- HRCBM का दावा है कि बांग्लादेश में पिछले 11 महीनों में ईशनिंदा से जुड़ी कम से कम 73 घटनाएं हुई हैं
- मानवाधिकार संगठन का दावा है कि ईशनिंदा का आरोप अब जमीन हड़पने और दुश्मनी निकालने का हथियार बन चुका है
- HRCBM ने चेतावनी दी है कि ये घटनाएं महज हिंसा नहीं बल्कि बांग्लादेश से अल्पसंख्यकों को खत्म करने की साजिश है
बांग्लादेश में हिंदू युवक दीपू चंद्र दास की पीट-पीटकर हत्या और बीच रास्ते में पेड़ से बांधकर जलाने की घटना को लेकर दुनिया भर में आक्रोश है. लेकिन बांग्लादेशी मानवाधिकार संगठन HRCBM की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि देश में हिंदुओं पर अत्याचार अब हदें पार करते जा रहे हैं और इस जुल्म का हथियार बन रहा है ईशनिंदा का आरोप. संगठन का कहना है कि यह एक सुनियोजित पैटर्न बन चुका है. पिछले 11 महीनों में ही देश के 32 जिलों में ईशनिंदा से जुड़ी कम से कम 73 घटनाएं हो चुकी हैं. इनमें से तमाम मामले पुलिस ने दर्ज तक नहीं किए हैं.
हिंसा का खतरनाक पैटर्न
अल्पसंख्यकों के हितों के लिए काम करने वाले संगठन का दावा है कि संगठन का कहना है कि ईशनिंदा का इस्तेमाल अब धार्मिक आस्था बचाने के लिए नहीं बल्कि जमीन हड़पने, आपसी रंजिश निकालने और व्यापारिक प्रतिद्वंद्विता को खत्म करने के लिए एक हथियार के रूप में भी किया जा रहा है. उसके मुताबिक, हमलों का मुख्य निशाना अल्पसंख्यक युवा होते हैं. इसके पीछे एक गहरी साजिश है. युवाओं को निशाना बनाकर पूरे समुदाय में डर पैदा किया जाता है. झूठे आरोप लगवाकर छात्रों को स्कूल-कॉलेजों से निकलवा दिया जाता है ताकि उनका भविष्य ही खराब हो जाए. घरों और दुकानों को लूटकर परिवारों को सड़क पर ला दिया जाता है.
पूरे देश में हो रहे 'जुल्म'
ह्यूमन राइट्स कांग्रेस फॉर बांग्लादेश माइनॉरिटीज (HRCBM) ने इस महीने की शुरुआत में बताया कि किस तरह जिले-जिले में ईशनिंदा को हथियार बनाकर अल्पसंख्यकों पर जुल्म हो रहे हैं.
- HRCBM के मुताबिक, 2025 में जनवरी से नवंबर के बीच ईशनिंदा संबंधित 73 घटनाएं उसने दर्ज की हैं.
- ये घटनाएं 32 जिलों में हुईं, जो दिखाता है कि ये पैटर्न बांग्लादेश के कोने-कोने तक फैल चुका है.
- देश में इतनी घटनाएं हुईं, लेकिन महज 40 मामलों में ही पुलिस ने केस दर्ज किए.
- 5 ऐसे मामले भी HRCBM ने दर्ज किए, जिसमें पुलिस ने केस दर्ज करने से ही इनकार कर दिया
- ईशनिंदा के ऐसे ही आरोपों को वजह बनाकर 5 छात्रों को स्कूल-कॉलेजों से निकाल दिया गया.
ह्यूमन राइट्स कांग्रेस फॉर बांग्लादेश माइनॉरिटीज (HRCBM) ने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले की डिटेल रिपोर्ट दी है.
बेगुनाहों को फंसाने का डिजिटल हथियार
में दावा किया गया है कि सोशल मीडिया अल्पसंख्यकों पर हिंसा का हथियार बन रहा है. ईशनिंदा के तमाम मामले मनगढ़ंत और डिजिटल छेड़छाड़ करके बनाए जाते हैं. अक्सर सोशल मीडिया पर कोई फर्जी पोस्ट या अकाउंट हैक करके छेड़छाड़ किए हुए स्क्रीनशॉट फैलाए जाते हैं. इसके कुछ ही घंटे बाद उन्मादी भीड़ पीड़ित के ठिकाने पर हमला कर देती है. उसके घर, मंदिर और व्यापारिक प्रतिष्ठानों को आग के हवाले कर दिया जाता है. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पुलिस अक्सर असली दोषियों के बजाय पीड़ित हिंदू युवाओं को ही गिरफ्तार कर लेती है जबकि हमलावर खुलेआम घूमते हैं. 15-16 साल के मासूम लड़कों को भी जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया जाता है.
'अस्तित्व मिटाने की गहरी साजिश'
संगठन की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि झूठे आरोप लगाकर को न सिर्फ पीटा गया बल्कि कई मामलों में सरेआम जिंदा जला दिया गया. यह अल्पसंख्यक समाज में खौफ पैदा करने की एक सोची-समझी साजिश है. इसकी वजह से हजारों लोग पलायन करने को मजबूर हैं. HRCBM ने चेतावनी दी है कि यह महज छिटपुट हिंसा के मामले नहीं हैं बल्कि बांग्लादेश से अल्पसंख्यकों का अस्तित्व मिटाने की गहरी साजिश है. मानवाधिकार संगठन HRCBM का आरोप है कि ऐसी अधिकतर हिंसक घटनाओं के दौरान पुलिस और प्रशासन अक्सर मूकदर्शक बने रहते हैं, जिससे हमलावरों का हौसला और बढ़ जाता है.
एनडीटीवी ने दिखाई बांग्लादेश की सच्चाई
दीपू चंद्र दास की हालिया हत्या के बाद देश-दुनिया में उबाल के बीच एनडीटीवी ने बांग्लादेश पहुंचकर हालात का जायजा लिया. इस दौरान खुद देखा कि किस तरह अल्पसंख्यक हिंदुओं को लेकर बांग्लादेश में माहौल बना हुआ है. शनिवार को जब एनडीटीवी रिपोर्टर दीपू के गांव पहुंचे तो वहां भी गांववालों के चेहरों पर दहशत साफ नजर आई. गांव वालों ने कहा कि दीपू दास की मौत ने दिखा दिया है कि बांग्लादेश में हिंदुओं के लिए कितने बुरे हालात हैं. हम न तो खुलकर जी सकते हैं, न अपनी मर्जी से काम कर सकते हैं वरना जान से हाथ धोना पड़ेगा.












