अमेरिका के लिए ‘गन कल्चर’ बना गले की फांस, बंदूकें ले चुकी हैं चार राष्ट्रपतियों की जान

अमेरिका के संविधान में हथियार रखने स्वतंत्रता, कानून बनाए गए लेकिन गन लॉबी के दबदबे के चलते सभी असरहीन साबित हुए

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नई दिल्ली:

अमेरिका (America) के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) पर गोलीबारी की घटना से पूरा देश हिल गया है. हालांकि ट्रंप को इससे राजनीतिक लाभ मिलता दिख रहा है. ट्रंप रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार आधिकारिक रूप से घोषित हो चुके हैं. अब चुनाव में उनको सहानुभूति का लाभ भी मिल सकता है. हालांकि ट्रंप पर हमले के बाद एक बार फिर यह मुद्दा सामने आया है कि अमेरिका के लिए उसका गन कल्चर (Gun Culture) ही अब उसके गले की फांस बन गया है. 

अमेरिकी सियासत में गन कल्चर पर बात तो खूब होती है, लेकिन होता कुछ नहीं है. अमेरिका में अक्सर बात-बात पर गोलियां चल जाती हैं.ट्रंप पर हुए हमले ने गन कल्चर के मुद्दे को फिर से गर्मा दिया है. 

अपनी सुरक्षा के तामझाम से दुनिया को चौंकाने वाला अमेरिका तब खुद चौंक गया जब उसके एक पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पर गोली चल गई. गोली यदि सिर्फ एक इंच और बाईं तरफ से निकली होती तो ट्रम्प की मौत हो गई होती. इस घटना के बाद अमेरिका में बंदूक की संस्कृति पर बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है. राष्ट्रपति बाइडेन भले कह रहे हैं कि अमेरिका में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है, लेकिन यह तो उनको भी पता है कि जहां बंदूक रहेंगी, वहां हिंसा भी होगी. 

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गोली चलने की घटना के बाद ट्रंप अमेरिकी चुनाव में सबसे बाहुबली बन गए हैं. रिपब्लिकन पार्टी ने डोनाल्ड ट्रंप को अपना राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित कर दिया है.

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बंदूक की राजनीति से गन कल्चर को संरक्षण

अमेरिका में बंदूक की संस्कृति जितनी खतरनाक है उतना ही उसको संरक्षण बंदूक की राजनीति से मिलती है. अमेरिका में कई राष्ट्रपतियों और नेताओं की जिंदगी बंदूकों ने छीनी. अब्राहम लिंकन से लेकर जॉन एफ कैनेडी तक अमेरिका के कई दिग्गज राष्ट्रपतियों की मौत गोली से हुई. दूसरी तरफ आम लोगों पर भी बंदूकों का जानलेवा साया मंडराता रहता है. इसकी खौफनाक झलक कभी स्कूलों में तो कभी माल जैसे सार्वजनिक स्थलों पर अचानक होने वाली गोलीबारी से मिलती रहती है. 

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अमेरिका में आम आदमी बंदूक की संस्कृति से त्रस्त है. सन 2023 में अमेरिका में सार्वजनिक स्थानों पर गोलीबारी की 647 घटनाएं हुई थीं. इनमें करीब 45 लोग मारे गए थे. आलम यह है कि अमेरिका में हर माह फायरिंग की औसत 53 घटनाएं होती हैं. सन 2018 में अमेरिका में इस तरह की 355 और 2019 में 414 घटनाएं हुई थीं. सन 2020 में 610, 2021 में 689 और 2022 में 645 घटनाएं हुई थीं. 

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आत्मरक्षा के लिए खरीदे जाने वाले हथियार आफत बने

अमेरिका मं बंदूक से त्रस्त तो सभी हैं लेकिन फिर भी वहां हर घर में बंदूक की जरूरत होती है. जिंदगी बचाने के लिए रखी जाने वाली बंदूक लोगों की जान की आफत बन गई है. इसके खिलाफ कानून बनाने की भी बात आई लेकिन यह बात आगे नहीं बढ़ सकी.

अमेरिका के संविधान में लिखा है कि कोई भी सरकार जनता को अपने पास शस्त्र रखने से रोक नहीं सकती है. अमेरिका की क्रांति के बाद वहां सवाल उठा था कि नागरिकों की सुरक्षा कैसे हो? इसके बाद 1791 में सबको हथियार रखने का अधिकार मिल गया. कहा जाता है की वह गन लॉबी के दबाव में हुआ था. यह लॉबी अपने हथियार बेचना चाहती थी. उनकी यह दबदबा आज भी बरकरार है. अमेरिका में ज्यादातर लोग आत्मरक्षा के नाम पर बंदूकें खरीदते हैं. लेकिन गन कल्चर के कारण ही आज अमेरिका में औसत सौ लोग रोज मारे जा रहे हैं. 

