ड्रैगन की गिरफ्त में पाकिस्‍तान! तकनीक से लेकर सुरक्षा तक... चीन का मोहताज है पड़ोसी मुल्‍क, ये रहें प्रमाण

पाकिस्तान की सुरक्षा, अंतरिक्ष, और रक्षा तकनीक पूर्णतया चीन के अधीन होती जा रही है. चाहे वो पनडुब्बी हो, लड़ाकू विमान हो या अंतरिक्ष उपग्रह, पाकिस्तान की तकनीकी आजादी पूरी तरह खत्‍म हो चुकी है.

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  • पाकिस्तान की हैंगर-क्लास सबमरीन पूरी तरह से चीन में निर्मित है, जो इसकी रक्षा क्षमता पर निर्भरता दर्शाती है.
  • पिछले पांच वर्षों में पाकिस्तान के आयातित हथियारों में से लगभग 81 फीसदी चीन से लिए गए, ये निर्भरता दिखाती है.
  • पाकिस्तान का अंतरिक्ष कार्यक्रम भी चीन पर निर्भर है, रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट चीन की मदद से लॉन्च हुआ है.
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पाकिस्‍तान ने हाल ही में अपनी तीसरी हैंगर-क्‍लास सबमरीन का शुभारंभ किया. लेकिन क्‍या इसे पाक की उपलब्धि कहा जा सकता है? नहीं. कारण कि ये सबमरीन पूरी तरह चीन में बनी है. ये उसी तरह है, जैसे कि पिछले महीने (31 जुलाई) उसने रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट लॉन्‍च हुआ, लेकिन वो भी चीन के ही लॉन्‍च सेंटर से. अपनी रक्षा और अंतरिक्ष क्षमताओं के लिए वो चीन पर निर्भर है. पाकिस्तान के पास सुरक्षा और तकनीकी विकास के इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर के लिए चीन एकमात्र भरोसेमंद सहयोगी है.

पाकिस्‍तान ज्‍यादातर हथियार भी चीन से ही आयात करता है. इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर डेवलपमेंट के चीन से ही मदद मांगता है. तकनीक की बात आती है तो भी चीन की ओर देखने लगता है. और कर्ज में तो डूबा हुआ है ही! लब्‍बोलुआब यही कि पाकिस्‍तान पूरी तरह चीन की गोद में बैठ चुका है और सुरक्षा से लेकर इंफ्रा और तकनीक तक, चीन का मोहताज है.

81 फीसदी हथियार चीन से आयात

पाकिस्तान की सैन्य निर्भरता काफी हद तक चीन पर निर्भर है. पिछले पांच वर्षों में पाकिस्तान के आयातित हथियारों में से करीब 81 फीसदी हथियार चीन से आए हैं, जो कि चीन पर उसकी निर्भरता साबित करता है. इस दौरान चीन ने पाकिस्तान को करीब 8.2 बिलियन डॉलर के हथियार सप्लाई किए हैं. यह पूरी तरह से एक रणनीतिक बदलाव है, क्योंकि पहले पाकिस्तान पश्चिमी देशों से भी हथियार खरीदता था, लेकिन अब वह पूरी तरह से चीन की गोद में बैठ चुका है.

खुफिया जानकारी भी साझा करते हैं दोनों देश

इस साझेदारी में केवल हथियार की बिक्री ही नहीं, बल्कि जटिल तकनीकी सहयोग और संयुक्त विकास परियोजनाएं भी शामिल हैं. चीन ने लड़ाकू जेट, मिसाइल, पनडुब्बी, और रडार सिस्टम में पाकिस्तान को सक्षम बनाया है. चीन-पाकिस्तान के बीच गुप्त खुफिया जानकारी का आदान-प्रदान भी होता है, जिसमें पाकिस्तान के पास मौजूद पश्चिमी तकनीक की जानकारी चीन को मिलती है, जिसे चीन अपने सैन्य विकास में इस्तेमाल करता है.

भारत से संघर्ष में चीनी हथियारों का इस्‍तेमाल

इस तकनीकी निर्भरता का वास्तविक असर मई 2025 के भारत-पाकिस्तान संघर्ष में साफ दिखा. पाकिस्तान ने चीन निर्मित J-10C लड़ाकू विमान और अन्य हथियारों का इस्तेमाल किया, जिसने उसकी रक्षा क्षमताओं को बेहतर बनाया. इस लड़ाई ने चीन के हथियारों की विश्वसनीयता को बढ़ावा दिया है और क्षेत्रीय सुरक्षा के समीकरण को बदल दिया है. पाकिस्तान अब चीन से और उन्नत हथियार खरीदने की तैयारी में भी है.

स्‍पेस प्रोग्राम में भी चीन की छाया

चीन पर पाक की निर्भरता सिर्फ सैन्य क्षेत्र तक सीमित नहीं रही, बल्कि उसके अंतरिक्ष कार्यक्रम में भी चीन की छाया स्पष्ट है. रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट को चीन के मदद से ही लॉन्च किया गया, जो पाकिस्तान की अंतरिक्ष तकनीक पर चीन की पकड़ को दर्शाता है.

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देखा जाए तो पाकिस्तान की सुरक्षा, अंतरिक्ष, और रक्षा तकनीक पूर्णतया चीन के अधीन होती जा रही है. चाहे वो पनडुब्बी हो, लड़ाकू विमान हो या अंतरिक्ष उपग्रह, पाकिस्तान की तकनीकी आजादी पूरी तरह खत्‍म हो चुकी है. चीन का सैन्य और तकनीकी प्रभुत्व , पाकिस्तान के लिए एक अनिवार्य सहारा बन चुका है, और पाकिस्तान चीन के बिना अपनी सुरक्षा का ख्याल भी नहीं रख सकता. पाकिस्तान यकीनन चीन का मोहताज पड़ोसी देश बन गया है.

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