भारत-रूस संबंध "बिजली के बटन की तरह" नहीं बदल सकते...इसमें समय लगेगा : अमेरिका

अमेरिका (US) और पश्चिमी (West) देशों के विरोध के बावजूद रूस (Russia) मई में सऊदी अरब (Saudi Arab) को पीछे छोड़कर भारत का दूसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल (Crude Oil) आपूर्तिकर्ता बन गया था. 

विज्ञापन
Read Time: 25 mins
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने दिया भारत-रूस संबंधों पर बयान ( File Photo)
वॉशिंगटन:

अमेरिका (US) ने कहा है कि भारत (India) के रूस (Russia) के साथ दशकों पुराने संबंध हैं, इसलिए उसे अपनी विदेश नीति में रूस की तरफ झुकाव हटाने में लंबा समय लगेगा. अमेरिका ने कहा कि वह चार देशों के सुरक्षा संवाद (QUAD) एवं अन्य मंचों के जरिए भारत के साथ ‘‘बहुत निकटता'' से काम कर रहा है. अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस (Ned Price) से भारत द्वारा रूसी तेल, उर्वरक और संभवत: रूसी रक्षा प्रणाली खरीदे जाने के बारे में सवाल पूछे जाने पर यहां संवाददाताओं से कहा, ‘‘किसी अन्य देश की विदेश नीति के बारे में बात करना मेरा काम नहीं है.''

उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन भारत से हमने जो सुना है, मैं उस बारे में बात कर सकता हूं. हमने दुनियाभर में देशों को यूक्रेन (Ukraine) पर रूस के हमले के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने वोट समेत कई बातों पर स्पष्ट रूप से बात करते देखा है. हम यह बात भी समझते हैं और जैसा कि मैंने कुछ ही देर पहले कहा था कि यह बिजली का बटन दबाने की तरह नहीं है.''

उन्होंने एक प्रश्न के उत्तर में कहा, ‘‘यह समस्या विशेष रूप से उन देशों के साथ है, जिनके रूस के साथ ऐतिहासिक संबंध हैं. जैसा कि भारत के मामले में है, उसके संबंध दशकों पुराने हैं. भारत को अपनी विदेश नीति में रूस की तरफ झुकाव हटाने में लंबा समय लगेगा.''

Advertisement

यूक्रेन पर रूस ने 24 फरवरी को हमला कर दिया था, जिसके बाद अमेरिका और यूरोपीय देशों ने उस पर कड़े प्रतिबंध लगाए. भारत ने पश्चिमी देशों की आलोचना के बावजूद रूस से यूक्रेन युद्ध के बाद तेल आयात बढ़ाया है और उसके साथ व्यापार जारी रखा है. रूस मई में सऊदी अरब (Saudi Arab) को पीछे छोड़कर भारत का दूसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया था. इराक भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता है. भारतीय तेल कंपनियों ने मई में रूस से 2.5 करोड़ बैरल तेल का आयात किया.

Advertisement

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि रूस से तेल खरीदने के भारत के फैसले की अमेरिका और दुनिया के अन्य देश भले ही सराहना न करें, लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया है, क्योंकि नयी दिल्ली ने अपने रुख का कभी बचाव नहीं किया, बल्कि उन्हें यह एहसास कराया कि तेल एवं गैस की ‘‘अनुचित रूप से अधिक'' कीमतों के बीच सरकार का अपने लोगों के प्रति क्या दायित्व है.

Advertisement

भारत ने अक्टूबर 2018 में S-400 हवाई रक्षा मिसाइल प्रणाली की पांच इकाइयों को खरीदने के लिए रूस के साथ पांच अरब डॉलर के समझौते पर हस्ताक्षर किए थे.

Advertisement

प्राइस ने रूस एवं चीन और भारत समेत कई अन्य देशों के बहुपक्षीय संयुक्त सैन्य अभ्यास से जुड़े प्रश्नों का उत्तर देते हुए कहा, ‘‘देश अपने संप्रभु फैसले नियमित रूप से स्वयं करते हैं. यह तय करना उनका पूर्ण अधिकार है कि उन्हें कौन से सैन्य अभ्यास में भाग लेना है. मैं यह भी उल्लेख करूंगा कि इस अभ्यास में भाग ले रहे अधिकतर देश अमेरिका के साथ भी नियमित रूप से सैन्य अभ्यास करते हैं.''

प्राइस ने कहा, ‘‘मुझे इस गतिविधि से जुड़ी कोई और बात दिखाई नहीं देती. अब व्यापक विषय यह है कि हमने चीन और रूस के बीच सुरक्षा समेत कई क्षेत्रों में संबंध बढ़ते देखे हैं. हमने रूस और ईरान के बीच संबंध बढ़ते देखे हैं और हमने सार्वजनिक रूप से इस पर बयान दिए हैं.''

उन्होंने कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को लेकर चीन और रूस जैसे देशों के नजरिए के मद्देनजर चिंता की बात है.

Topics mentioned in this article