कानून कारगर साबित नहीं हो सके

जब राष्ट्रपति रह चुके एक शख्स को मारने के लिए 20 साल का एक युवक बंदूक लेकर पहुंच जाता है तो आप समझ सकते हैं कि अमेरिका किस तरह एक असंवेदनशील समाज के रूप में बदलता जा रहा है. राष्ट्रपति जो बाइडेन ने जून 2022 में एक बिल पर दस्तखत भी किए थे. इस विधेयक में बंदूक खरीदारों के रिकार्च चेक करने, हथियार वापस लेने और कई अन्य सख्त प्रावधान थे. लेकिन यह कानून भी कारगर नहीं हो पाया और दो साल बाद भी हालात नहीं बदले. हथियार उद्योग, राजनीतिक दल, ऐतिहासिक संस्कृति और वहां काले-गोरे लोगों के बीच वैमनस्य के बीच गन कल्चर खत्म नहीं हो रहा है. जनसुरक्षा के मामले में अमेरिकी सरकार कहीं न कहीं असफल होती रहती है, इसलिए लोग अपनी सुरक्षा खुद करने पर विश्वास करते हैं. 

ट्रंप पर चली गोलियों ने अमेरिका को फिर से सोचने के लिए मजबूर किया है. इसी तरह 61 साल पहले भी गन कल्चर पर सवाल उठा था. सन 1963 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी . इसके पांच साल बाद समाज सुधारक मार्टिन लूथर किंग की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. इसके बाद अमेरिका में बंदूकों पर नियंत्रण के लिए गन कंट्रोल एक्ट पास हुआ. उसमें तय हुआ कि कम उम्र के लोगों और आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों को बंदूक देने पर अंकुश लगाया जाएगा. हालांकि इससे हुआ कुछ नहीं. इसी का नतीजा है कि इस साल जनवरी से अप्रैल तक चार महीनों में ही अमेरिका में करीब 55 लाख हथियार बिक गए. 

ट्रंप खुद बंदूक के खिलाफ कानून के विरोधी

आखिर बंदूक पर नियंत्रण की कोशिशें कामयाब क्यों नहीं हो रहीं?  जानकारों के मुताबिक अमेरिका की नेशनल राइफल एसोसिएशन सबसे ताकतवर गन लॉबी है. यह एसोसिएशन कांग्रेस के सदस्यों पर इतना खर्च करता है कि वे मजबूत गन पॉलिसी बना ही नहीं पाते. खुद ट्रंप भी सख्त बंदूक कानून के विरोधी हैं. इसी वजह से अमेरिका में कोई सख्त बंदूक कानून नहीं बन पाया है. अमेरिका में हथियार खिलौनों की तरह खरीदे और बेचे जाते हैं. 

अब्राहिम लिंकन की 1865 में हुई थी हत्या

अमेरिका में राष्ट्रपतियों को गोली मार देने की खतरनाक प्रवृत्ति रही है. अमेरिका के सोलहवें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की 1865 में हत्या उस वक्त कर दी गई थी जब वे वाशिंगटन में अपनी पत्नी के साथ एक थिएटर में नाटक देख रहे थे. उन्हें जॉन विल्स बूथ नाम के शख्स ने गोली मारी थी. इसे घटना के 12 दिन बाद वह वर्जिनिया के एक खलिहान में छुपा हुआ पाया गया था. वहां बूथ की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. अमेरिका के बीसवें राष्ट्रपति जेम्स गारफील्ड की 1881 में हत्या हुई थी. वहां के 25वें राष्ट्रपति विलियम मले को 1901 में न्यूयॉर्क में बेहद करीब से गोली मारी गई थी. सन 1963 में 35वें राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी की हत्या कर दी गई थी.

जिस तरह बंदूक से ट्रंप की हत्या की कोशिश हुई उसी तरह पूर्व में भी अमेरिका में कई राष्ट्रपतियों की हत्या की कोशिश की गई. उन पर गोली तो चली लेकिन वे बाल-बाल बच गए. सन 1933 में 32वें राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूजवेल्ट पर गोली चलाई गई थी, लेकिन वे बच गए थे. सन 1975 में राष्ट्रपति गाल फोर्ट को 17 दिन के भीतर दो बार मारने की कोशिश हुई थी. सन 1981 में अमेरिका में राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन को उस वक्त गोली मारी गई थी जब वे वाशिंगटन में एक सभा को संबोधित कर रहे थे. सन 1994 में राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की भी जान लेने की कोशिश हुई थी. सन 2005 में राष्ट्रपति जार्ज डब्लू बुश को ग्रेनेड से मारने की कोशिश हुई थी. 

डोनाल्ड ट्रम्प उन्हीं खुशनसीबों में से हैं जो मौत को मात देने में कामयाब रहे. ट्रम्प पूर्व में राष्ट्रपति रह चुके हैं और इस बार फिर से राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार हैं. 

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