नेपाल Gen Z प्रोटेस्‍ट: क्‍या किसी अदृश्‍य ताकत ने 'हाईजैक' कर लिया आंदोलन? कब बुझेगी यह आग 

प्रदर्शन के दूसरे दिन पूर्व मंत्रियों को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा गया, कई बिल्डिंग्‍स में आग लगाई और मीडिया पर भी हमला हुआ.

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  • नेपाल में सोशल मीडिया प्रतिबंध और भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुआ जेन जी प्रदर्शन हिंसा में तब्दील हो गया है.
  • सरकार ने प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को अनरजिस्टर्ड कर बैन किया था, जिससे युवाओं में असंतोष फैला.
  • प्रदर्शनकारियों ने संसद, सुप्रीम कोर्ट और सिंह दरबार को आग के हवाले कर दिया और हथियार लहराए.
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काठ:

पूर्व प्रधानमंत्री की पत्‍नी को जलाना, विदेश मंत्री के साथ बदसलूकी करना और देश के अहम संवैधानिक संस्‍थानों जैसे सुप्रीम कोर्ट और संसद भवन को आग के हवाले कर देना, ये कुछ तस्‍वीरें थीं जो मंगलवार को नेपाल से आईं. 8 सितंबर 2025 को नेपाल में जेन जी प्रदर्शन की शुरुआत हुई. यह प्रदर्शन सोशल मीडिया पर लगे प्रतिबंध और बड़े पैमाने सिस्‍टम में मौजूद भ्रष्‍टाचार के खिलाफ  आम इंसान को इंसाफ दिलाने की आवाज के तौर पर शुरू हुए थे. लेकिन अब पूरा देश हिंसा की आग में जल रहा है. ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि कहीं प्रदर्शनकारी अपने मकसद से भटक तो नहीं गए और कहीं किसी और ताकत ने तो इसे प्रदर्शन को 'हाइजैक' नहीं कर लिया. 

सरकार का फैसला नामंजूर 

सरकार ने 28 अगस्‍त को 26 प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे फेसबुक, व्‍हाट्सएस, इंस्‍टाग्राम, यू-ट्यूब और एक्‍स आदि को ‘अनरजिस्टर्ड प्लेटफॉर्म' कहते हुए बैन कर दिया. सरकार का कहना था कि इस बैन का मकसद सरकार की ओर से गलत सूचनाओं और साइबर क्राइम से निपटना है. लेकिन उसके इस कदम ने युवाओं में गहरा असंतोष पैदा कर दिया. युवाओं को सरकार का फैसला हरगिज मंजूर नहीं था और सोमवार को वो सड़कों पर उतर आए. 

हाथों में लहराती राइफल 

दूसरे ही दिन यानी 9 सितंबर मंगलवार को हालात इतने बिगड़े कि आम नेपाली क्‍या किसी ने भी शायद इसकी कल्‍पना नहीं की होगी. क्‍या संसद भवन और क्‍या सुप्रीम कोर्ट, सबकुछ आग के हवाले कर दिया गया था. सिंह दरबार जहां सरकार के कई ऑफिस हैं, वहां पर और मॉल्स में लूटपाट शुरू हो गई. सिंह दरबार पर प्रदर्शनकारियों का कब्‍जा हो गया और इसके बाहर प्रदर्शनकारियों की भीड़ को हथियार लहराते हुए देखा जा सकता है. हाथों में राइफल लहराते युवाओं की भीड़ ने यह साफ कर दिया था कि आंदोलन अब उनकी जायज मांगों का नहीं, बल्कि हिंसक ताकतों का मंच बन चुका है. 

कहीं कोई खेल तो नहीं हो रहा 

नेपाल में हिंसा जिस तेजी से बढ़ रही है, उसने पूरे देश को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है. यह अब सिर्फ सोशल मीडिया बैन का मुद्दा नहीं रह गया. प्रदर्शनकारियों का बर्ताव अब जिम्मेदार नागरिकों जैसा नहीं दिखता, बल्कि ऐसा लगता है जैसे देश को किसी अराजकता की ओर धकेल रहे हैं. सबसे अहम सवाल यह है कि यह आंदोलन कहां जाकर रुकेगा? कानून और व्यवस्था किसके हाथ में है? क्या इसके पीछे कोई संगठित अदृश्य ताकत काम कर रही है, जो नेपाल की अस्थिरता से फायदा उठाना चाहती है? और क्या यह आंदोलन सिर्फ युवाओं की नाराजगी का नतीजा है या फिर इसमें बाहरी राजनीतिक खेल भी शामिल हैं?

क्‍या सुनेंगे सेना की अपील 

प्रदर्शन के दूसरे दिन पूर्व मंत्रियों को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा गया, कई बिल्डिंग्‍स में आग लगाई और मीडिया पर भी हमला हुआ. शाम होते-होते जेन-जी के नाम पर कुछ असामाजिक तत्वों ने  प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर में भी तोड़फोड़ शुरू कर दी. नेपाल में फिलहाल सेना ने सुरक्षा व्‍यवस्‍था संभाल ली. सेना ने स्‍पष्‍ट कर दिया है कि प्रदर्शन के नाम पर सार्वजनिक संपत्तियों को जलाने और लूटपाट की घटनाओं को रोकने के लिए उसने मोर्चा संभाला है.

सेना ने प्रदर्शनकारियों से शांति की अपील की है. लेकिन सवाल यही है कि आखिर प्रदर्शनकारी किसके इशारें पर ये सबकुछ कर रहे हैं? वो इस बात को क्‍यों भूल चुके हैं कि जिस देश में वो इतना उत्‍पात मचा रहे हैं वो तो उनका अपना ही है. भले ही सरकार किसी की भी हो लेकिन देश तो उनका ही रहेगा. फिर ये युवा इस बात को समझने के बजाय और क्‍यों भड़क रहे हैं.

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तस्‍वीर डराने वाली 

आने वाले समय ही बताएगा कि नेपाल में क्‍या होने वाला है लेकिन निश्चित तौर पर यह भारत के लिए चिंता की बात है. पड़ोसी देशों पर नजर डालें तो तस्वीर और भी डरावनी लगती है, पाकिस्तान, श्रीलंका, म्यांमार, बांग्लादेश और अब नेपाल, लगातार अस्थिर होते हालात भारत के लिए भी चिंता का विषय हैं.  ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत इस नए संकट पर कैसी प्रतिक्रिया देता है. 

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