पाकिस्तान (Pakistan) के पंजाब प्रांत में दो लोगों को सोशल मीडिया (Social Media) पर ईशनिंदा (Blasphemy) करने वाली सामग्री पोस्ट करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. मुल्क में इस अपराध में दोषी को मौत या उम्रकैद की सजा देने का प्रावधान है. संघीय जांच एजेंसी (FIA) लाहौर ने सोमवार को मोहम्मद उसामा शफीक (Usama Shafiq) और मैसम अब्बास (Maisam Abbas) को एक शिकायत के आधार पर गिरफ्तार किया. शिकायत में आरोप लगाया गया है कि दोनों ने फेसबुक (Facebook) और व्हाट्सएप (What's App) पर पैगंबर और पवित्र कुरान का अपमान किया है.
FIA के एक अधिकारी ने मंगलवार को ‘पीटीआई-भाषा' को बताया कि दोनों संदिग्धों ने फेसबुक पर कुरान की आयतों के साथ आपत्तिजनक वीडियो (Video) किए थे. उन्होंने इस तरह की सामग्री व्हाट्सएप ग्रुप पर भी साझा की है.
अधिकारी ने कहा, “कानून के तहत संदिग्धों ने पैगंबर और अल्लाह के लिए आपत्तिजनक सामग्री साझा करके ईशनिंदा की है. उन्होंने कुरान को भी अपमानित किया है.”
अधिकारी ने बताया कि दोनों के खिलाफ पाकिस्तान दंड संहिता (PPP) और इलेक्ट्रॉनिक अपराध रोकथाम अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों संदिग्धों को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.
मालूम हो कि पाकिस्तान में आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम-1986 के तहत पीपीसी में धारा-295 सी शामिल की गई है, जिसमें पैगंबर का अपमान करने वाले व्यक्ति को मौत या उम्रकैद की सजा देने का प्रावधान है.
एक थिंक टैंक सेंटर फॉर रिसर्च एंड सिक्योरिटी स्टडीज़ ने बताया कि पाकिस्तान में 1947 से ईशनिंदा के 1,415 मामले सामने आ चुके हैं. इस प्रबुद्ध लोगों के समूह का कहना है कि 1947 से 2021 के बीच ईशनिंदा के आरोप में 18 महिलाओं और 71 पुरुषों की कानून के दायरे से बाहर हत्या हुई. हालांकि पाकिस्तानी अखबार डॉन के मुताबिक ईशनिंदा के मामले में मारे गए लोगों की संख्या इससे कहीं ज्यादा हो सकती है क्योंकि सभी मामले दर्ज नहीं होती.
अंतरर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमरीकी आयोग की रिपोर्ट कहती है कि पाकिस्तान की जेल में मौजूद 80% प्रतिशत क़ैदियों पर ईशनिंदा के आरोप है. इनमें से आधे कै़दियों को या तो आजीवन कारावास मिला है या मौत की सज़ा.
इनमें से कई मामले मुस्लिमों के साथ ही के मुस्लिमों पर लगाए गए आरोप के हैं. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि धार्मिक अल्पसंख्यकों, ख़ासतौर से ईसाईयों को अक्सर आपसी कलह में मामला सुलझाने के लिए ईशनिंदा का आरोप लगा कर इस्तेमाल किया जाता है.