शेख हसीना के जाने के बाद भारत-बांग्लादेश संबंधों का क्या होगा, क्या खालिदा जिया की होगी वापसी

बाग्लादेश में छात्रों के विरोध प्रदर्शन के आगे झुकते हिए प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने ब्रिटेन से राजनीतिक शरण मांगी है. ऐसे में आइए जानते हैं कि शेख हसीना की गैर मौजूदगी का भारत-बांग्लादेश के रिश्तों पर क्या असर पड़ेगा.

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नई दिल्ली:

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने सोमवार को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.स्वतंत्रता सेनानियों को मिलने वाले आरक्षण के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोग उनके दफ्तर और घर में घुस गए थे.इसके बाद वो सेना के एक जहाज से देश छोड़कर निकल गईं.उन्होंने ब्रिटेन में राजनीतिक शरण मांगी है. शेख हसीना बांग्लादेश के संस्थापक माने जाने वाले शेख मुजीबुर रहमान की बेटी हैं.हसीना के इस्तीफे के बाद बांग्लादेश के सेना प्रमुख वकर उज जमान ने कहा कि सेना अंतरिम सरकार बनाएगी.माना जा रहा है कि बांग्लादेश में नए सिरे से संसदीय चुनाव कराए जाएंगे. 

शेख हसीना का भारत प्रेम

हसीना पिछले चार चुनावों से लगातार चुनावों में जीत दर्ज कर रही थीं. उन्होंने ये चुनाव विपक्ष की लगभग गैरमौजूदगी में जीते.दुनिया के कई देशों ने इन चुनावों की आलोचना की थी.लेकिन इस दौरान भारत और बांग्लादेश के राजनीतिक संबंध काफी मजबूत हुए.हसीना को भारत समर्थक माना जाता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लगातार तीसरी बार सत्ता संभालने के बाद हसीना भारत के दौरे पर आई थीं.यह मोदी 3.0 सरकार में किसी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष की पहली भारत यात्रा थी.हसीना पीएम नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में भी शामिल हुई थीं. उनके ये दौरे बताते हैं कि वो भारत के साथ अपने संबंधों को कितना महत्व देती थीं.अपनी यात्रा के दौरान उन्होंने कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख सोनिया गांधी और उनके परिवार से भी मुलाकात की थी.

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हसीना ने चीन दौरा बीच में ही छोड़ा

जून में दो बार भारत की यात्रा करने के बाद शेख हसीना जुलाई में चीन की यात्रा पर गई थीं.लेकिन वो दौरा बीच में ही छोड़कर वापस लौट आई थीं. हसीना ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और अपनी चीनी समकक्ष ली किया से बीजिंग में 10 जुलाई को मुलाकात की थी.इस दौरान दोनों देशों ने 21 समझौतों पर दस्तखत किए थे. बांग्लादेश की सरकारी समाचार एजेंसी 'बांग्लादेश संगबाद संगस्था' (बीएसएस) के मुताबिक चीन और बांग्लादेश ने अपनी रणनीतिक साझेदारी को व्यापक रणनीतिक सहकारी साझेदारी तक बढ़ाया. दोनों देशों के नेताओं की चर्चा के दौरान रोहिंग्या, व्यापार और वाणिज्य, निवेश और आपसी संबंधों जैसे विषय उठे.

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हसीना को 11 जुलाई को वापस लौटना था,लेकिन वो 10 जुलाई की रात को ही स्वदेश रवाना हो गई. हसीना की समय से पहले वापसी से अनुमान लगाया गया था कि इस दौरे पर उन्हें वह नहीं मिला, जो वो चाहती थीं.हालांकि कहा यह गया था कि हसीना बेटी के खराब स्वास्थ्य की वजह से वापस लौटी थीं. लेकिन विश्वलेषकों ने इसके दूसरे मायने भी निकाले. हसीना की यात्रा के दौरान चीन ने बांग्लादेश को एक अरब डॉलर की मदद की घोषणा की थी. इसकी घोषणा ली ने की थी. लेकिन कहा गया कि हसीना को और अधिक मदद की उम्मीद थी.क्योंकि हसीना की यात्रा से पहले चीन ने पांच अरब डॉलर के कर्ज का आश्वासन दिया था.लेकिन एक अरब डॉलर ही दिया.हसीना इससे नाराज बताई गईं.

