पाकिस्तान और तालिबान कैसे बने एक दूसरे के कट्टर दुश्मन? क्या 2007 का लाल मस्जिद कांड याद है

साल 2021 में जब अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता में आई तो पाक को लगा था कि उनके 20 सालों तक समर्थन के लिए तालिबान उनके अहसान मानेगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं. दोनों के बीच दुश्मनी की पूरी कहानी जानें.

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पाकिस्तान-तालिबान के बीच दुश्मनी की कहानी.
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  • पाकिस्तान और तालिबान 1994 में एक दूसरे के अच्छे दोस्त थे, लेकिन बाद में दोनों के बीच तनाव बढ़ गया.
  • अफगानिस्तान में 2007 में लाल मस्जिद पर पाक सेना के ऑपरेशन से दोनों के बीच तनाव शुरू हुआ था.
  • पाकिस्तान के बम ब्लास्ट में 1100 से ज्यादा लोग मारे गए थे, जिससे दोनों के बीच दुश्मनी बढ़ी गई.
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नई दिल्ली:

जो कभी दोस्त थे, वो अब कट्टर दुश्मन बन चुके हैं. ये कहानी है पाकिस्तान और अफगानिस्तान की. आज के समय में पाकिस्तान-अफगानिस्तान एक दूसरे के कट्टर दुश्मन हैं. जब कि 1994 का वो दौर भी था, जब दोनों दोस्त हुआ करते थे. ये दौर था तालिबान के बनने का. पाक शुरुआत से ही तालिबान का मददगार रहा, ये तालिबान की ताकत बढ़ने की बड़ी वजह भी है. पाक खुफिया संगठन आईएसआईएस ने तालिबान की सैन्य और आर्थिक तौर पर जमकर मदद की थी. पाक ने 1996 में तालिबान सरकार को मान्यता भी दे दी. 1996 से साल 2001 तक तालिबान ने अफगानिस्तान पर राज किया, उस समय वह और पाक अच्छे दोस्त थे.

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पाक-अफगानिस्तान के बीच दुश्मनी की कहानी

रिपोर्ट्स के मुताबिक, पाक-अफगानिस्तान के बीच दुश्मनी की शुरुआत 2007 में हुई थी. वजह रही इस्लामाबाद की लाल मस्जिद. इसी वजह से दोनों के बीच तकरार की शुरुआत हुई. लाल मस्जिद के कुछ इस्लामिक कट्टरपंथियों ने इस्लामाबाद के एक समाज सेंटर पर हमला कर 9 लोगों को किडनैप कर लिया था. 3 जुलाई, 2007 को पाक सेना ने इसका जवाब देते हुए लाल मस्जिद को घेरते हुए 'ऑपरेशन साइलेंस' शुरू किया.

लाल मस्जिद का वो वाक्या...

जिसके बाद लाल मस्जिद के भीतर मौजूद इस्लामिक कट्टरपंथियों ने न सिर्फ फायरिंग की बल्कि कई सरकारी इमारतों को भी फूंक दिया. मस्जिद के भीतर मौजूद कट्टरपंथियों ने पाक सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट कर्नल हारून इस्लाम को गोली मारकर हालात को और बिगाड़ दिया था. इसके बाद दोनों के बीच जमकर गोलीबारी शुरू हो गई. पाक की तरफ से जारी ऑपरेशन में पाक सैनिकों और मस्जिद के भीतर मौजूद कट्टरपंथियों को मिलाकर करीब 100 से ज़्यादा लोग मारे गए थे.

दोनों के बीच ऐसे बढ़ी तकरार

इस ऑपरेशन में पाकिस्तान जीत गया था, लेकिन पाक के इस्लामिक कट्टरपंथी तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के खिलाफ हो गए थे. इसी वजह से टीटीपी बनी, जिसे तालिबान ने भी अपना समर्थन दिया, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान बनने के बाद पाकिस्तान के भीतर 88 बम ब्लास्ट हुए थे, जिनमें 1100 से ज़्यादा लोग मारे गए थे और 3200 से ज्यादा घायल हुए थे. यहीं से दोनों के बीच तकरार बढ़ती चली गई. देखते ही देखते दोनों कट्टर दुश्मन बन बैठे.

इस हमले ने किया आग में घी डालने वाला काम

इस दुश्मनी को और बढ़ाने का काम किया दिसंबर, 2024 में पाक एयरफोर्स के अफगानिस्तान पर एयर स्ट्राइक ने. जिसके बाद से दोनों के बीच तनाव और बढ़ गया. दरअसल इन हवाई हमलों में 46 लोगों मारे गए थे. पाक का दावा था कि उन्होंने टीटीपी के आतंकियों को निशाना बनाया था, लेकिन अफगान तालिबान ने कहा कि ये शरणार्थियों पर हमला है. इस घटना के बाद अफगानिस्तान के मीडिया आउटलेट ने दावा किया था कि तालिबान सेना के पाक में घुसकर 19 सैनिकों के मार गिराया है.

पाक-अफगानिस्तान के बीच 1990 से खराब हैं रिश्ते?

भारतीय विदेश मंत्रालय में सचिव रहे विवेक काटजू ने CNBC से बातचीत में दोनों के बीच झगड़े की वजह बताई थी. उन्होंने बताया था कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच 1990 के दशक से ही रिश्ते खराब हैं, ये तब की बात है, जब तालिबान काबुल की सत्ता में थे, उस दौरान भी दोनों के बीच संबंध जटिल थे. 2001 में अमेरिका के हमले ने जब तालिबान को अफगानिस्तान की सत्ता से बाहर किया तो पाक ने उनको एक साधन के रूप में यूज करना शुरू कर दिया था.

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तालिबान नेताओं को पाक के भीतर शरण दी गई. साल 2021 में जब अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता में आई तो पाक को लगा था कि उनके 20 सालों तक समर्थन के लिए तालिबान उनके अहसान मानेगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं. काटजू ने ये भी दावा किया कि 2025 में पाक और अफगानिस्तान के संबंधों में और मुश्किलें बढ़ेंगी.

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