अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के क़ब्ज़े का एक साल पूरा होने पर ‘इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ़ अफ़ग़ानिस्तान' के विदेशी मिशनों ने बयान जारी कर तालिबानी सरकार को अफ़ग़ानिस्तान की बर्बादी का ज़िम्मेदार बताया. साथ ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मौजूदा समस्या का हल निकालने और मानवीय सहायता जारी रखने की अपील की है. बयान में कहा गया है, "तालिबान के अफगानिस्तान पर जबरन कब्जा करने के एक साल बाद देश गहरे राजनीतिक, मानवीय, आर्थिक, मानव अधिकारों और सुरक्षा संकट से रूबरू है. अफगान नागरिक बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं और मानवाधिकारों का सामना कर रहे हैं. दुर्व्यवहार, उल्लंघन, गरीबी, गरीबी, दमन और खौफ. रातोंरात तालिबान आतंकी समूह ने वर्ष 2001 से अफगानिस्तान के लोगों और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के सामूहिक प्रयास और बलिदान के माध्यम से हासिल की गई उपलब्धियों को वापस ले लिया. " '
कब्जे' की हिंसक और नाजायज प्रवृत्ति के बावजूद तालिबान से महिलाओं और लड़कियों समेत, सभी के मौलिक अधिकारों के संबंध में व्यक्त प्रतिबद्धताओं को पूरा करने का अवसर देने, समावेशी और प्रतिनिधि शासन का प्रस्ताव किया गया था. साथ ही यह भी बाध्यकारी दायित्व है कि अफगानिस्तान फिर कभी अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद का आश्रय स्थल नहीं बनेगा. कई देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने इस उम्मीद के साथ आतंकी समूह के साथ संवाद की नीति अख्तियार की थी कि इस चर्चा का तालिबान के लोगों की अपेक्षाओं और कार्य के प्रति नजरिये पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.
बयान में कहा गया है, "एक साल गुजर चुका है. तालिबान न केवल अपनी सभी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में नाकाम रहा है बल्कि उसने अपनी कठोर और निर्देशकारी नीतियों को फिर से लागू किया है. समूह ने लड़कियों को माध्यमिक शिक्षा हासिल करने से बैन कर दिया है और महिलाओं-लड़कियों पर सार्वजनिक जीवन में तमाम तरह की बंदिशें थोप दी हैं. "
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