दोस्त से दुश्मन क्यों हो गए इजरायल और ईरान... वो साल 1979...

ईरान और इज़राइल के बीच दोस्ती से दुश्मनी की कहानी बहुत पुरानी है. पहले ये दोनों देश अच्छे दोस्त थे, लेकिन 1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति के बाद सब कुछ बदल गया. इस क्रांति के बाद ईरान ने इज़राइल के साथ अपने संबंध तोड़ लिए और दोनों देशों के बीच दुश्मनी शुरू हो गई. 

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नई दिल्ली:

Iran and Israel war story: ईरान और इजरायल में पिछले कई सालों से एक दूसरे पर जुबानी हमले हो रहे थे. लेकिन अब ईरान का हमला युद्ध (Iran attack on Israel) की शक्ल में तब्दील हो रहा है. ईरान ने साफ कर दिया है कि उसका यह हमला गाज़ा में इजरायल के लगातार हमले, लेबनान में हिजबुल्लाह (Hezbollah chief killed) के शीर्ष नेताओं की हत्या और ईरान के एक टॉप सैन्य कमांडर की हत्या के विरोध में है. हमले के बाद से तनाव दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है. इजरायल (Israel reaction on Iran missile attack) ने साफ कर दिया है कि वह हमले का बदला लेगा. दुनिया के कई देश प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से युद्ध में शामिल होते जा रहे हैं. कई देश अभी से शांति बनाए रखने की अपील भी करने लगे हैं. ईरान की ओर से बयान में भारत से भी शांति पहल के लिए कदम उठाने का आग्रह किया गया है. फिलहाल शांति की कोई किरण तो दिखाई नहीं दे रही है. लेकिन ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर दोनों देशों में दुश्मनी कहां से शुरू हुई. कई दशक पहले दोनों देश एक दूसरे के सहयोगी देश रहे हैं और यह दोस्ती कैसे दुश्मनी में बदली आज उसकी बात करते हैं.

दोस्ती की कहानी पुरानी है

ईरान और इज़राइल के बीच दोस्ती से दुश्मनी की कहानी बहुत पुरानी है. पहले ये दोनों देश अच्छे दोस्त थे, लेकिन 1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति के बाद सब कुछ बदल गया. इस क्रांति के बाद ईरान ने इज़राइल के साथ अपने संबंध तोड़ लिए और दोनों देशों के बीच दुश्मनी शुरू हो गई. 

इसके साथ ही सबसे पहले यह जानना जरूरी हो जाता है कि ईरान में इस्लामिक क्रांति क्यों और कब हुई. कौन इस क्रांति का प्रमुख नेता था. 

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ईरान की इस्लामिक क्रांति
ईरान की इस्लामिक क्रांति (1979) 20वीं सदी की सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाओं में से एक कही जाती है. इसने ईरान को एक इस्लामी रिपब्लिक देश में तब्दील कर दिया था.

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ईरान दुनिया का पहला इस्लामिक रिपब्लिक देश बना था. इस क्रांति ने शाह मोहम्मद रजा पहलवी के नेतृत्व वाली पश्चिम समर्थित राजशाही को समाप्त कर दिया

अयातुल्लाह रूहोल्लाह खुमैनी के नेतृत्व में एक इस्लामी शासन स्थापित किया.

खोमेनई को देश निकाला

इससे पहले शाह ने खोमेनई को ईरान से देश निकाला दिया था और इस दौरान, वह तुर्की, इराक और फ्रांस में रहा. देश से बाहर जाने के बाद भी खोमेनई ने अपना काम नहीं छोड़ा और बाहर से लोगों को संबोधित करता रहा और सत्ता में दखल देता रहा. जब 1979 में जनता की नाराजगी जब चरम पर पहुंची और शाह को देश छोड़कर जाना पड़ा तब खोमेनई की देश वापसी हुई. इसके बाद हुए चुनाव में खोमेनई की शानदार जीत हुई और उसे जीवनपर्यंत तक वहां का धार्मिक नेता चुना लिया गया. 

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क्रांति के कारण
जिस क्रांति की वजह से ईरान में राजशाही खत्म हुई उसका प्रमुख कारण जो बताया जाता है उसमें शाह की निरंकुशता भी एक कारण थी. शाह की कथित तानाशाही नीतियां, भ्रष्टाचार, और पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका, के साथ नजदीकी संबंधों ने ईरानी जनता के बीच असंतोष था. ईरान में शिया मौलवियों का दबदबा था और जनमानस में उनकी काफी पकड़ थी. वहीं, ईरान के शाह की पश्चिमी देशों से नजदीकी इन्हें पसंद नहीं थी.

