- ईरान में क्रांति की संभावना पर चर्चा तेज हो गई है.
- खामेनेई शासन के विरोधी सक्रियता बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन क्या यह सही वक्त है?
- निर्वासित विरोधी समूहों में गहरी विभाजन की स्थिति बनी हुई है.
क्या यह ईरान में क्रांति का सही वक्त है. क्या जब ईरान के सुप्रीम लीडर खामेनेई अपने अस्तित्व की सबसे बड़ी लड़ाई लड़ रहे हैं, तब देश के अंदर क्रांति की आग जल सकती है. सवाल उठ रहा है कि वहां खामेनेई शासन के राजनीतिक विरोधी और मानवाधिकार की बात करने वाले एक्टिविस्ट क्या कर रहे हैं.
ईरान के खंडित विपक्षी समूहों को लगता है कि उनके ‘अच्छे दिन' निकट आ सकते हैं, लेकिन विरोध के पिछले आंदोलनों में शामिल कार्यकर्ताओं का कहना है कि वे बड़े पैमाने पर अशांति फैलाने के लिए तैयार नहीं हैं, यहां तक कि उस शासन के खिलाफ भी जिससे वे नफरत करते हैं, क्योंकि इस समय उनके देश पर हमला हो रहा है.
इस इस्लामिक गणराज्य से जान बचाकर भागे निर्वासित विरोधी खुद में गहराई से विभाजित हैं, लेकिन वो लोगों से जंग के बीच सड़क पर विरोध प्रदर्शन का आग्रह कर रहे हैं. ईरान के बॉर्डर से लगे इलाकों में, कुर्द और बलूची अलगाववादी समूह उभरने के लिए तैयार दिख रहे हैं क्यों कि इजरायली हमलों से ईरान के सुरक्षा तंत्र पर असर पड़ रहा है.
सवाल है कि क्या इस तरह के विद्रोह की संभावना है?
समीकरण में लौटने की कोशिश करता ‘राजकुमार'
ईरान के दिवंगत शाह के बेटे और क्राउन प्रिंस रेजा पहलवी भागकर अमेरिका में रहते हैं. उन्होंने इस सप्ताह मीडिया इंटरव्यू में कहा कि वह एक राजनीतिक परिवर्तन का नेतृत्व करना चाहते हैं. उन्होंने इसे चार दशकों में इस्लामिक गणराज्य को उखाड़ फेंकने का सबसे अच्छा मौका बताया और कहा कि "यह इतिहास में हमारा क्षण है".
ईरान में शासन परिवर्तन को गति देना निश्चित रूप से इजरायल के लिए एक युद्ध लक्ष्य है. प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने ईरानियों को संबोधित करते हुए कहा कि "हम आपकी स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए रास्ता भी साफ कर रहे हैं".
विद्रोह मुश्किल लेकिन फिर भी खामेनेई शासन तैयार
विद्रोह के सार्वजनिक प्रदर्शनों को खत्म करने में लंबे समय से माहिर खामेनेई शासन के भीतर, ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि वह विरोध प्रदर्शन के लिए तैयार है, उसको दबाने के लिए तैयार है.
बासिज मिलिशिया के सदस्य मोहम्मद अमीन, जो अक्सर प्रदर्शनकारियों के खिलाफ तैनात होते हैं, ने कहा कि कोम में उनकी इकाई को इजरायली जासूसों को खत्म करने और इस्लामी गणराज्य की रक्षा के लिए अलर्ट पर रखा गया है. ईरान छोड़ने से पहले छह साल जेल में बिताने वाली एक प्रमुख कार्यकर्ता अटेना डेमी ने कहा, "लोगों को सड़कों पर कैसे उतरना चाहिए? ऐसी भयावह परिस्थितियों में, लोग पूरी तरह से खुद को, अपने परिवार, अपने हमवतन और यहां तक कि अपने पालतू जानवरों को बचाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं."
डेमी की चिंताओं को ईरान के सबसे प्रमुख कार्यकर्ता, नोबेल शांति पुरस्कार विजेता नरगेस मोहम्मदी ने भी एक सोशल मीडिया पोस्ट में व्यक्त किया है. लोगों से तेहरान के कुछ हिस्सों को खाली करने की इजरायली मांग पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने पोस्ट किया: "मेरे शहर को नष्ट मत करो."
रॉयटर्स ने ईरान में दो अन्य कार्यकर्ताओं से बात की, जो दो साल पहले महसा अमिनी की हिरासत में मौत के बाद बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन में शामिल हजारों लोगों में से थे. उन्होंने कहा कि उनकी भी अभी तक प्रदर्शन करने की कोई योजना नहीं है. शिराज में एक यूनिवर्सिटी के छात्र ने बदले के डर से गुमनाम रहने की शर्त पर कहा, "हमले खत्म होने के बाद हम अपनी आवाज उठाएंगे क्योंकि यह शासन इस युद्ध के लिए जिम्मेदार है."
एक अन्य कार्यकर्ता ने बात की जिसको 2022 के विरोध प्रदर्शन के बाद यूनिवर्सिटी से निकाल दिया गया था और उसने पांच महीने के लिए जेल गई थी. उसने नाम न छापने की गुजारिश करते हुए कहा कि वह ईरान में शासन परिवर्तन में विश्वास करती है लेकिन यह सड़कों पर उतरने का समय नहीं है.
तख्तापलट पर किसकी नजर?
रेजा पहलवी के राजशाहीवादियों के अलावा, ईरान के बाहर मुख्य विपक्षी गुट पीपुल्स मुजाहिदीन संगठन है, जिसे एमईके या एमकेओ के नाम से भी जाना जाता है. 1970 के दशक का यह एक क्रांतिकारी गुट है जो शाह के तख्तापलट के बाद सत्ता संघर्ष में हार गया. 1980-88 के गतिरोध वाले युद्ध के दौरान इराक का साथ देने के लिए कई ईरानियों ने इसे माफ नहीं किया है और अधिकार समूहों ने इसके शिविरों में दुर्व्यवहार का आरोप लगाया है, जिसका वह खंडन करता है.
मुजाहिदीन ईरान की राष्ट्रीय प्रतिरोध परिषद के पीछे मुख्य ताकत हैं, जिन्होंने पहलवी की तरह कुछ पश्चिमी राजनेताओं के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए हैं. इस सप्ताह पेरिस मंच पर, परिषद की नेता मरियम राजवी ने राजशाही की किसी भी वापसी के प्रति अपना विरोध दोहराया और कहा, "न तो शाह और न ही मुल्ला".
ईरान के भीतर, राष्ट्रीय विरोध प्रदर्शनों के दौर भी अलग-अलग मुद्दों पर केंद्रित रहे हैं. 2009 में, प्रदर्शनकारियों ने इसे धंधली भरे राष्ट्रपति चुनाव के रूप में देखा और सड़कों पर उतर आए. 2017 में, विरोध प्रदर्शन गिरते जीवन स्तर पर केंद्रित थे और 2022 के आंदोलन महिलाओं के अधिकार पर शुरू हुए थे.
ईरान के अंदर इस्लामिक गणराज्य के विरोधियों के समने सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या विरोध प्रदर्शन करना है या कब करना है. किस एजेंडे को आगे बढ़ाना है, या किस नेता का अनुसरण करना है. उनपर और अधिक दबाव बढ़ने की संभावना है क्योंकि इज़राइल के हवाई हमले जारी हैं.