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क्या बीएनपी फिर संभालेगी बांग्लादेश में सत्ता

बांग्लादेश में छात्र पिछले काफी समय से विवादित आरक्षण प्रणाली के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे.छात्रों के साथ विपक्षी पार्टियां मजबूती के साथ खड़ी थीं.सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण प्रणाली को लगभग खत्म कर दिया था.लेकिन छात्रों का गुस्सा इससे भी शांत नहीं हुआ.वो शेख हसीना के इस्तीफे की मांग पर अड़े रहे.इसमें उन्हें सफलता भी मिल गई है. 

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छात्रों के प्रदर्शन के दौरान बांग्लादेश में हुई हिंसा में 100 से अधिक लोगों के मारे जाने की खबर है.

शेख हसीना की सरकार जाने के बाद से बांग्लादेश में मुख्य विपक्षी पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की सरकार वापस लौटने की उम्मीद जताई जा रही है. इसके संकेत बीएनपी की नेता और पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के बेटे तारिक रहमान ने दिया है. हसीना के इस्तीफे के बाद रहमान ने छात्रों को बधाई दी. उन्होंने कहा कि हम सब फिर डेमोक्रेटिक सरकार चलाएंगे.जिया पिछले काफी समय से कैद हैं.

खालिदा जिया की बीएनपी ने इस साल सात जनवरी को कराए गए संसदीय चुनाव का बहिष्कार किया था.ऐसे में हसीना की अवामी लीग को बड़ी जीत दर्ज करने में कोई परेशानी नहीं हुई थी.अवामी लीग और उसके सहयोगियों ने 250 से अधिक सीटें जीत ली थीं. इतनी बड़ी जीत के बाद हसीना को अगले पांच साल तक सरकार चलानी थी. लेकिन उन्हें छह महीने बाद ही इस्तीफा देना पड़ा है. 

बीएनपी का भारत विरोधी रुख

ऐसे में अब उम्मीद जताई जा रही है कि बांग्लादेश की सत्ता में खालिदा जिया की वापसी हो सकती है. जिया की बीएनपी को बांग्लादेश की कट्टरपंथी पार्टी मानी जानी वाली बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी का भी समर्थन हासिल है.वह बीएनपी की सरकार में भी शामिल रही है.खालिदा जिया अपनी भारत विरोधी नीतियों के लिए जानी जाती हैं.इस साल अप्रैल में बांग्लादेश में 'इंडिया आउट' और भारतीय उत्पादों के बहिष्कार का मामला भी छाया हुआ था. बीएनपी इस अभियान के साथ नजर आ रहे थीं. भारत के रिश्ते बीएनपी के साथ पिछले कई दशक से सामान्य नहीं चल रहे हैं. इसे उसके भारत विरोधी रुख से जोड़कर देखा जाता है. ऐसी खबरें थीं कि इस साल हुए चुनाव से पहले बीएनपी ने भारत को संदेश भेजा था कि वो अपनी भारत विरोधी नीतियों पर वापस नहीं लौटेगी. लेकिन भारत ने उसकी अपील पर खास ध्यान नहीं दिया था. 

खालिदा जिया की बीएनपी का रुख भारत के खिलाफ रहा है.

भारत चाहता है कि बांग्लादेश में एक ऐसी सरकार सत्ता में रहे जिसके साथ उसे काम करने में आसान हो. शेख हसीना की सरकार में उसे अपना हित नजर आता है. जबकि खालिदा जिया की सरकार में ऐसा नहीं होता है. उनकी सरकार में वहां भारत विरोधी भावनाएं और आंदोनल खड़ा हो जाता है. वहीं हसीना सरकार ने न केवल अपनी जमीन पर चल रहे भारत विरोधी कैंपों को बंद कराया और भारत में वांछित लोगों को उसे सौंपा.ऐसे में अगर बांग्लादेश में बीएनपी की सरकार आती है तो भारत के लिए मुश्किलें पैदा हो सकती हैं, क्योंकि वह अपने दो पड़ोसियों से पहले से ही परेशान है. ऐसे में एक तीसरा पड़ोसी उसके लिए मुश्किलें पैदा कर सकता है. 

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