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शाह का पश्चिमी देशों से लगाव

शाह की पश्चिमीकरण की नीतियों ने शिया मौलवियों और धार्मिक नेताओं को नाराज कर रखा था. ईरान के मौलवी और धार्मिक नेताओं की जमात की मांग थी कि इस्लाम के आधार पर शासन चलाया जाए.

उधर, शाह अपने हिसाब से शासन चला रहे थे और उनका झुकाव पश्चिमी देशों के प्रति ज्यादा था. 

ईरान के समाज में असंतोष का एक कारण बढ़ती हुई असमानता भी बताई गई. कहा जाता है कि शाह के शासन में आर्थिक असमानता बढ़ती गई थी. गरीब और मध्यम वर्ग के लोग गरीबी और बेरोजगारी से जूझ रहे थे.

क्रांति की शुरुआत
बात अगस्त 1978 की है जब सिनेमा हॉल रेक्स में आग लगने से 400 लोगों की मौत हो गई. विपक्ष द्वारा दावा किया गया कि यह शाह के सेना सावाक की करतूत थी. इसने पूरे ईरान में एक लोकप्रिय क्रांतिकारी आंदोलन के लिए भूमि तैयार कर दी. इसके बाद बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हुए जिसने एक जनआंदोलन का रूप ले लिया. इसमें विभिन्न वर्गों के लोग शामिल थे, जिनमें छात्र, मजदूर, धार्मिक नेता, और बुद्धिजीवी आदि सभी शामिल हुए.

ईरान छोड़कर भागे शाह

यह जनआंदोलन इस कदर बढ़ा की शाह को अपनी सुरक्षा तक को लेकर चिंता होने लगी और जनवरी 1979 में बढ़ते विरोध के दबाव में शाह ने ईरान छोड़कर चले गए. जानकारी के लिए बता दें कि 1953 में द्वितीय विश्व के बाद रूस और ब्रिटेन की मदद से यहां पर संसद का शासन समाप्त कर शाह का शासन स्थापित किया गया था. इसके बाद से संसद (मजलिस) के समर्थकों और शाह के समर्थकों में विरोध पनपता रहा. 

खोमेनई का ईरान में जोरदार स्वागत

फिर जब शाह देश छोड़कर गए, इसके बाद निर्वासन में रह रहे अयातुल्लाह खोमेनई  फरवरी 1979 में एक हीरो की भांति वापस ईरान आए और लोगों ने उनका जोरदार स्वागत किया.
    
क्रांति का परिणाम क्या हुआ
अयातुल्लाह खोमेनई ने ईरा में इस्लामिक शासन की स्थापना की. ईरान में इस्लामी कानूनों (शरिया) पर आधारित शासन प्रणाली अपनाई गई. कांति के बाद ईरान ने अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों से संबंध सीमित किए और अमेरिका के खिलाफ एक मजबूत विरोधी रुख अपनाया की शुरुआत की.

कहां बदली इजरायल के प्रति नीति

इसी के साथ जो ईरान के रुख में सबसे बड़ा बदलाव हुआ वह था इजरायल को लेकर नई नीति को अपनाया जाना. इनमें से एक था ईरान ने इजरायल के अस्तित्व को ही नकार की नीति को अपनाया. ईरान के नेताओं ने इजरायल को इस्लाम और ईरान के लिए खतरा बताया और इसके खिलाफ लड़ने का ऐलान किया.

इसके साथ ही ईरान ने फिलिस्तीनी लड़ाकों का समर्थन करना शुरू कर दिया, जो इजरायल के खिलाफ लड़ रहे थे. इसके बाद इजरायल के खिलाफ लड़ने वाले अन्य मुल्कों के संगठनों को भी ईरान ने अपना समर्थन दिया. 

ईरान का परमाणु कार्यक्रम

इसके साथ ही ईरान का परमाणु कार्यक्रम को लेकर आगे बढ़ना इजरायल और अमेरिका दोनों को ही पसंद नहीं था. इस परमाणु कार्यक्रम के चलते पिछले कुछ दशकों से ईरान के विरोध में अंतरराष्ट्रीय मंच से आवाज उठाई गई. तब से ईरान और इजरायल में दुश्मनी का एक दौर शुरू हुआ. इस दुश्मनी के कारण कई बार दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा है, और कई बार युद्ध की स्थिति भी पैदा हो गई है. लेकिन अभी तक दोनों देशों के बीच कोई बड़ा युद्ध नहीं हुआ था. अब दोनों देशों का एक दूसरे पर हमलावर हैं.

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