नेपाल को करीब 3750 करोड़ रुपये की अमेरिकी मदद का बिल संसद में भारी विरोध के बीच पारित

सीपीएन यूएमएल नेता केपी शर्मा ओली के प्रधानमंत्री रहते नेपाल में चीन का प्रभाव काफी ज्यादा बढ़ा था. हालांकि देउबा ने प्रधानमंत्री पद संभालने के बाद विदेश नीति में संतुलन कायम करने और भारत के साथ अच्छे संबंधों पर जोर दिया है. 

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काठमांडू:

नेपाल की संसद (Nepal Parliament) ने अमेरिका से मिलने वाली 50 करोड़ डॉलर ( करीब 4 हजार करोड़ रुपये) की मदद (US Grant) का बिल भारी हंगामे के बीच पारित कर दिया है. नेपाल को इस अमेरिकी अनुदान के खिलाफ मुख्य विपक्षी दल सीपीएन-यूएमएल ने जोरदार प्रदर्शन किया. वित्त मंत्री जनार्दन शर्मा ने मिलेनियम चैलेंज कारपोरेशन के तहत इस अमेरिकी अनुदान से जुड़ा बिल संसद में रखा, जो अमेरिकी संसद के निचले सदन हाउस ऑफ रिप्रंजेटेटिव के समझौते के तहत दी जा रही है. स्पीकर अग्नि प्रसाद सपकोता ने इस समझौते का अनुमोदन विपक्षी दलों के शोरशराबे के बीच ध्वनि मत से कर दिया. अमेरिका ने इस अनुदान प्रस्ताव को मंजूरी के लिए 28 फरवरी तक की मोहलत दी थी.

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प्रधानमंत्री शेर बहादुर थापा, जो सत्तारूढ़ नेपाली कांग्रेस के प्रमुख भी हैं. उन्होंने इस बिल को संसद में पेश करने से पहले तमाम दलों के साथ चर्चा भी की, ताकि इसे संसद से आसानी से मंजूरी दिलाई जा सके. दरअसल, नेपाल और अमेरिका के बीच 2017 में एक MCC समझौता हुआ था, इसके तहत नेपाल में इलेक्ट्रिक ट्रांसमिशन लाइनों, हाईवे के निर्माण जैसे बुनियादी ढांचे के विकास के लिए मदद दी जानी थी. MCC अमेरिकी की द्विपक्षीय विदेशी सहायता एजेंसी है, जिसकी स्थापना अमेरिकी संसद ने 2004 में की थी. यह अमेरिकी विदेश विभाग या यूएसऐड से अलग स्वायत्त एजेंसी (USAID) है.

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अमेरिका से इस अनुदान को स्वीकार करने को लेकर नेपाल के राजनीतिक दलों में तीखा मतभेद उभरा था. इसको लेकर नेपाल की सड़क पर भारी विरोध प्रदर्शन हुआ था. दरअसल, नेपाल में अमेरिका की पहुंच को लेकर चीन बेहद चिंता में है.उसने पिछले कुछ सालों में नेपाल की मार्क्सवादी पार्टी में अपनी अच्छी खासी पैठ बनाई है. हालांकि मौजूदा दौर में नेपाली कांग्रेस सत्ता संभाले हुए हैं, जिसमें सीपीएन माओवादी सेंटर, सीपीएन यूनिफाइड सोशलिस्ट समेत कई दल शामिल हैं.

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सीपीएन यूएमएल नेता केपी शर्मा ओली के प्रधानमंत्री रहते नेपाल में चीन का प्रभाव काफी ज्यादा बढ़ा था. हालांकि देउबा ने प्रधानमंत्री पद संभालने के बाद विदेश नीति में संतुलन कायम करने और भारत के साथ अच्छे संबंधों पर जोर दिया है. 

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