Explainer: तुर्किये वाले एर्दोगन को संदेश? प्रधानमंत्री मोदी के साइप्रस दौरे के मायने समझिए 

यह किसी भारतीय प्रधानमंत्री की साइप्रस की तीसरी यात्रा है. इससे पहले इंदिरा गांधी ने 1983 में और अटल बिहारी वाजपेयी ने 2002 में साइप्रस की यात्रा की थी.

विज्ञापन
Read Time: 4 mins

भारत ने सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा के दौरान साइप्रस की स्वतंत्रता, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का जोरदार समर्थन किया. आपको लग रहा होगा कि इसमें क्या बड़ी बात है? ये तो हर देश कहता ही रहता है, मगर इसके मायने बहुत गहरे हैं. साइप्रस के एक हिस्से पर तुर्किये अपना दावा करता है और दोनों में तनाव रहता है. प्रधानमंत्री मोदी ने साइप्रस की राजधानी निकोसिया का दौरा किया. यहां पीएम मोदी की तस्वीर तुर्किये नियंत्रित उत्तरी क्षेत्र के झंडे की पृष्ठभूमि में खींची गई. यह कदम ऑपरेशन सिंदूर के दौरान तुर्की द्वारा पाकिस्तान को दिए गए समर्थन और राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन के कश्मीर पर बार-बार की गई टिप्पणियों का जोरदार जवाब माना जा रहा है.

तुर्किये साइप्रस विवाद

साइप्रस पूर्वी भूमध्य सागर (Eastern Mediterranean) में तुर्किये का पड़ोसी और प्रतिद्वंद्वी है. 1974 में जब अंकारा की सेना ने इस पर आक्रमण किया तो यह दो भागों में बंट गया. साइप्रस का उत्तरी भाग आज भी तुर्किये के नियंत्रण में है और इसे अंकारा ने तुर्किये गणराज्य के उत्तरी साइप्रस के रूप में मान्यता दी हुई है. हालांकि, भारत सहित पूरी दुनिया साइप्रस गणराज्य को मान्यता देते हैं और पूरे द्वीप पर इसकी संप्रभुता का समर्थन करते हैं.

बफर जोन में पहुंचे पीएम मोदी

Advertisement

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी ने ग्रीन लाइन का दौरा किया, जो कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा नियंत्रित बफर जोन है, जो साइप्रस के दो हिस्सों को अलग करता है. जंग जैसे हालात को रोकने के लिए साइप्रस में संयुक्त राष्ट्र शांति सेना (UNFICYP) द्वारा इस पर गश्त की जाती है.

Advertisement

यह किसी भारतीय प्रधानमंत्री की साइप्रस की तीसरी यात्रा है. इससे पहले इंदिरा गांधी ने 1983 में और अटल बिहारी वाजपेयी ने 2002 में साइप्रस की यात्रा की थी. इस यात्रा का समय महत्वपूर्ण है. तुर्किये के पाकिस्तान के साथ कूटनीतिक और सैन्य गठबंधन को लेकर भारत काफी चिंतित है, खासकर पहलगाम आतंकी हमले और उसके बाद ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारतीय सैन्य प्रतिक्रिया के बाद.

तुर्किये अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर, विशेषकर कश्मीर मुद्दे पर, भारत की लगातार आलोचना करता रहा है और एर्दोगन ने अक्सर वैश्विक मंचों पर भारत के हितों को चुनौती देते हुए, स्वयं को मुस्लिम जगत का खलीफा के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया है.

Advertisement

तुर्किये के खिलाफ भारत बना रहा गठबंधन

इसके जवाब में, भारत तुर्किये के पारंपरिक प्रतिद्वंद्वियों ग्रीस, आर्मेनिया, मिस्र और अब साइप्रस के साथ अपने संबंधों को गहरा करके तुर्किये की क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं का मुकाबला करता दिख रहा है. ये कूटनीतिक पहल भारत के गठबंधन बनाने की एक सोची-समझी रणनीति को दर्शाती है, जो अंकारा को क्षेत्रीय रूप से अलग-थलग कर देगी और दक्षिण एशिया और उससे आगे उसके प्रभाव को कम कर देगी.

Advertisement

ब्रह्मा चेलानी से समझिए मायने

टिप्पणीकार ब्रह्मा चेलानी ने रविवार को एक्स पर लिखा, "तुर्किये पीएम मोदी की गैस-समृद्ध साइप्रस यात्रा को भारत द्वारा ग्रीस, आर्मेनिया और मिस्र सहित अंकारा के क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों के साथ संबंधों को गहरा करने के संकेत के रूप में देख सकता है. फिर भी, पाकिस्तान के साथ तुर्किये के रणनीतिक और सैन्य संबंधों के विपरीत, साइप्रस लंबे समय से भारत के साथ खड़ा है, जिसमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट के लिए समर्थन करना भी शामिल है. अगले साल यूरोपीय संघ परिषद की अध्यक्षता संभालने के लिए तैयार साइप्रस भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (आईएमईसी) में एक महत्वपूर्ण कड़ी है. भारत की भागीदारी ऊर्जा कूटनीति में साइप्रस की भूमिका को बढ़ा सकती है, जबकि भूमध्य सागर में नई दिल्ली के पदचिह्न का विस्तार कर सकती है और तुर्किये के विस्तारवाद का विरोध करने वाले भूमध्यसागरीय गठबंधन को मजबूत कर सकती है."

Featured Video Of The Day
Air India Flight Divert: Delhi-Ranchi एअर इंडिया एक्सप्रेस की उड़ान डायवर्ट