भारतीय-ब्रिटिश खगोलशास्त्री डॉ. निक्कू मधुसूदन और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में उनकी टीम ने K2-18b नामक एक दूर के ग्रह पर एलियन जीवन के संभावित संकेतों की पहचान की है. नासा के जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (JWST) की मदद से टीम ने डाइमिथाइल सल्फाइड (DMS) और डाइमिथाइल डाइसल्फ़ाइड (DMDS) गैसों की मौजूदगी का पता लगाया, जो विशेष रूप से ध्यान देने लायक हैं, क्योंकि ये समुद्र में मौजूद समुद्री शैवाल द्वारा प्रोड्यूस होते हैं.
डॉ. निक्कू मधुसूदन कौन हैं?
भारत में 1980 में जन्मे, डॉ. मधुसूदन ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, BHU, वाराणसी से B.Tech. की डिग्री हासिल की. बाद में, उन्होंने मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) से मास्टर डिग्री के साथ-साथ पीएचडी भी की. 2009 में उनकी पीएचडी थीसिस हमारे सौर मंडल के बाहर के ग्रहों के वायुमंडल का अध्ययन करने के बारे में थी, जिन्हें एक्स्ट्रासोलर ग्रह कहा जाता है.
डॉ. मधुसूदन ने हाइसीन ग्रहों को लेकर किया रिसर्च
डॉ. निक्कू मधुसूदन ने हाइसीन ग्रहों को लेकर रिसर्च किया, जिन्हें जीवन की तलाश को लेकर ग्रहों का सबसे अच्छा वर्ग माना जाता है. हाइसीन ग्रहों का वातावरण हाइड्रोजन से भरा हुआ है, और उसके नीचे महासागर हैं. डॉ. मधुसूदन के रिसर्च में उनके वायुमंडल, अंदरूनी भाग और उनके निर्माण का अध्ययन शामिल है. उनके काम में हाइसीन दुनिया, उप-नेपच्यून और बायोसिग्नेचर की खोज भी शामिल है. वह HST, JWST और बड़े ग्राउंड-आधारित दूरबीनों की मदद से एक्सोप्लैनेट के लिए रेडियेटिव ट्रांसफर, प्लैनेटरी केमेस्ट्री और एटमॉस्फेरिक रिट्रीवल मेथड्स पर भी काम करते हैं.
कई पुरस्कारों से सम्मानित किए गए हैं डॉ. मधुसूदन
डॉ. मधुसूदन को कई पुरस्कारों, जैसे सैद्धांतिक खगोल भौतिकी में ईएएस एमईआरएसी पुरस्कार (2019), शिक्षण में उत्कृष्टता के लिए पिलकिंगटन पुरस्कार (2019), खगोल भौतिकी में आईयूपीएपी युवा वैज्ञानिक पदक (2016) और एएसआई वेणु बापू स्वर्ण पदक (2014) से भी सम्मानित किया गया है.