पूरे अफगानिस्तान में फैल रहा प्रतिरोध : एंटी तालिबानी ग्रुप के नेता के भाई

मसूद ने कहा, "अगर तालिबान हमला करता है, तो लोगों को तालिबान के खिलाफ खड़े होने और विरोध करने का अधिकार है. प्रतिरोध का भूगोल पूरे अफगानिस्तान में फैल चुका है." अपने भाई की विरासत को बचाने के लिए मसूद पाकिस्तान में एक एनजीओ के हेड हैं.

विज्ञापन
Read Time: 23 mins
अहमद वली मसूद ने कहा कि तालिबान के खिलाफ अब पूरे अफगानिस्तान में प्रतिरोध फैल चुका है.

तालिबान (Taliban) के खिलाफ जंग छेड़ने वाले मशहूर दिवंगत कमांडर अहमद शाह मसूद के भाई ने बुधवार को कहा कि तालिबान का प्रतिरोध अब पूरे अफगानिस्तान (Afghanistan) में फैल चुका है और कट्टरपंथी इस्लामवादी (तालिबान) इसे कुचलने में असमर्थ होंगे. पेरिस में समाचार एजेंसी AFP को दी गई अहमद वली मसूद की टिप्पणी उनके भतीजे अहमद मसूद की टिप्पणी के रूप में देखी जा रही है, जो 2001 में मारे गए कमांडर अहमद शाह मसूद का बेटा है, और पूर्व उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह के साथ काबुल के उत्तर में स्थित पंजशीर घाटी में सशस्त्र प्रतिरोध का नेतृत्व कर रहा है.

मसूद ने कहा, "अगर तालिबान हमला करता है, तो लोगों को तालिबान के खिलाफ खड़े होने और विरोध करने का अधिकार है. प्रतिरोध का भूगोल पूरे अफगानिस्तान में फैल चुका है." अपने भाई की विरासत को बचाने के लिए मसूद पाकिस्तान में एक एनजीओ के हेड हैं.

उन्होंने तर्क दिया कि "पिछले 20 वर्षों में अफगानिस्तान के लोगों की मान्यताएं बदल गई हैं. एक बड़ी उछाल आई है." मसूद ने कहा, "अफगानिस्तान की महिलाएं प्रतिरोध का हिस्सा हैं, क्योंकि उनके मूल्य तालिबान के मूल्यों से बहुत अलग हैं. अफगानिस्तान की युवा पीढ़ी, जो आबादी का 70 प्रतिशत हिस्सा है, वे प्रतिरोध का हिस्सा हैं."

Advertisement

Afghanistan Crisis: अफगानिस्तान में IT मिनिस्टर थे और अब जर्मनी में डिलिवर कर रहे हैं पिज्ज़ा

उन्होंने कहा, "चाहे कुछ भी हो, प्रतिरोध जारी रहेगा. यह एक सार्वभौमिक विश्वास के लिए, सार्वभौमिक अधिकारों के लिए स्वतंत्रता की लड़ाई है. यह कभी खत्म नहीं होगी."

Advertisement

अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद ने कभी आत्मसमर्पण नहीं करने की कसम खाई, लेकिन बुधवार को पेरिस मैच द्वारा प्रकाशित एक साक्षात्कार में कहा गया है कि वह अफगानिस्तान के नए शासकों के साथ बातचीत के लिए तैयार है.

Advertisement

अहमद मसूद ने इसके उलट दावा किया कि "हजारों" पुरुष पंजशीर घाटी में अहमद मसूद के राष्ट्रीय प्रतिरोध मोर्चे में शामिल हो रहे हैं, जिस पर 1979 में सोवियत सेना ने हमला करके या 1996-2001 से सत्ता में अपनी पहली अवधि के दौरान तालिबान कभी भी कब्जा नहीं कर सका.

Advertisement

बता दें कि काबुल पर कब्जा करने वाले तालिबान को पंजशीर घाटी के अलावा कई जगहों पर भी विद्रोह का सामना करना पड़ रहा है. अंद्राब घाटी में विद्रोही लड़ाकों ने 50 तालिबानी लड़ाकों को मार गिराया है.