वे सिर्फ मांस की तरह हैं": अनुशासन तोड़ने वालों को 'स्टॉर्म-Z' दस्ते में भेज देता है रूस

रूस के एक्शन के डर से नाम उजागर ना करने की शर्त पर एक सैनिक ने कहा कि वह उन लोगों की दुर्दशा पर सहानभूति रखता है जिन लोगों को शराब की बदबू आने पर कमांडेंट द्वारा स्टॉर्म फाइटर्स दस्ते में भेज दिया जाता है.

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रूसी आर्मी

रूसी आर्मी द्वारा 'स्टॉर्म-जेड' दस्ते के साथ हो रहे बर्ताव को लेकर कई बातें सामने आई हैं. न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक इस राज से पर्दा उठाने के लिए लोगों से बात की है. जिसमें पता चला है कि इस दस्ते के सैनिक रूस के लिए सिर्फ मांस का टुकड़ा मात्र हैं. इस दस्ते में उन लोगों को शामिल किया जाता है जो शराब के नशे में धुत पाए जाते हैं या आज्ञा ना मानने के दोषी पाए जाते हैं. ऐसे लोगों को  स्टॉर्म-जेड" यूनिट में शामिल करके युद्ध में लड़ने के लिए सैनिकों की अग्रिम पक्ति में शामिल कर लिया जाता है. 

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अनुशासन तोड़ा तो 'स्टॉर्म-जेड' दस्ते में भेजे गए

मामले की जानकारी रखने वाले 13 लोगों के मुताबिक दस्ते में शामिल लोग उन अपराधियों में से हैं, जिन्हें "स्टॉर्म-जेड" दस्तों के नाम से जानी जाने वाली रूसी पेनल यूनिट्स में शामिल किया गया है. उनको इस साल यूक्रेन के खिलाफ लड़ने के लिए सेना की अग्रिम पंक्ति में भेज दिया गया. जानकारों का कहना है कि अपनी कहानी बताने के लिए बहुत ही कम लोग जिंदा बचे हैं. मई-जून में पूर्वी यूक्रेन के शहर बखमुत के पास तैनात किए गए आर्मी यूनिट नंबर-40318 के एक रेगुलर सैनिक ने कहा कि स्टॉर्म फाइटर्स रूस के लिए सिर्फ मांस का टुकड़ा जैसे हैं.

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उन्होंने बताया कि युद्ध में घायल छह या सात स्टॉर्म-जेड फाइटर्स के एक ग्रुप को मेडिकल ट्रीटमेंट दिया गया था, जिन्होंने अपने कमांडर के आदेश को नहीं माना था. जिसके बाद उनको इस दस्ते में शामिल कर दिया गया. उनको नहीं पता कि कमांडर ने ऐसा आदेश क्यों दिया. उन्होंने दावा किया कि इससे साफ है कि अधिकारी स्टॉर्म-जेड फइटर्स को दूसरे नॉर्मल सैनिकों की तुलना में कमतर आंकते हैं. वह उनके लिए दूसरे सैनिकों की तरह ही महत्वपूर्ण नहीं हैं.

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'रूसी सेना ने नहीं की स्टॉर्म-जेड' दस्ते पर बात'

रूस के एक्शन के डर से नाम उजागर ना करने की शर्त पर एक सैनिक ने कहा कि वह उन लोगों की दुर्दशा पर सहानभूति रखता है जिन लोगों को शराब की बदबू आने पर कमांडेंट द्वारा स्टॉर्म फाइटर्स दस्ते में भेज दिया जाता है.  न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने इस बारे में जब यूनिट के एक अधिकारी से बात करने की कोशिश की तो उसने स्टॉर्म-जेड पर कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया और उनका कॉल काट दिया. क्रेमलिन ने रॉयटर्स के सवालों को रूसी रक्षा मंत्रालय को भेजा, उसने भी इसका जवाब नहीं दिया. 

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रूसी राज्य नियंत्रित मीडिया के मुताबिक स्टॉर्म-जेड दस्तों ने भीषण युद्ध में हिस्सा लिया और उनके कुछ सदस्यों को बहादुरी के लिए पदक भी दिए गए हैं. लेकिन यह खुलासा नहीं किया गया कि यह दस्ता कैसे बनाया जाता है और उनको कितनी परेशानी झेलनी पड़ती है. रॉयटर्स पहली न्यूज एजेंसी है जिसने इस दस्ते के साथ हो रहे व्यवहार की जानकारी के साथ कई सोर्सेज से बात की है कि दस्तों को एक साथ केसे रखा जाता है और कैसे तैनात किया जाता है. 

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'माफी के बदले स्टॉर्म-जेड दस्ते में किया जाता है शामिल'

चोरी के आरोप में जेल में बंद एक सैनिक ने कहा कि जून में बखमुत के पास लड़ाई में 237वीं रेजिमेंट से जुड़ी उसकी यूनिट के 120 लोगों में से 15 को छोड़कर बाकी सभी मारे गए या घायल हो गए. इंटरव्यू में शामिल लोगों ने बताया कि इस दस्ते में उन दोषियों को शामिल किया जाता है जो अनुशासन तोड़ने पर माफी के बदले लड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं. हैरानी की बात यह है कि रूसी रक्षा मंत्रालय ने कभी भी स्टॉर्म-जेड दस्ता बनाए जाने की बात को स्वीकर ही नहीं किया . उनके होने की पहली रिपोर्ट अप्रैल में सामने आई थी, जब अमेरिका के थिंक-टैंक इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ वॉर की रूसी दस्तों के गठन पर एक रिपोर्ट सामने आई थी. 

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