जर्मनी में फरवरी में होंगे चुनाव, इससे पहले बिजली पर क्यों उठ गया सियासी बवंडर?

जर्मनी में फरवरी में होने वाले चुनाव पर बिजली संकट का असर, यूरोप में हाल के महीनों में बिजली की कीमतों में दो बार उछाल आया

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प्रतीकात्मक तस्वीर

जर्मनी में 23 फरवरी को चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में बादलों वाले सर्दियों के मौसम में देश में अस्थिर हरित ऊर्जा परिवर्तन पर पड़ने वाले प्रभाव के कारण एक गर्म चुनावी अभियान चल रहा है. हाल के महीनों में दो बार यूरोप की शीर्ष अर्थव्यवस्था में बिजली की कीमतों में अस्थायी रूप से उछाल आया है. देश में सौर पैनलों और टर्बाइनों को बिजली देने के लिए सूर्य के प्रकाश और हवा दोनों की कमी है.

इस स्थिति को "अंधकारमय शांति" कहा गया है, जिसके कारण 12 दिसंबर को बिजली की कीमत 936 यूरो (972 डॉलर) प्रति मेगावाट प्रति घंटा हो गई है. यह पिछले सप्ताहों के औसत से 12 गुना अधिक है. कंजरवेटिव विपक्षी नेता फ्रेडरिक मर्ज़ की पार्टी CSU/CDU को चुनाव जीतने की पूरी उम्मीद है. मर्ज़  इस मुद्दे पर केंद्र-वाम चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़ को घेर रहे हैं.

यूरोप का ऊर्जा बाजार परस्पर जुड़ा हुआ है. मर्ज़ ने स्कोल्ज़ से कहा कि "आपकी ऊर्जा नीतियां पूरे यूरोपीय संघ को परेशान कर रही हैं." इस टिप्पणी को ग्रीन्स (जर्मनी की ग्रीन राजनीतिक पार्टी को 'ग्रीन्स' कहा जाता है) ने अस्वीकार कर दिया. ग्रीन्स लंबे समय से जर्मनी के जीवाश्म ईंधन और परमाणु ऊर्जा से दूर होकर स्वच्छ नवीकरणीय ऊर्जा की दिशा में बदलाव के पीछे राजनीतिक प्रेरक शक्ति रहे हैं.

ग्रीन एनर्जी को लेकर प्रतिबद्धता और चुनौतियां 

ग्रीन्स के वाइस चांसलर और अर्थव्यवस्था मंत्री रॉबर्ट हेबेक ने पलटवार करते हुए कहा कि एंजेला मर्केल के नेतृत्व वाली पिछली सीडीयू/सीएसयू सरकारें जर्मनी की ऊर्जा चुनौतियों के प्रति "अंधी" रही हैं. जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मदद करने के लिए जर्मनी ने फॉसिल फ्यूल को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को 1990 के स्तर से 2030 तक 55 प्रतिशत तक कम करने और सदी के मध्य तक कार्बन-तटस्थ बनने का संकल्प लिया है.

हाल ही में बिजली की कीमतों में उछाल के कारण जर्मनी की कुछ सबसे अधिक ऊर्जा खपत वाली कंपनियों ने अस्थायी रूप से उत्पादन सीमित कर दिया है या फिर रोक दिया है. गत 12 दिसंबर को जर्मनी ने लीपज़िग में यूरोपीय ऊर्जा एक्सचेंज से बिजली खरीदी, जिससे पड़ोसी देशों में कीमतों में उछाल आ गया.

इस बीच जर्मन एनर्जी सेक्टर खतरे की घंटी बजा रहा है. सबसे बड़े एनर्जी सप्लायर आरडब्ल्यूई के प्रमुख मार्कस क्रेबर ने कहा कि, अक्षय ऊर्जा आपूर्ति में हाल ही में आई गिरावट से जनवरी जैसे उच्च पीक लोड वाले दिनों बिजली सप्लाई मैनेज नहीं होती. उन्होंने चेतावनी दी कि सिस्टम वर्तमान में "अपनी सीमा पर" काम कर रहा है.

