मोसाद के वो पांच खुफिया ऑपरेशन, जिनके बारे में जानकर दुनिया ने दांतों तले दबा ली अंगुली

हमास के पॉलिटिकल ब्यूरो के प्रमुख इस्माइल हानिया ईरान की राजधानी तेहरान में हुई हत्या से दुनिया हैरान है. हमास ने इसे इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद का काम बताया है. आइए जानते हैं मोसाद के कुछ ऐसे ही अभियानों के बारे में.

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नई दिल्ली:

हमास के पॉलिटिकल ब्यूरो के प्रमुख इस्माइल हानिया ईरान की राजधानी तेहरान में हुए एक हमले में मारे गए.इस हमले के लिए हमास ने इजरायल को जिम्मेदार ठहराया है.इससे पहले नवंबर 2020 में ईरान के परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फखरीजादेह की ईरान में ही हत्या कर दी गई थी.उस समय ईरान के खुफिया विभाग के मंत्री महमूद अलावी ने कहा था कि जिस व्यक्ति ने इस हत्याकांड को अंजाम दिया है, वह ईरान की सेना से जुड़ा था.फखरीजादेह पर आर्टिशिफियल इंटेलिजेंस से लैस रिमोट मशीनगन से हमला किया गया था. इस हमले के पीछे इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद को जिम्मेदार बताया गया था, जो इस तरह के हमले करने में सिद्धहस्त है. आइए हम आपको बताते हैं मोसाद के ऐसे ही पांच खुफिया ऑपरेशन के बारे में, जिसे उसने दूसरे देशों में अंजाम दिया. 

खिलाड़ियों की हत्या का बदला

इस्माइल हानिया की हत्या ऐसे समय हुई है, जब फ्रांस की राजधानी पेरिस में ओलंपिक खेलों का आयोजन किया जा रहा है. ऐसे में जर्मनी के म्यूनिख में 1972 में आयोजित ओलंपिक की याद आती है. म्यूनिख ओलंपिक के दौरान पांच सितंबर को 11 इजरायली खिलाड़ियों की हत्‍या कर दी गई थी.इसका आरोप फलस्‍तीनी आतंकियों पर लगा था.इस वारदात को अंजाम देने वाले लोग खिलाड़ियों का ट्रैक शूट पहनकर ओलंपिक गांव में दाखिल हुए थे. ये लोग फलस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन (पीएलओ) से जुड़े थे. इस अभियान को नाम दिया गया था, ऑपरेशन ब्लैक सेप्‍टेंबर. हवाई अड्डे पर कार्रवाई के दौरान ये सभी आतंकी मारे गए थे.

खिलाड़ियों की हत्या करने वाले आतंकियों के मारे जाने के बाद भी इजरायल शांत नहीं बैठा.मोसाद ने उन सभी लोगों की हत्या की योजना बनाई जो किसी भी तरह से 'ऑपरेशन ब्लैक सेप्‍टेंबर' से जुड़े थे.इस मिशन को नाम दिया गया, 'रैथ ऑफ गॉड' यानी ईश्वर का कहर. मोसाद के एजेंटों ने 'ऑपरेशन ब्लैक सेप्‍टेंबर' से जुड़े लोगों को दुनिया के कई देशों में घूम-घूम कर मारा. इसके लिए वो कई सालों तक अपने परिवार से दूर रहे.  

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म्यूनिख ओलंपिक में इजरायली खिलाड़ियों की हत्या करने वाला एक आतंकी.

मोसाद ने सबसे आखिर में 'ऑपरेशन ब्लैक सेप्‍टेंबर' के मास्‍टरमाइंड अली हसन सलामेह की हत्या की. मोसाद के एजेंटों ने पूरी दुनिया में उसकी तलाश की थी. मोसाद ने उसे नार्वे, स्विट्जरलैंड, स्पेन में मारने की कोशिश की. लेकिन उसे सफलता नहीं मिली. अंतत:22 जनवरी 1979 को लेबनान की राजधानी बेरूत में एक कार बम धमाका कर सलामेह को मार गिराया. 

