाले थे लेकिन फायरिंग फिर से शुरू हो गई. हमने फिर से दोनों पक्षों से बात की. हमने दोनों पक्षों से एक समय पूछा. सूमी का इवैकुएशन इस प्रकार हुआ. उसमें रेड क्रॉस का सहयोग भी रहा. यूक्रेन संकट के दौरान राजधानी कीव में मौजूद भारतीय दूतावास की भूमिका पर भी सवाल उठे थे. उन्होंने कहा, दूतावास क्या कर रहा था यह सवाल उठे, लेकिन दूतावास राजधानी कीव में था, लेकिन जब बॉर्डर पर छात्र फंसे तो दूतावास को चरणों में बॉर्डर के नजदीक लवीव में शिफ्ट किया गया. हमने पूर्वी शहर खारकीव में भी हमने भारतीयों के साथ संपर्क बनाए रखा. उनको निकालने के लिए हमने दूतावास की सहायता ली.
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