मेरे बच्चों से सब छीन लिया… जिंदा रहने की जंग लड़ती गाजा की एक बेवा की कहानी

Israel Gaza War: गाजा में जंग ने वहां की महिलाओं पर सबसे अधिक कहर ढाहा है. वो बेवा हो रही हैं, अपने मसूम बच्चों को खो रही हैं, नई नवेली माओं के दूध सूख चुके हैं क्योंकि वो खुद भूखमरी की शिकार हैं.

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गाजा की महिलाएं एक अलग जंग लड़ रहीं
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  • गाजा में इजरायल और हमास के युद्ध को दो साल पूरे होने वाले हैं जिसमें 66 हजार से अधिक लोग मारे गए हैं
  • गाजा की महिलाओं को इस युद्ध में सबसे अधिक नुकसान हुआ है, हजारों महिलाएं विधवा हो चुकी हैं, बच्चे खो चुकी हैं
  • लैमिस डिब ने अपने पति और पिता को खो दिया है और अपने दो बच्चों के साथ बार-बार विस्थापित हो चुकी हैं
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हमास के शुरुआती हमले के बाद गाजा में इजरायल के जंग को छेड़े ठीक 2 साल होने वाले हैं. इस जंग ने गाजा को पंगु बना दिया है, 66 हजार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, वहां के लोग अकाल के गर्त में गिर चुके हैं. इस जंग ने गाजा की महिलाओं पर सबसे अधिक कहर ढाहा है. वो बेवा हो रही हैं, अपने मसूम बच्चों को खो रही हैं, नई नवेली माओं के दूध सूख चुके हैं क्योंकि वो खुद भूखमरी की शिकार हैं. एक जंग के बीच गाजा की महिलाएं किस तरह जिंदा रहने की जंग लड़ रही हैं, इसकी कहानियां सामने आ रही हैं.

“इस जंग के दर्द को बयां नही कर सकतीं”

एएफपी की रिपोर्ट के अनुसार 31 साल की लैमिस डिब ने अपने दो बच्चों को छोड़कर इस जंग में सबकुछ खो दिया है. कई विस्थापनों और पति- पिता की मृत्यु ने उनके जीवन को अस्तित्व के लिए एक निरंतर लड़ाई में बदल दिया है. लैमिस डिब ने फिलिस्तीनी क्षेत्र को तबाह करने वाले इस युद्ध के बारे में कहा, "इस जंग के दर्द को शब्दों में बयां नहीं कर सकते हैं." उन्होंने याद करते हुए कहा, "शुक्रवार, 6 अक्टूबर, 2023 यानी युद्ध से पहले का आखिरी दिन, एक खूबसूरत दिन था."

उनकी सबसे बड़ी बेटी, सुवर उस समय पांच साल की थी और उसने अभी-अभी किंडरगार्टन शुरू किया था. उनका बेटा अमीन उस समय तीन साल का था. एएफपी के अनुसार वैसे तो डिब ने एक सामाजिक कार्यकर्ता बनने के लिए पढ़ाई की थी, लेकिन गाजा की युद्ध से पहले की खराब अर्थव्यवस्था में उन्हें नौकरी नहीं मिली. इसके बावजूद उन्होंने अपने अपने एकाउंटेंट पति के साथ "एक खुशहाल परिवार" बनाया था जिसने यह सुनिश्चित किया कि "कभी किसी चीज की कमी न हो".

इजरायल और हमास की लड़ाई के कारण वह और उसके बच्चे 11 बार विस्थापित हो चुके हैं. उन्होंने कहा, "हवाई हमलों के बीच हमारा भागना मौत के खिलाफ एक दौड़ है. ऐसा लग रहा था जैसे मैं ऑटोपायलट पर थी, मैंने अपने बच्चों को उठाया, उन्हें अपने सामने रखा और बिना पीछे देखे भाग गई, बिना यह जाने कि हम कहां जा रहे हैं."

अगस्त 2024 में, उनका परिवार नुसीरात के एक कैंप में रह रहा था लेकिन वहां डिब की जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई. उन्होंने एएफपी को बताया, "शुक्रवार को शाम 6:00 बजे, मेरे पति और मेरे पिता परिवार के पांच लड़कों के साथ छत पर थे. तभी हमने एक मिसाइल की आवाज सुनी और धुआं उठते देखा… मैं छत की ओर भागी, और वो मंजर दिल दहलाने वाला था; वे सभी मर चुके थे.”

उनकी बेटी सुवार और बेटा अमीन घुटनों के बल बैठकर पढ़ाई कर रहे हैं. उन्होंने कहा, "हमारे बच्चों से शिक्षा, भोजन और सामान्य जीवन छीन लिया गया." कभी-कभी वे डिब के फोन पर युद्ध के दौरान मारे गए अपने पिता और रिश्तेदारों की तस्वीरें देखते हैं.

इन सबके बावजूद डिब की आंखों में एक उम्मीद आज भी जिंदा है. वो कहती हैं, "हम अपने घर लौट आएंगे. हम फिर से उसे खड़ा करेंगे. लेकिन हम बस थोड़ी सी शांति चाहते हैं."

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