फ्रांस में त्रिशंकु संसद से राजनीतिक संकट गहराया, सवाल- क्या इस्तीफा देंगे राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों?

फ्रांस की संसद का कार्यकाल 2027 में खत्म होना था, लेकिन राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों का समय से पहले संसद भंग कर चुनाव कराने का फैसला उलटा पड़ गया.

विज्ञापन
Read Time: 4 mins
नई दिल्ली:

फ्रांस में हुए संसदीय चुनाव में भारी उलटफेर देखने को मिला है. राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की पार्टी को बड़ा झटका लगा है, वो नतीजों में तीसरे स्थान पर रही है. वहीं वामपंथी गठबंधन न्यू पॉपुलर फ्रंट (एनएफपी) ने सबसे अधिक सीटें हासिल की है. साथ ही मरीन ले पेन की दक्षिणपंथी पार्टी दूसरे स्थान पर रही है. हालांकि किसी भी पार्टी के स्पष्ट बहुमत हासिल नहीं कर पाने के कारण देश में राजनीतिक संकट गहराने के साथ ही त्रिशंकु संसद की आशंका बढ़ गई है.

नतीजों के बाद राजनीतिक अनिश्चितता से उठापटक भी शुरू हो गई है. प्रधानमंत्री गैब्रियल एत्तल ने अपने पद से इस्तीफे की घोषणा कर दी है. अब नजर इस बात पर है कि राष्ट्रपति मैक्रां का अगला कदम क्या होता है. मैक्रां 2027 तक राष्ट्रपति बने रह सकते हैं, लेकिन क्या वो इस्तीफ़ा देंगे, इसको लेकर भी सवाल है.

दक्षिणपंथी पार्टियों को चुनाव में बड़ी जीत की उम्मीद थी, लेकिन जनता ने किसी को भी स्पष्ट बहुमत नहीं दिया है. चुनाव परिणाम की बात करें तो लेफ्ट अलायंस एनएफपी को 182, मैक्रों के गठबंधन एनसेंबल को 168 और आरएन व सहयोगियों को 143 सीटों पर जीत मिली है.

चुनाव नतीजों के बाद फ्रांस में हिंसा

फ्रांस में चुनाव नतीजों के बाद हिंसा भी देखने को मिली. राजधानी पेरिस में जमकर बवाल हुआ और पुलिस-प्रदर्शनकारियों के बीच तीखी झड़प हुई. नकाबपोश प्रदर्शनकारियों ने हिंसा की वारदात को अंजाम दिया. सड़कों पर टायर जलाने की भी घटना हुई. पुलिस ने इसे रोकने के लिए आंसू गैस का भी इस्तेमाल किया. हिंसा प्रभावित इलाकों में 30 हजार दंगा निरोधी पुलिस बलों की तैनाती की गई है.

नतीजों से सबसे बड़ा झटका राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के लगा है. फ्रांस यूरो क्षेत्र की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और कुछ हफ्ते बाद ही पेरिस में ओलंपिक खेलों की शुरुआत भी होने वाली है. ऐसे में त्रिशंकु चुनावी नतीजे ने राजनीतिक अस्थिरता पैदा कर दी है. इससे यूरोपीय संघ में भी फ्रांस की स्थिति कमजोर हो जाएगी और घरेलू एजेंडे को आगे बढ़ाने में दिक्कत आएगी.

फ्रांस में गठबंधन सरकार का कोई इतिहास नहीं रहा है. इधर लेफ्ट पार्टियों में भी मतभेद देखने को मिल रहा है. ऐसे में सवाल ये है कि क्या मैक्रों की पार्टी लेफ्ट के साथ मिलकर सरकार बना सकती है? इस बात की भी चर्चा जोरों पर है.

फ्रांस की नेशनल असेंबली में 577 सीटें

577 सीटों वाली नेशनल असेंबली में कोई भी पार्टी बहुमत के लिए जरूरी 289 सीटों के आंकड़े से दूर रह गई. इस चुनाव में लेफ्ट के प्रदर्शन से ये अनुमान सही भी साबित हो गया. ‘नेशनल रैली' का नस्लवाद और यहूदी-विरोधी भावना से पुराना संबंध है. साथ ही इसे फ्रांस के मुस्लिम समुदाय का विरोधी भी माना जाता है. फ्रांस के लोग महंगाई और आर्थिक समस्याओं को लेकर काफी परेशान हैं.

चुनाव परिणाम में ये साफ दिख रहा है कि जनता राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के नेतृत्व को लेकर खुश नहीं है. फ्रांस में पहले दौर के संसदीय चुनाव में रिकॉर्डतोड़ वोटिंग हुई. इस बार यहां 60 फ़ीसदी से अधिक मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया, जबकि दो साल पहले हुए चुनाव में स्थिति बिल्कुल अलग थी, तब महज़ 40 फ़ीसदी वोटिंग हुई थी.

अबकी बार हुई अधिक वोटिंग का मतलब ये निकाला जा रहा है कि लोगों ने बदलाव के लिए वोट किया. धुर-दक्षिणपंथियों को इस बात की पूरी उम्मीद है कि वे मध्यमार्गी पार्टियों की गठबंधन सरकार को सत्ता से बेदखल कर देंगे. लेकिन ठीक इसके उलट हुआ.

Advertisement

2027 में खत्म होना था फ्रांस की संसद का कार्यकाल

जून में हुए यूरोपीय संसद के चुनाव में फ्रांस में मध्यमार्गियों को बड़ी हार का सामना करना पड़ा था, इसमें दक्षिणपंथी पार्टियों को भारी जीत मिली थी. नौ जून को नतीजे आए और उसी दिन राष्ट्रपति मैक्रों ने संसदीय चुनाव की घोषणा कर दी. उन पर इस बात का नैतिक दबाव था. फ्रांस की संसद का कार्यकाल 2027 में खत्म होना था, लेकिन समय से पहले संसद भंग कर चुनाव कराने का फैसला उलटा पड़ गया. वैसे दो साल पहले हुए संसदीय चुनाव में भी मैक्रों पूर्ण बहुमत हासिल नहीं कर पाए थे.

फ्रांस के मतदाताओं ने संसदीय चुनाव के लिए 577 सीटों पर दो चरणों में 30 जून और 7 जुलाई को मतदान किया था.

Advertisement
Featured Video Of The Day
Child Marriage Free India | बाल विवाह समाप्त करने के लिए सरकार की पहल: एक विस्तृत चर्चा