यूनुस ने मानी भारत की बात! हिंदुओं की रक्षा के लिए आए आगे, छात्रों से कहा- वे भी हमारे भाई, एक साथ रहेंगे

मोहम्मद यूनुस ने कहा, "क्या वे इस देश के लोग नहीं हैं? आप (छात्र) इस देश को बचाने में सक्षम हैं; क्या आप कुछ परिवारों को नहीं बचा सकते? वे मेरे भाई हैं. हम एक साथ लड़े और हम एक साथ रहेंगे."

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ढाका:

बांग्लादेश में हिंदुओं सहित अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा की खबरों के बीच अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस ने एक मंदिर का दौरा किया. साथ ही हिंदू नेताओं से मुलाकात के बाद कहा कि ये सुनिश्चित किया गया है सभी के लिए अधिकार समान होने चाहिए, चाहे वो किसी भी धर्म का हो.

भारत ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हमले को लेकर चिंता जाहिर की थी और सरकार से उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने को लेकर अपील की थी.   

मंगलवार को ढाका में ढाकेश्वरी राष्ट्रीय मंदिर का दौरा करने के बाद, नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित मुहम्मद यूनुस ने भी लोगों से धैर्य रखने और उनकी सरकार को उसके काम के आधार पर आंकने का आग्रह किया.

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व्यापक छात्र विरोध के कारण प्रधानमंत्री शेख हसीना को इस्तीफा देने के लिए मजबूर होने के तीन दिन बाद नोबेल पुरस्कार विजेता ने पिछले गुरुवार को बांग्लादेश में सरकार के प्रमुख के रूप में शपथ ली थी.

मोहम्मद यूनुस ने बांग्लादेश पूजा उद्जापन परिषद और महानगर सर्बजनिन पूजा समिति के नेताओं सहित हिंदू समूहों के प्रतिनिधियों से मुलाकात की. उन्होंने कहा, "अधिकार सभी के लिए समान हैं. हम सभी एक अधिकार वाले एक व्यक्ति हैं. हमारे बीच कोई भेदभाव न करें. कृपया, हमारी मदद करें, धैर्य रखें और बाद में निर्णय लें कि हम क्या करने में सक्षम थे और क्या नहीं. यदि हम असफल होते हैं, तो हमारी आलोचना करें."

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संस्थागत व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने की जरूरत- मोहम्मद यूनुस
बांग्लादेशी अखबार द डेली स्टार ने अंतरिम सरकार के प्रमुख के हवाले से कहा, "हमारी लोकतांत्रिक आकांक्षाओं में, हमें मुस्लिम, हिंदू या बौद्ध के रूप में नहीं, बल्कि इंसान के रूप में देखा जाना चाहिए. हमारे अधिकारों को सुनिश्चित किया जाना चाहिए. सभी समस्याओं की जड़ संस्थागत व्यवस्थाओं का पतन है. इसीलिए, ऐसे मुद्दे सामने आते हैं. संस्थागत व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने की जरूरत है." 

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ये पहली बार नहीं है जब मोहम्मद यूनुस ने अल्पसंख्यकों पर हमलों के खिलाफ बोला है, जिसे उन्होंने पहले जघन्य करार दिया था.

उन्होंने कहा, "क्या वे इस देश के लोग नहीं हैं? आप (छात्र) इस देश को बचाने में सक्षम हैं; क्या आप कुछ परिवारों को नहीं बचा सकते? वे मेरे भाई हैं. हम एक साथ लड़े और हम एक साथ रहेंगे."

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रविवार को पत्रकारों से बात करते हुए अंतरिम सरकार के प्रमुख ने उन छात्रों की प्रशंसा की, जिन्होंने शेख हसीना के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया था.

मुहम्मद यूनुस ने छात्रों के साथ एक बैठक के बाद कहा, "मैंने छात्रों से कहा, 'मैं आपका सम्मान करता हूं. मैं आपकी प्रशंसा करता हूं. आपने जो किया है वो बिल्कुल अद्वितीय है और क्योंकि आपने मुझे ऐसा करने का आदेश दिया था (अंतरिम सरकार के प्रमुख) मैं इसे स्वीकार करता हूं. आखिरकार, शेख हसीना चली गई."

सात जनवरी को हुए चुनाव के पहले से ही बांग्लादेश में परेशानी बढ़ रही थी. शेख हसीना की अवामी लीग ने इस चुनाव में भारी बहुमत से जीत हासिल की थी. हालांकि चुनावी प्रक्रिया को व्यापक रूप से स्वतंत्र और निष्पक्ष से दूर देखा गया था.

हिंसा में 450 से अधिक लोग मारे गए
बांग्लादेशी उच्च न्यायालय द्वारा स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार के सदस्यों और बांग्लादेश के 1971 के स्वतंत्रता संग्राम के दिग्गजों के लिए सरकारी नौकरियों में 30 प्रतिशत आरक्षण बहाल करने के बाद जून में छात्रों के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन की एक नई लहर शुरू हुई, जिसमें 450 से अधिक लोग मारे गए. बाद में देश के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कोटा कम कर दिया गया, लेकिन शेख हसीना के विरोध प्रदर्शनों को संभालने के तरीके और प्रदर्शनकारियों के लिए उनके द्वारा कथित तौर पर आपत्तिजनक बयान के इस्तेमाल से छात्र नाराज हो गए.

शेख हसीना के पद छोड़ने की मांग को लेकर छात्रों ने विरोध प्रदर्शन जारी रखा और 4 अगस्त को आंदोलनकारियों और पुलिस के बीच झड़पों में देश भर में 100 से अधिक लोग मारे गए और दर्जनों घायल हो गए. अगले दिन लाखों छात्र सड़कों पर उमड़ पड़े और प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास गणभवन की ओर बढ़ने लगे, जिससे पीएम शेख हसीना को इस्तीफा देने और भारत भागने के लिए मजबूर होना पड़ा.

शेख हसीना के इस्तीफा देने के बाद भी कुछ स्थानों पर हिंसा जारी रही और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाए जाने की खबरें आईं.

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