Sri Lanka : "अपहरण किया गया" कार्यकर्ता जिसने Gotabaya Rajapaksa को बेदखल करने में मदद की

Sri Lanka : प्रेमकुमार गुणरत्नम (Premakumar Gunaratnam) को कोलंबो (Colombo) के निकट उनके घर से हथियारबंद लोगों ने उठा लिया था, उन्हें एक सफेद वैन में ढूंस कर एक गुप्त स्थान पर ले जाया गया. जहां उन्हें बांधा गया, नंगा किया गया और यातनाएं दी गईं.  

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Sri Lanka : प्रेमकुमार गुणरत्नम देश में युद्धापराधों के लिए Gotabaya Rajapaksa को जिम्मेदार मानते हैं
कोलंबो:

एक्टिविस्ट प्रेमकुमार गुणरत्नम (Premakumar Gunaratnam) को कोलंबो (Colombo) के निकट उनके घर से हथियारबंद लोगों ने उठा लिया था, उन्हें एक सफेद वैन (White Van) में ढूंस कर एक गुप्त स्थान पर ले जाया गया. जहां उन्हें बांधा गया, नंगा किया गया और यातनाएं दी गईं. उन्होंने कहा कि दशकों पहले श्रीलंका (Sri Lanka) के सुरक्षा बलों (Security Agencies)  को आदेश देने वाले ने उन्हें मौत के लिए चुना था. उनके अपहरण का ज़िम्मेदार बाद में राष्ट्रपति बन गया लेकिन कार्यकर्ता ने इस नेता के पतन में अहम भूमिका निभाई है. अब 56 साल के हो चुके गुणरत्नम को कोलंबो के निकट उनके घर से हथियारबंद लोगों ने उठा लिया था, उन्हें एक सफेद वैन में ढूंस कर एक गुप्त स्थान पर ले जाया गया. जहां उन्हें बांधा गया, नंगा किया गया और यातनाएं दी गईं.  

सादे कपड़ों में बैठकर बिना नंबर वाली गाड़ियों ने दर्जनों असंतुष्टों, पत्रकारों और विरोधी नेताओं का 2012 में अपहरण किया गया. कईयों को फिर दोबारा नहीं देखा गया.  

गुणरत्नम, जो एक उग्र वामपंथी है, अपनी एक नई राजनैतिक पार्टी लॉन्च करने वाला था, उन कुछ सौभाग्यशाली लोगों में थे था जिन्हें अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते चार दिन बाद अप्रत्याशित तौर से छोड़ा गया.  

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श्रीलंका के सुरक्षा बल उस समय गोटाबाया राजपक्षे (Gotabaya Rajapaksa) के नियंत्रण में काम करते थे. गोटाबाया बाद में राष्ट्रपति बने और उन्होंने देश का सबसे बुरा आर्थिक संकट देखा, और पिछले हफ्ते उन्हें इस्तीफे से पहले देश छोड़ कर भागना पड़ा. श्रीलंका के आधिकारिक राष्ट्रपति आवास पर हजारों प्रदर्शनकारियों ने धावा बोला था जिनकी फैसले लेने में मदद गुणरत्नम ने की. 

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गुणरत्नम ने एएफपी को बताया, " उन्होंने मुझे अगवा किया था और वो मुझे जान से मारना चाहते थे. " लेकिन वह एक मुस्कान के साथ कहते हैं, " लेकिन यह निजी मामला नहीं है." 

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स्थानीय मीडिया ने एक्टिवस्ट गुणरत्नम को "प्रदर्शनकारियों के एक प्रमुख" के तौर पर बताया है जिन्होंने नेतृत्व विहीन तौर से महीनों तक विरोध प्रदर्शन किए. आर्थिक संकट से उपजा और गुस्सा इसके कारण एक राजनैतिक क्रांति में परिवर्तित हुआ.  

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इसके कारण श्रीलंका में उस राजनैतिक घराने का पतन हुआ जिसे देश में दशकों पुरानी सिविल वॉर खत्म करने के लिए प्रशंसा मिली थी. सरकारी सेनाओं की तरफ से सिविल वॉर के आखिरी दिनों में किए गए अत्याचारों की हालांकि अंतरराष्ट्रीय मंच पर खूब आलोचना हुई थी. 

गुणरत्नम ने एएफपी से कहा, "राजपक्षे का देश से भागना और फिर जल्दबाजी में सिंगापुर की फ्लाइट लेना लोकतंत्र की जीत थी." लेकिन उन्होंने साथ ही कहा कि प्रदर्शनकारियों का मिशन तब तक अधूरा रहेगा जब तक गोटाबाया राजपक्षे को श्रीलंका की अदालत में कानून का सामना करने के लिए वापस नहीं लौटते." 


आगे वह कहते हैं, " वह अपहरणों और लोगों के गायब होने के पीछे प्रमुख जिम्मेदार लोगों में से एक है. और वो युद्द के दौरान हुए अपराधों के लिए भी ज़िम्मेदार लोगों में से भी एक हैं."

सफेद वैन 

देश की सिविल वॉर के दौरान सुरक्षा बलों ने परेशान करने वाले विरोधियों का कथित तौर पर अपहरण किया. और सफेद वैन अपहरण का दूसरा पर्याय बन गईं थीं.  राजपक्षे ने साल 2019 में एक स्थानीय रिपोर्टर के सामने सफेद वैन में अपहरण के प्रचलन की बात मानी थी लेकिन साथ ही उन्होंने कहा था कि यह उनके श्रीलंका के रक्षामंत्री बनने से पहले की बात है और इसे लेकर उन पर "निशाना साधना" गलत होगा.

गुणरत्नम ने 2012 में अपने साथ हुए हादसे के बारे में बताया कि उनके साथ ऐसा होने से पहले उनके करीबी दो कॉमरेड गायब हो गए थे और फिर उन्हें दोबारा नहीं देखा गया. अपनी राजनैतिक गतिविधियों का बदला लिए जाने के डर से देश से भागने के बाद गुणरत्नम को ऑस्ट्रेलिया की नागरिकता दी गई. वह अपनी जान बचाने के लिए कैनबरा के राजदूत को धन्यवाद देते हैं.  

श्रीलंका में कई विरोध प्रदर्शनकारी एक्टिविस्ट लगभग सभी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों के खिलाफ हैं और इसकी बजाए वो राष्ट्रपति को अपार शक्तियां दिए जाने का विरोध करते हैं. प्रदर्शनकारियों का मानना है कि यह शक्तियां भ्रष्टाचार और राजनैतिक हिंसा का कारण बनती हैं.  

गुणरत्नम ने काफी पहले सशस्त्र संघर्ष छोड़ दिया है. वह कहते हैं कि सड़कों पर आंदोलन को आगे बढ़ाने की ज़रूरत है ताकि समग्र राजनैतिक सुधार हो सके.  

वह कहते हैं, " हम शासकों से लोकतंत्र की उम्मीद नहीं कर सकते. इसी कारण जनता को सड़कों पर आना पड़ा और दिखाना पड़ा कि लोकतंत्र क्या है." 
 

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