- पीएम मोदी और शी जिनपिंग की SCO समिट में मुलाकात दोनों देशों के रिश्तों में नए सकारात्मक बदलाव का संकेत है.
- अमेरिका के टैरिफ और रूस से तेल खरीदने को लेकर भारत पर बढ़ते दबाव के बीच भारत-चीन संबंधों में नरमी आई है.
- न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार चीन ने SCO मंच से अमेरिका के अकेले निर्णयकर्ता नहीं रहने का संदेश विश्व को दिया है.
PM Modi-Xi Jinping Meet: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ वॉर के बीच भारत और चीन में नजदीकियां बढ़ी हैं. दोनों ही देशों के साथ रूस के संबंध पहले से ही ठीक रहे हैं. ऐसे में SCO समिट के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चीन दौरा बेहद महत्वपूर्ण साबित हुआ है. चीन के ऐतिहासिक शहर तियानजिन में पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच बातचीत काफी सकारात्मक रही है. दुनियाभर के कई देश इसे काफी सकारात्मक नजरिये से देख रहे हैं. दोनों नेताओं की मुलाकात और बैठक के बाद इंटरनेशनल मीडिया ने जो लिखा है, उससे अमेरिका को मिर्ची लग सकती है.
अमेरिकी मीडिया न्यूयॉर्क टाइम्स से लेकर सीएनएन और ब्रिटेन के मीडिया बीबीसी ने भारत और चीन की नजदीकियों को मौजूदा जियो-पॉलिटिकल परिदृश्य में बेहद महत्वपूर्ण बताया है.
मोदी-जिनपिंग की दोस्ती: सीएनएन
सीएनएन ने पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात को न केवल एशिया बल्कि वैश्विक राजनीति के लिए भी अहम बताया है. इसने 'Xi and Modi talk friendship in a ‘chaotic' world as Trump's tariffs bite' शीर्षक से प्रकाशित लेख को पेज पर लीड रखा और इसमें 'ट्रंप के टैरिफ से मची उथल-पुथल के बीच मोदी-जिनपिंग की दोस्ती' पर फोकस किया है.
सीएनएन ने लिखा, 'तियानजिन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन के दौरान सात साल बाद चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात को दोनों देशों के बीच रिश्तों में नए मोड़ के रूप में देखा जा रहा है. शी ने कहा कि भारत और चीन को प्रतिद्वंद्वी नहीं बल्कि मित्र और साझेदार बनना चाहिए, जबकि मोदी ने आपसी विश्वास और सम्मान के आधार पर संबंधों को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई.'
इसने आगे लिखा, 'बैठक ऐसे समय हुई जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर भारी टैरिफ लगाए हैं और रूस से तेल खरीदने को लेकर दबाव बढ़ाया है. इससे भारत-अमेरिका रिश्तों में तनाव बढ़ा है, जिसका फायदा चीन को मिलता दिख रहा है. इसी बीच, भारत-चीन संबंधों में भी नरमी आई है, सीमा पर तनाव कम करने, बंद उड़ानों को फिर से शुरू करने और वीज़ा संबंधी रियायतों जैसे कदम उठाए गए हैं.' दोनों नेताओं ने जोर दिया कि भारत और चीन को विकास और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को बढ़ावा देने पर ध्यान देना चाहिए.
चीन ने अपनी ताकत दिखाई: NYT
द न्यूयॉर्क टाइम्स ने 'China Shows Off Its Power' शीर्षक से प्रकाशित लेख में लिखा, 'ट्रंप की नीतियां अमेरिका के पारंपरिक सहयोगियों (भारत भी शामिल) को दूर कर रही हैं और चीन इस अवसर का फायदा उठाने की कोशिश कर रहा है. तियानजिन में हुई शंघाई सहयोग संगठन (SCO) बैठक में 20 से अधिक नेता शामिल हुए, जिनमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूस के राष्ट्रपति पुतिन और अमेरिका के सहयोगी देश तुर्की व मिस्र भी थे. चीन इस मंच से संदेश देना चाहता है कि अब अमेरिका अकेला निर्णयकर्ता नहीं है. ट्रंप की असंगत नीतियां (पुतिन के लिए रेड कार्पेट, मोदी पर टैरिफ) चीन को फायदा पहुंचा रही हैं. सैन्य परेड और इतिहास का हवाला देकर चीन भविष्य की जियो-पॉलिटिक्स में अपनी भूमिका मजबूत करना चाहता है.
चीन इस अवसर पर दुनिया को संदेश देना चाहता है कि अब अंतरराष्ट्रीय फैसलों में सिर्फ अमेरिका की नहीं चलेगी. ट्रंप ने रूस को सम्मान दिया लेकिन भारत पर टैरिफ लगाया, जिससे दोनों स्थितियां चीन के हित में गईं. पीएम मोदी की उपस्थिति भी संकेत देती है कि भारत के पास विकल्प हैं और अमेरिका की असंगत नीतियों के नतीजे हो सकते हैं. साथ ही, चीन ये भी दिखाना चाहता है कि उसकी सेना अब विश्वस्तरीय है और वह इतिहास, सैन्य ताकत और कूटनीति, तीनों का इस्तेमाल अपने भविष्य के भू-राजनीतिक लक्ष्यों को हासिल करने में कर रहा है.