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सूरज और हवा से रोशन होता यूरोप 

हाल ही में आई गिरावट के बाद स्थिति जल्द ही स्थिर हो गई क्योंकि रिन्यूवेबल एनर्जी प्रोडक्शन में फिर से तेजी आई और घरों और अधिकांश व्यवसायों को निश्चित टैरिफ द्वारा प्रतिदिन होने वाले कीमतों में उतार-चढ़ाव से बचाया गया. शोल्ज़ सरकार ने ग्रीन एनर्जी के रूप में बदलाव का बचाव किया. उन्होंने कहा कि, कभी-कभार "अस्थायी घटना" के रूप में अंधेरा छा जाता है, जो हाजिर बाजार में कीमतों को बढ़ा सकता है.

प्रवक्ता स्टीफन हेबेस्ट्रेट ने कहा, "जब सूरज बहुत चमकता है, हवा बहुत चलती है, तब जर्मनी में बिजली उत्पादन बहुत सस्ता होता है. ऐसे में खुशी के साथ बिजली निर्यात किया जाता है, हमारे पड़ोसी देशों को बिजली की आपूर्ति की जाती है." 

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नवीकरणीय ऊर्जा जर्मनी के एनर्जी मिक्स का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई है. इस वर्ष अब तक इसके बिजली उत्पादन का औसतन 60 प्रतिशत है. ऊर्जा के पारंपरिक स्रोतों को बंद किया रहा है. पिछले साल अंतिम तीन परमाणु ऊर्जा स्टेशनों को ग्रिड से हटा दिए जाने के बाद कोयला बिजली स्टेशन धीरे-धीरे बंद हो रहे हैं.

एनर्जी पर राजनीतिक मुकाबला

कई विशेषज्ञों का कहना है कि दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, जो पहले से ही अन्य क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा की कमी से जूझ रही है, ऐसे में बिजली आपूर्ति में उतार-चढ़ाव को बर्दाश्त नहीं कर सकती.

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विश्लेषकों का कहना है कि जर्मनी को ऊर्जा भंडारण क्षमता बढ़ाने की जरूरत है और जरूरत पड़ने पर उत्पादन के अन्य स्रोत, जैसे गैस और हाइड्रोजन, विकसित करने की भी जरूरत है.

ब्रूगेल थिंक टैंक में ऊर्जा और जलवायु विशेषज्ञ जॉर्ज जैचमैन ने एएफपी को बताया, "अगर राज्य एक अच्छा नियामक ढांचा स्थापित करता है, तो भंडारण में निवेश और आपूर्ति में लचीलापन रखकर कमी से बचना संभव हो सकता है."

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सियासत क्या जर्मनी को परमाणु ऊर्जा की ओर वापस ले जाएगी?

हालांकि, उन्होंने कहा कि "एक बड़ी चिंता यह है कि आवश्यक इन्फ्रास्ट्रक्चर को जल्दी से विकसित करने के लिए फ्रेमवर्क पर्याप्त नहीं होगा." ऊर्जा विशेषज्ञ क्लाउडिया केम्फर्ट ने कहा, "पवन ऊर्जा सुविधा के निर्माण में औसतन सात साल लगते हैं, लेकिन तरलीकृत प्राकृतिक गैस टर्मिनल बनाने में सिर्फ सात महीने लगते हैं. यह इसके विपरीत होना चाहिए." 

फिलहाल जर्मनी को स्कोल्ज़ की तीन-तरफा गठबंधन सरकार के पतन के बाद कई महीनों तक राजनीतिक गतिरोध का सामना करना पड़ रहा है. गठबंधन सरकार के पतन का मतलब कोयले से दूर ऊर्जा में बदलाव के हिस्से के रूप में गैस और हाइड्रोजन पावर स्टेशनों का एक नेटवर्क बनाने की परियोजना के लिए एक महत्वपूर्ण मसौदा कानून को रद्द करना भी है. 

फरवरी के चुनाव के बाद एक नई सरकार को उभरने में कई महीने लग सकते हैं और फिर वह अपनी ऊर्जा नीति निर्धारित करेगी. चुनाव में आगे चल रहे मर्ज़ ने परमाणु ऊर्जा पर वापसी का अध्ययन करने का वादा किया है.

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