इस देश में 30 साल तक जबरन नसबंदी, अब प्रधानमंत्री जनता से जाकर मांगेंगी माफी

1960 के दशक के अंत से 1992 तक, इस देश के अधिकारियों ने लगभग 4,500 इनुइट महिलाओं को गर्भनिरोधक कॉयल (कॉपर टी) पहनने को मजबूर किया, वो भी उनकी सहमति के बिना. इनमें से लगभग आधी महिला बच्चे पैदा करने की उम्र की थीं.

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डेनमार्क की प्रधान मंत्री मेटे फ्रेडरिकसन की फाइल फोटो
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  • डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिकसन ग्रीनलैंड जाकर जबरन नसबंदी पीड़ित महिलाओं से माफी मांगेंगी
  • 1960 से 1992 तक डेनमार्क ने लगभग चार हजार पांच सौ इनुइट महिलाओं को बिना सहमति गर्भनिरोधक लगाया
  • नसबंदी के कारण कई महिलाओं को बांझपन और शारीरिक मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ा
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दुनिया में आबादी को कंट्रोल करने का सबसे सफल तरीका नसबंदी को माना जाता है. लेकिन जब यह काम सरकार जबरदस्ती करने लगे तो वह मानवाधिकार पर बड़ा हमला हमला होता है. भारत के लोगों को भी इससे गुजरना पड़ा था. अब दुनिया के एक देश की सरकार ने बड़ा कदम उठाया है, उस देश में 3 दशक से अधिक समय तक एक बड़े क्षेत्र में महिलाओं को जबरदस्ती कॉपर टी लगाया गया, वो भी जब उनकी उम्र मां बनने की थी तब. अब वहां की मौजूदा प्रधानमंत्री खुद उस क्षेत्र में जाकर लोगों से माफी मांगने वाली हैं. बात हो रही है यूरोपीय देश डेनमार्क की. 

डेनमार्क की प्रधान मंत्री मेटे फ्रेडरिकसन बुधवार, 24 सितंबर को डेनमार्क के स्वायत्त क्षेत्र ग्रीनलैंड का दौरा करेंगी और कोपेनहेगन में तीन दशकों से अधिक समय से चलाए जा रहे जबरन गर्भनिरोधक कार्यक्रम (नसबंदी) के पीड़ितों से व्यक्तिगत रूप से माफी मांगेंगी. न्यूज एजेंसी एएफपी की रिपोर्ट के अनुसार डेनिश संसद में ग्रीनलैंड का प्रतिनिधित्व करने वाली सांसद आजा चेमनिट्ज बताया, "यह उन महिलाओं के लिए, और जाहिर तौर पर, बल्कि पूरे समाज के लिए भी एक बहुत ही महत्वपूर्ण मौका होगा."

उन्होंने कहा, "अगस्त के अंत में पहली बार माफी की घोषणा के बाद यह पश्चाताप की प्रक्रिया में दूसरा कदम है."

आखिर डेनमार्क में हुआ क्या था?

एएफपी की रिपोर्ट के अनुसार 1960 के दशक के अंत से 1992 तक, डेनमार्क के अधिकारियों ने लगभग 4,500 इनुइट महिलाओं को गर्भनिरोधक कॉयल (कॉपर टी की तरह) पहनने को मजबूर किया, वो भी उनकी सहमति के बिना. इनमें से लगभग आधी महिला बच्चे पैदा करने की उम्र की थीं. इसका उद्देश्य इनुइट समुदाय में जन्म दर को कम करना था.

इस वजह से कई महिलाएं बांझ रह गईं और उनमें से लगभग सभी शारीरिक या मनोवैज्ञानिक समस्याओं से पीड़ित हो गईं. यह कालिख ग्रीनलैंड के साथ डेनमार्क के संबंधों को खराब करने वाले कई संवेदनशील मुद्दों में से एक है. ऐसे दूसरे मुद्दों में जबरन गोद लेने के लिए मजबूर करना और ग्रीनलैंड के इनुइट बच्चों को उनके परिवारों से जबरन निकालना शामिल है.

डेनमार्क पिछले साल से अपने इस रणनीतिक रूप से अहम, संसाधन-संपन्न आर्कटिक क्षेत्र के साथ तनाव को कम करने के लिए काम कर रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि वह सुरक्षा कारणों से ग्रीनलैंड को अपने कब्जे में लेना चाहते हैं.

इसी साल अगस्त के अंत में, प्रधान मंत्री मेटे फ्रेडरिकसेन ने एक लिखित बयान में, जबरन गर्भनिरोधक अभियान के पीड़ितों से माफी मांगी थी, अब वो मिलकर यह काम करेंगी. इससे पहले सोमवार को, फ्रेडरिकसेन ने पीड़ितों के साथ-साथ उन अन्य ग्रीनलैंडवासियों को मुआवजा देने के लिए एक फंड बनाने की भी घोषणा की, जिन्हें अपनी इनुइट विरासत के कारण भेदभाव का सामना करना पड़ा था.

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