मजबूत हो रहे भारत-चीन के रिश्ते: बीबीसी
ब्रिटेन के प्रमुख मीडिया में से एक बीबीसी ने भारत और चीन के बीच रिश्ते को मजबूत होता देखा है. उसने लिखा, 'चीन और भारत के बीच रिश्तों में लंबे समय से चल रहे तनाव और सीमा विवाद के बावजूद अब भरोसा बढ़ता दिख रहा है. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाक़ात तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन के दौरान हुई. सात साल बाद मोदी का चीन दौरा हुआ है. बैठक में शी ने कहा कि भारत और चीन को प्रतिद्वंद्वी नहीं बल्कि साझेदार होना चाहिए. मोदी ने भी कहा कि अब दोनों देशों के बीच “शांति और स्थिरता का माहौल” है. उन्होंने यह भी घोषणा की कि 2020 की सीमा झड़पों के बाद बंद हुई भारत-चीन उड़ानें फिर शुरू की जाएंगी.
बीबीसी ने लिखा, 'ये सम्मेलन ऐसे समय हुआ है जब अमेरिका-भारत रिश्ते कठिन दौर से गुजर रहे हैं. राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत पर रूस से तेल खरीदने के कारण टैरिफ लगाए हैं, वहीं पुतिन को यूक्रेन युद्ध को लेकर प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है. इन हालात में मोदी और शी की नज़दीकी अमेरिका को सीधा संदेश देती है. SCO की यह बैठक अब तक की सबसे बड़ी रही, जिसमें 20 से अधिक देशों के नेता शामिल हुए.'
भारत जैसा 'पार्टनर' खो सकता है अमेरिका
वन वर्ल्ड आउटलुक के एक लेख में कहा गया है कि जिस तरह अप्रैल-जून तिमाही में भारत की अर्थव्यवस्था ने 7.8% वृद्धि दर्ज की, इसने ट्रंप के भारत को कमजोर अर्थव्यवस्था कहे जाने को झूठा साबित कर दिया. भारत की ग्रोथ मुख्य रूप से घरेलू खपत पर आधारित है, न कि निर्यात पर. GDP का लगभग 68% हिस्सा घरेलू और सरकारी खर्च से आता है.
एप्पल जैसी कंपनियां भारत में लगभग 2.5 बिलियन डॉलर का निवेश कर रही हैं, जो यहां के मजबूत बाजार और नीतिगत माहौल में विश्वास दिखाता है. अमेरिकी टैरिफ और दंडात्मक नीतियां निर्यात और नौकरियों के लिए खतरा, के साथ-साथ दोनों देशों के बीच अविश्वास बढ़ा रही हैं.
इस लेख में चेतावनी दी गई है कि अगर अमेरिका सहयोग के बजाय टकराव की नीति अपनाता है तो वह एक महत्वपूर्ण आर्थिक और रणनीतिक साझेदार खो सकता है. भारत की स्थिति मजबूत होने और निवेश आकर्षित करने की वजह से, वह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भू-राजनीतिक संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभा सकता है.
भारत को कमतर आंकना अमेरिका की बड़ी भूल
NDTV पर एक पैनल डिस्कशन में ताइहे इंस्टीट्यूट के सीनियर फेलो एइनर टैंगेन ने कहा कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत पर दबाव डालना चाहते हैं, लेकिन भारत के पास इसे चुनौती देने का अवसर है. उन्होंने कहा कि भारत जैसे बड़े बाजार और श्रम शक्ति वाले देश को कमतर आंकना वॉशिंगटन की भूल है. टैंगेन के मुताबिक मोदी-शी की बैठक सिर्फ भारत-चीन संबंधों तक सीमित नहीं थी, बल्कि यह वाशिंगटन को एक मजबूत संदेश थी कि दुनिया ट्रंप की मनमानी नीतियों के खिलाफ खड़ी हो सकती है.
टैंगेन ने कहा कि ट्रंप ने 180 देशों पर टैरिफ लगाए हैं और 'धमकाने' टाइप व्यवहार कर रहे हैं. ऐसे समय में भारत संतुलनकारी भूमिका निभाकर SCO और ब्रिक्स में अहम शक्ति बन सकता है. उन्होंने कहा, अमेरिका को डर है कि भारत गुटनिरपेक्ष दुनिया का नेतृत्व करेगा और उसके 'औपनिवेशिक खेलों' को नकार देगा. टैंगेन ने जोर दिया कि पीएम मोदी का नेतृत्व ही अमेरिका की सबसे बड़ी चिंता है. बता दें कि अमेरिका में जन्मे टैंगेन अब चीन में रहते हैं और दोनों देशों के संबंध पर जियो-पॉलिटिकल एक्सपर्ट हैं.