पाकिस्तान के नए PM बने शहबाज शरीफ, समर्थकों और विरोधियों से मिलेंगी चुनौतियां

शाहबाज पाकिस्तान के 24वें पीएम हैं. वे 3 मार्च 2024 को प्रधानमंत्री चुने गए थे. उन्हें 201 सांसदों का साथ मिला था. शहबाज शरीफ बेशक 5 साल के लिए वज़ीर-ए-आजम (प्रधानमंत्री) चुने गए हैं, लेकिन उनके पास बहुमत न होने की वजह से उनकी सरकार बहुत मज़बूत नहीं होगी.

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शहबाज शरीफ ने 4 मार्च को पाकिस्तान के 24वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली.
नई दिल्ली:

पाकिस्तान (Pakistan) में आखिरकार लंबी जद्दोजहद के 72 साल के शाहबाज शरीफ (Shehbaz Sharif) ने दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ले ली. शपथ ग्रहण समारोह राष्ट्रपति भवन में सोमवार (4 मार्च) को हुआ. इस दौरान शहबाज शरीफ के बड़े भाई और पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ (Nawaz Sharif), पंजाब प्रांत की मुख्यमंत्री मरियम नवाज, तीनों सेनाओं के अध्यक्ष भी मौजूद रहे. हालांकि, शहबाज शरीफ की कैबिनेट का ऐलान बाद में किया जाएगा. शाहबाज पाकिस्तान के 24वें पीएम हैं. वे 3 मार्च 2024 को प्रधानमंत्री चुने गए थे. उन्हें 201 सांसदों का साथ मिला था. शहबाज शरीफ बेशक 5 साल के लिए वज़ीर-ए-आजम (प्रधानमंत्री) चुने गए हैं, लेकिन उनके पास बहुमत न होने की वजह से उनकी सरकार बहुत मज़बूत नहीं होगी. आइए जानते हैं पीएम शहबाज शरीफ के सामने होंगी कौन-कौन सी चुनौतियां:-

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मज़बूत विपक्ष का करना होगा सामना
पाकिस्तान गहरे आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है. मुद्रा स्फीति 25 से 30 प्रतिशत तक हो गया है. जनता महंगाई से त्राहि-त्राहि कर रही है. आतंकवाद की चुनौती भी गहरी होती जा रही है. इन सबके बीच एक मज़बूत विपक्ष शहबाज शरीफ के सामने है. जेल में बंद इमरान खान की पार्टी PTI के समर्थन वाले सुन्नी इत्तेहाद काउंसिल के पीएम उम्मीदवार उमर अयूब को नेशनल असेंबली में 92 वोट मिले. वो हार गए, लेकिन विपक्ष शाहबाज़ शरीफ को चौतरफ़ा घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी.

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इमरान खान के जेल में रहते हुए भी जिस तरह से पीटीआई ने बड़ी कामयाबी हासिल की, उससे पाकिस्तान में उनकी लोकप्रियता का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. पीटीआई ने चुनाव में धांधली के भी आरोप लगाए. ये भी कहा जा रहा है कि अगर धांधली नहीं होती, तो इमरान खान की पार्टी की सरकार बनती. 

इस्लामाबाद में सस्टेनेबल डेवलपमेंट पॉलिसी इंस्टीट्यूट के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर आबिद सुलेरी ने इस मामले में NDTV से खास बात की. इमरान सरकार के समय आर्थिक सलाहकारों में भी शुमार आबिद सुलेरी ने कहा, "शहबाज शरीफ के सामने सत्तापक्ष के सहयोगी PPP और इमरान खान के समर्थकों के रूप में दोनों तरफ से चुनौतियां हैं. हालांकि, पहले की तरह इस बात की संभावना बहुत कम है कि किसी समय आगे चलकर शहबाज शरीफ के भी नवाज़ शरीफ और इमरान खान की तरह इस्टैब्लिशमेंट के साथ संबंध बिगड़ जाएं. क्योंकि शहबाज शरीफ की इस्टैब्लिशमेंट के साथ कोई लड़ाई नहीं है. वह वैचारिक तौर पर इस्टैब्लिशमेंट के समर्थक हैं."

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आबिद सुलेरी कहते हैं, "बेशक शहबाज शरीफ को इमरान खान के समर्थकों यानी विपक्ष से कड़ी चुनौती मिल सकती है. खासकर देश की मौजूदा आर्थिक हालत को लेकर उनके सामने तमाम चुनौतियां हैं. पाकिस्तान 1000 अरब रुपये से अधिक के बजटीय घाटे का सामना कर रहा है. ऐसे में देश को इस घाटे से निकलाना सबसे बड़ी चुनौती होगी." उन्होंने कहा, "पाकिस्तान के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने ऐलान किया कि उनका लक्ष्य 2030 तक जी20 सदस्यता हासिल करना है."

आतंकवाद से बिगड़ी छवि सुधारना
आतंकवाद पाकिस्तान की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है. पाकिस्तान लंबे समय से आतंकवाद का पनाहगार रहा है पर पिछले कुछ साल में देश आतंकवाद की चपेट में भी आ चुका है. अफगानिस्तान में तालिबान का शासन फिर से शुरू होने के बाद पाकिस्तान में आतंकवाद की समस्या और भी बढ़ गई है. ऐसे में शहबाज शरीफ के सामने न सिर्फ पाकिस्तान से आतंकवाद को कम करने की चुनौती होगी, बल्कि इस वजह से देश की बिगड़ी छवि को सुधारने की भी चुनौती होगी.

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इमरान खान की सरकार गिरने के बाद पहली दफा बने थे पीएम
इससे पहले साल 2022 में इमरान खान की सरकार गिरने के बाद शाहबाज शरीफ देश के प्रधानमंत्री बने थे. उन्होंने 12 अप्रैल 2022 को पीएम पद की शपथ ली थी. वो अगस्त 2023 तक पाकिस्तान के पीएम रहे थे. फिर आम चुनाव कराने के लिए संसद भंग कर दी गई थी. जिसके बाद केयरटेकर सरकार आई.

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चुनाव में PML-N को नहीं मिला था स्पष्ट बहुमत 
पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (PML-N) और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) के बीच सत्ता साझेदारी पर सहमति बनने के कुछ दिनों बाद शपथ ग्रहण समारोह हुआ. PML-N और PPP के उम्मीदवार शहबाज शरीफ को 336 सदस्यी संसद में 201 वोट मिले. जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) के उमर अयूब खान को 92 वोट मिले. मतदान में हेराफेरी के आरोपों के बीच 8 फरवरी को हुए चुनाव में PML-N स्पष्ट बहुमत नहीं जुटाई पाई थी. पार्टी को 75 सीट पर जीत हासिल हुई थी. ऐसे में उसे गठबंधन सरकार के लिए मजबूर होना पड़ा.
 

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