डियर जेन जी, मैं थोड़ा जिद्दी हूं... ओली की चिट्ठी में भगवान श्रीराम का जिक्र, प्रदर्शन को बताया गहरी साजिश

पूर्व पीएम ने चिट्ठी में याद दिलाया कि साल 1994-95 में जब वह गृहमंत्री थे तब उनके कार्यकाल में सरकार की ओर से एक भी गोली नहीं चली.

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  • नेपाली सेना ने प्रदर्शन के दौरान हिंसा रोकने और व्यवस्था बहाल करने के लिए सड़कों पर गश्त तेज कर दी है.
  • ओली ने शिवपुरी से लिखी चिट्ठी में बच्चों के प्रति अपनी भावनाओं और शासन परिवर्तन के संघर्ष का उल्लेख किया.
  • उन्होंने हाल की हिंसा को युवाओं के खिलाफ रची गई साजिश बताया और शांति के महत्व पर जोर दिया है.
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काठमांडू:

नेपाली सैनिकों ने बुधवार को व्यवस्था बहाल करने और ‘आंदोलन की आड़ में' संभावित हिंसा को रोकने के लिए सड़कों पर गश्त की. सोमवार और मंगलवार को जलने के बाद बुधवार को स्थिति थोड़ी सामान्‍य हो रही है. हिंसक प्रदर्शनों के कारण 9 सितंबर को प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ गया था. अब ओली की एक चिट्ठी सामने आई है जिसमें उन्‍होंने एक इमोशनल अपील की है. यह चिट्ठी जैसा कि ओली ने खुद बताया है उन्‍होंने शिवपुरी से लिखी है और यह ऐसे समय में सामने आई है जब ऐसे कयास लगाए जा हैं कि पूर्व पीएम देश छोड़कर जा चुके हैं. 

मासूम बच्चों से जुड़ी भावनाएं

पूर्व पीएम ओली ने लिखा है, 'डियर जेन जी, आज मैं शिवपुरी के इस एकांत सुरक्षा क्षेत्र में, नेपाली सेना के सैनिकों से घिरा बैठा हूं और तुम्हें याद कर रहा हूं. मेरे हृदय में सिर्फ आपके चेहरे ही बसे हुए हैं. मैं जहां भी जाता हूं, जब भी छोटे बच्चों को देखता हूं तो वो तुरंत मेरी बांहों में दौड़कर आ जाते हैं. उनकी मासूम हंसी मुझे अपार खुशी से भर देती है. सच कहूं तो बच्चों के बीच रहना मुझे रोमांचित कर देता है. शायद तुम्हें नहीं पता, लेकिन शासन परिवर्तन के कठिन संघर्ष के दौरान उस समय की सत्ता ने जो क्रूर अत्याचारों किए, उसकी वजह से मैं संतान सुख से दूर ही रह गया. फिर भी पिता बनने की इच्छा मेरे अंदर न कभी मरी और न ही कभी फीकी पड़ी.' 

हिंसा नहीं, शांति का रास्ता

ओली ने अपनी इस चिट्ठी में उन तमाम युवाओं को अपना बच्‍चा बताया है जिनकी जान दो दिनों तक चले प्रदर्शनों में चली गई. पूर्व पीएम ने लिखा, 'जब मुझे पता लगा कि पुलिस की गोलियों से मेरे कई बच्‍चों की जिंदगियां पुलिस की गोलियों में चली गईं तो उस दिन से ही मेरे लिए गई चीजें खत्‍म हो चुकी थीं. आज भी उस जख्‍म के घाव आज तक हरे हैं. मैं मानता हूं कि समाज में शांति की जगह कोई नहीं ले सकता है.'

युवाओं के खिलाफ गहरी साजिश 

पूर्व पीएम ने चिट्ठी में याद दिलाया कि साल 1994-95 में जब वह गृहमंत्री थे तब उनके कार्यकाल में सरकार की ओर से एक भी गोली नहीं चली. उन्होंने कहा कि वह खुद हिंसा के शिकार रहे हैं और इसलिए ही हमेशा शांति के पक्षधर रहे हैं. ओली ने हालिया प्रदर्शनों में हुई हिंसा को युवाओं के खिलाफ रची गई 'गहरी साजिश' करार दिया. ओली ने लिखा, 'प्रदर्शन के दूसरे दिन, यह बहुत ही विनाशकारी हो गया था लेकिन यह मेरा दृढ़ विश्‍वास है कि ऐसे काम आपके मासूम हाथों से नहीं होने चाहिए.'    

'व्यवस्था खत्म करने की कोशिश' 

ओली ने लिखा है, 'यह व्यवस्था,जिसे हमने अनगिनत कष्‍टों और बलिदानों से हासिल किया है, वह भी तब जब हमें बोलने का अधिकार नहीं था, इकट्ठा होने की अनुमति नहीं थी, सवाल करने की क्षमता नहीं थी. उस अंधेरे में लड़ते-लड़ते, संघर्ष करते हुए, यह सुनहरी व्यवस्था आ पाई है. आज अगर आप अपनी आवाज उठा पा रहे हैं, विरोध कर पा रहे हैं, तो यह इसी व्यवस्था की वजह से है. आज इसी व्यवस्था का नरसंहार करने की कोशिश हो रही है और आपको इसके प्रति संवेदनशील होना चाहिए.' 

अडिग जिद्द और राष्ट्रवाद 

ओली ने आगे लिखा, 'बच्चों, मैं स्वभाव से थोड़ा जिद्दी हूं. इस जिद के बिना शायद ऐसी मुश्किलों का सामना करते हुए मैं बहुत पहले ही हार मान चुका होता. मैंने जिद की कि हमारे देश में व्यापार करने वाले सोशल नेटवर्क हमारे नियमों का पालन करें और रजिस्‍टर्ड हों. मैंने जिद की कि लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा हमारे हैं. मैंने जिद की कि, जैसा कि शास्त्रों में कहा गया है, भगवान श्रीराम का जन्म भारत में नहीं बल्कि नेपाल में हुआ था. अगर मैं अपनी इन जिदों से पीछे हट जाता तो मुझे कई और अवसर मिलते बहुत कुछ मिलता. अगर मैंने लिंपियाधुरा सहित नेपाल का नक्शा संयुक्त राष्‍ट्र को नहीं भेजा होताया दूसरों को अपनी मनमानी चलाने दी होती, तो मेरी जिदगी किसी और ही दिशा में जा रही होती.' 

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'सत्ता नहीं, व्यवस्था महत्वपूर्ण' 

अंत में ओली ने लिखा है, 'लेकिन मैंने अपनी सारी संपत्ति देश को सौंप दी है. मेरे लिए पद और प्रतिष्‍ठा कभी महत्वपूर्ण नहीं रही. मेरे लिए सत्ता में रहना या न रहना कभी कोई बड़ा मुद्दा नहीं रहा. मेरे लिए सबसे जरूरी है इस व्यवस्था की रक्षा करना. यह व्यवस्था, जिसने आपको बोलने, चलने, सवाल करने का अधिकार दिया है, इसकी रक्षा करना ही मेरे जीवन का मुख्य मकसद है. मेरा मानना ​​है कि इस व्यवस्था को लेकर कोई समझौता नहीं हो सकता.' 

आपका, केपी शर्मा ओली, शिवपुरी


 

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