वैज्ञानिक Svante Paabo ने जीता Medicine का Nobel पुरस्कार, यह "असंभव सा काम" बना वजह

वैज्ञानिक सवान्ते पाबो (Svante Paabo) ने आज के इंसानों में लुप्त हो चुके इंसान के पूर्वजों से जीन्स (Genes) के प्रसार को जानने और पहचानने में काफी मदद की है.

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Scientist Svante Paabo ने जीता फिजियोलॉजी या मेडिसिन क्षेत्र में साल 2022 का Nobel Prize

वैज्ञानिक सवान्ते पाबो (Svante Paabo) ने साल 2022 के लिए मेडिसिन (Medicine) का नोबल पुरस्कार (Nobel) जीता है. यह पुरस्कार उनकी खोज "कंसर्निंग द जीनोम ऑफ एक्सटिंक्ट होमिनिंस एंड ह्यूमन इवॉल्यूशन" (concerning the genomes of extinct hominins and human evolution) के लिए दिया गया है. यह पुरस्कार विज्ञान की दुनिया के सबसे अहम पुरस्कारों में से एक है. रॉयटर्स के अनुसार, यह पुरस्कार स्वीडन के कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट की नोबल असेंबली द्वारा दिया जाता है. इसमें करीब 10 मिलियन स्वीडिश क्राउन्स या कहें कि 9 साल डॉलर का ($900,357) अवॉर्ड मिलता है. यह इस साल के नोबल पुरस्कारों की पहली घोषणा है.

सवांते पाबो ने किया असंभव सा काम 

नोबल प्राइज़ ऑर्गनाइज़ेश के अनुसार, सवांते पाबो ने लगभग असंभव काम किया है. उन्होंने फिलहाल लुप्त हो चुकी आज के इंसानों की पूर्वज प्रजाति निएंडरथल (Neanderthal) के जीनोम की सीक्वेंसिंग की. इतना ही नहीं, उन्होंने इंसानों के एक ऐसे पूर्वज को खोज निकाला जिससे हम पहले अंजान थे. इसका नाम है डेनीसोवा ( Denisova). खास तौर से पाबो ने यह भी पाया कि अफ्रीका से 70,000 साल पहले हुए प्रवास के कारण आज के मानव या कहें कि होमो सेपिएंस (Homo sapiens ) में लुप्त हो चुके पूर्वजों से जीन ट्रांसफर हुए. इंसानों में जीन्स के इन प्रसार की काफी अहमियात है. जैसे कि इससे निर्धारित होता है कि हमारा इम्यून सिस्टम कैसे संक्रमणों पर प्रतिक्रिया देता है.  

नोबल पुरस्कार  स्वीडन के डाइनामाइट इनवेस्टर और अमीर व्यापारी अल्फ्रेड नोबल की वसीयत के अनुसार दिया जाता है. यह पुरस्कार विज्ञान, लेखन और शांति के क्षेत्रों में 1901 से दिये जाते हैं.  इकॉनमिक्स के क्षेत्र में नोबल पुरस्कार बाद में दिये जाने लगे.  

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कोविड-19 ने एक बार फिर मेडिकल रिसर्च को केंद्र में रख दिया है और कई यह उम्मीद कर रहे हैं कि वैक्सीन आ जाने के बाद दुनिया के फिर से सामान्य हो जाने की उम्मीद कर रहे हैं. 

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फिर भी आम तौर पर किसी रिसर्च को सम्मानित होने में कई साल लगते हैं. पुरस्कार के लिए चुनने वाली कमिटी विजेताओं और उनके शोध की पूरी जांच पड़ताल करती है. 

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इस साल दो साल की महामारी के बाद एक बार फिर से नोबल पुस्कार अपनी चमक वापस पा सकेंगे. पिछले साल मेडिसिन के क्षेत्र में अमेरिकी डेविड जूलियस और एड्रियन को यह नोबल पुरस्कार दिए गए थे. उन्होंने इंसानी त्वचा में तापमान, छु्अन का पता लगाने वाले रिसेप्टर का पता लगाया था जिससे हमारा नर्वस सिस्टम जुड़ा होता है. 
 

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