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इजरायल ने चुराया ईराक का मिग-21

सोवियत संघ ने 60 के दशक में अपने लड़ाकू विमान मिग-19 को अपग्रेड कर मिग-21 बनाया था.उसने ये जहाज मिस्र, लेबनान और ईराक को भी बेचे थे. इसकी बदौलत ये देश इजरायल को धमकी देते रहते थे. यह देखकर इजरायल ने मिग-21 को चुराने का फैसला किया. मोसाद ने इसके लिए जिस अभियान को चलाया उसे 'ऑपरेशन डायमंड' नाम दिया गया. 

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मीर एमिट 25 मार्च 1963 को मोसाद के प्रमुख बने. उन्होंने अपने अधिकारियों से पूछा कि मोसाद इजरायल के लिए ऐसा क्या करे जो आजतक की सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जाए. इसके जवाब में कहा गया कि अगर वो सोवियत रूस का मिग-21 इजरायल ला पाएं तो फायदा होगा. इसके बाद मीर ने मिग-21 को इजरायल लाने के लिए 'ऑपरेशन डायमंड' शुरू किया. लेकिन पहली दो कोशिशें फेल हो गईं. पहली कोशिश मिस्र में की गई थी. इसके बाद इसके लिए ईराक को चुना गया. दूसरी कोशिश में दो ईराकी पायलट वादा करके भी पलट गए. इसके बाद एक लेडी जासूस को इस काम में लगाया गया. 

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उसने मुनीर रेड्फा नाम के एक ईराकी पायलट को इसके लिए तैयार किया. प्रमोशन न मिल पाने से परेशान मुनीर को 10 लाख डॉलर की मदद, सरकारी नौकरी और परिवार समेत इजरायल में पनाह का वादा किया गया था. इस ऑफर को उसने स्वीकार कर लिया. वह 16 अगस्त 1966 को ईराक का मिग-21 लेकर इजरायल पहुंचा. 

लेफ्टिनेंट कर्नल एडोल्फ आइशमन की गिरफ्तारी

जर्मनी की सेना के लेफ्टिनेंट कर्नल एडोल्फ आइशमन हिटलर की बदनाम खुफिया पुलिस 'गेस्टापो' में यहूदी विभाग के प्रमुख थे. यहूदियों का जनसंहार करने वाली 'फाइनल सॉल्यूशन'योजना आइशमन के दिमाग की उपज थी.यहूदियों की हत्या को 'होलोकॉस्ट' के नाम से जाना जाता है.दूसरे विश्व युद्ध में जर्मनी को मिली हार के बाद आइशमन को तीन बार पकड़ा गया, लेकिन वो हर बार फरार होने में सफल रहे. 

पुलिस की गिरफ्त से निकलकर वो अर्जेंटीना में पहचान छिपा कर रह रहे थे. इसकी जानकारी इजरायली खुफिया एजेंसी को मिली थी.अपने तरीके से जांच कर उसने इसकी तस्दीक की. मोसाद प्रमुख ने रफी ऐतान को उस अभियान का नेतृत्व सौंपा, जिसमें आइशमन को जिंदा इजरायल लाना था.इसके लिए मोसाद की टीम ने ब्यूनस आयर्स में एक घर किराए पर लिया. 

20 मई 1960 को अर्जेंटीना अपनी स्वतंत्रता की 150वीं वर्षगांठ मनाने वाला था.इसमें इजरायल ने अपने शिक्षा मंत्री के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल अर्जेंटीना भेजा. इसके लिए इजरायली एयरलाइंस ने एक खास विमान दिया. मोसाद की योजना थी कि शिक्षा मंत्री को बताए बिना आइशमन को अगवा कर इसी विमान से इजरायल लाया जाएगा.

मोसाद के एजेंटों ने पता लगाया कि आइशमन हर शाम पौने आठ बजे एक बस से घर लौटते थे और थोड़ी दूर पैदल चलते थे. इसी दौरान उन्हें अगवा करने की योजना बनाई गई.बस से उतरते ही आइशमन को पकड़ लिया गया.उन्हें इजरायली एयरलाइन के कर्मचारियों वाली ड्रेस पहनाई गई.उनकी जेब में एक नकली आई कार्ड रखा गया. इसके अगले दिन उस विमान इजरायल में लैंड किया. वहां उन पर मुकदमे चलाए गए. सालों तक चली कार्यवाही के बाद आइशमन को 15 मामलों में दोषी ठहराया गया. उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी.उन्हें 31 मई , 1962 को फांसी दे दी गई. यह इजरायल में पहली और अंतिम फांसी थी.

एली कोहेन की कहानी

नेटफ्लिक्स पर एक वेब सीरीज आई थी, 'द स्पाई'. यह एली कोहेन नाम के इजरायली जासूस के जीवन पर आधारित थी. कोहेने एक जासूस के रूप में पांच साल तक सीरिया में रहा.पकड़े जाने के बाद दमिश्क में उसे सरेआम फांसी पर लटका दिया गया. इजरायली उन्हें एक हीरो की तरह देखते हैं. 

दरअसल 1960 के दशक में सीरिया और इजरायल के संबंध बहुत खराब थे.सीरिया में इजरायल को लेकर बनने वाले खुफिया मनसूबों का पता लगाने के लिए वहां एक एजेंट की जरूरत थी.इस काम के लि एली कोहेन को चुना गया था. एली कोहेन का जन्म मिस्र में हुआ था. वे सीरियाई मूल के यहूदियों के बेटे थे, जिन्होंने पहले भी इजरायली खुफिया एजेंसी में नौकरी पाने की कोशिश की थी लेकिन रिजेक्ट कर दिए गए थे.

उन्हें 1960 में मोसाद ने भर्ती किया और जासूसी की ट्रेनिंग दी.एली कोहेन को सीरियाई माता-पिता से पैदा हुए एक सफल व्यवसायी के रूप में अपनी नई पहचान लेकर अर्जेंटीना गए. वहां उन्होंने राजनयिकों, राजनेताओं और बड़े फौजी अफसरों से दोस्ती के अलावा एक ऐसे व्यक्ति से भी दोस्ती कर ली जो बाद में सीरिया का राष्ट्रपति बना.

साल 1962 में सीरिया में बाथ पार्टी की सरकार बनी. कोहेन ने अर्जेंटीना में अपने संपर्कों का इस्तेमाल कर कई आला अधिकारियों के करीबी बन गए. उन्होंने सीरियाई अधिकारियों को महंगे गिफ्ट और शराब भेंट की. इस तरह खुफिया जानकारियां जुटाकर उन्होंने मोसाद को भेजीं. 

खुफिया जानकारियां लीक होने से परेशान सीरियाई अधिकारियों ने सोवियत संघ की मदद ली. सीरियाई और सोवियत अधिकारियों ने एली कोहेन को 1965 में रेडियो उपकरण का उपयोग करते हुए गिरफ्तार कर लिया. वो एक खुफिया संदेश इजरायल भेज रहे थे.कोहेन को मौत की सजा सुनाई गई. उन्हें राजधानी दमिश्क में सरेआम फांसी दी गई. 

ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर हमला

इसराइल और ईरान के संबंध हमेशा से खराब रहे हैं.इजरायल ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर काफी चिंतित रहता है. वह उसे नुकसान पहुंचाने का कोई भी मौका नहीं छोड़ता है. इसी क्रम में नवंबर 2020 में ईरान के परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फखरीजादेह की ईरान में ही हत्या कर दी गई थी.उस समय मोसाद ने इसकी जिम्मेदारी नहीं ली थी, लेकिन जून 2021 में मोसाद के मुखिया ने इस हत्याकांड की जिम्मेदारी ली थी. 

फ़ख़रीज़ादेह की मौत के बाद ईरान के ख़ुफ़िया विभाग के मंत्री महमूद अलावी का बयान आया.उन्होंने बताया था कि जिस आदमी ने इस हत्याकांड को अंजाम दिया वह ईरान की सेना से जुड़ा था.उन्होंने इशारे में यह भी बता दिया कि साजिश को अंजाम देने वाला द इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड (आईआरजीसी ) का सदस्य है.यह ईरान की सबसे प्रमुख मिलिट्री यूनिट है. यह हत्याकांड मोसाद के सामर्थ्य का सबूत है.

इसके अलावा 2021 में एक ईरानी परमाणु ठिकाने में यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम को एक बड़ा झटका लगा, जब एक बड़े विस्फोट के कारण साइट पर बिजली गुल हो गई थी. इससे यूरेनियम को समृद्ध करने वाले सेंट्रीफ्यूज ठप पड़ गए थे.इस बिजली कटौती को भी मोसाद का ही काम माना गया था. 

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